________________
Download More Osho Books in Hindi
Download Hindi PDF Books For Free
शाम को भी यह फूल मुझे सुंदर मालूम पड़े; शाम को यह कुरूप मालूम पड़ सकता है। तब मुझे कहना पड़ेगा, अब मैं ऐसा आदमी हो गया हूं कि यह फूल मुझे कुरूप मालूम पड़ता है। लेकिन यह कल सुबह फिर सुंदर मालूम पड़ सकता है। ये सौंदर्य और कुरूप, ये आब्जेक्टिव हैं, विषयगत हैं, वस्तुगत हैं या सब्जेक्टिव फीलिंग्स हैं? ये हमारी आंतरिक, मानसिक भावनाएं हैं या वस्तु का स्वरूप हैं?
ये हमारी मानसिक भावनाएं हैं। मानसिक भावनाओं को फूल पर आरोपित कर देना न्यायसंगत नहीं है। आप कौन हैं फूल पर आरोपित हो जाने वाले? कौन सा अधिकार है? कोई भी अधिकार नहीं है। पर हम सब आरोपित कर रहे हैं अपने को।
फूल के पास एक दिन खड़े होकर देखें, न कहें सुंदर, न कहें कुरूप। इतना ही काफी है कि फूल है। खड़े रहें चुपचाप, सम्हालें अपनी पुरानी आदत को जो तत्काल कह देती है सुंदर या कुरूप। रुकें जजमेंट से, निर्णय न लें, खड़े रहें। उधर रहे फूल, इधर रहें आप, बीच में कोई निर्णय न हो कि सुंदर कि कुरूप।
और थोड़े दिन के अभ्यास से जिस दिन यह संभव हो जाएगा कि आपके और फूल के बीच में कोई भावधारा न रहे, कोई निर्णय न रहे, उस दिन आप फूल के एक नए सौंदर्य का अनुभव करेंगे, जो सौंदर्य और कुरूप के पार है। उस दिन फूल का आविर्भाव आपके सामने नया होगा। उस दिन आपकी कोई मानसिक धारणा नहीं होगी। उस दिन आपकी पसंद-नापसंद नहीं होगी। उस दिन आप बीच में नहीं होंगे। फूल ही खिला होगा अपनी पूर्णता में। और जब फूल अपनी पूर्णता में खिलता है, हमारे किसी बिना मनोभाव की बाधा के, तब उसका एक सौंदर्य है, जो सुंदर और कुरूप दोनों के पार है। ध्यान रखना, जब मैं कह रहा हूं कि उसका एक अपना सौंदर्य है, जो हमारी धारणाओं के पार है।
लाओत्से कहता है, उसे हम कहते हैं सौंदर्य, जहां कुरूपता का पता ही नहीं है। लेकिन तब सौंदर्य का भी पता नहीं होता, जैसे सौंदर्य को हम जानते हैं।
एक वृक्ष है। आप राह से गुजरे हैं और वृक्ष की शाखा वर्षा में आपके ऊपर गिर पड़ी है। तब आप ऐसा तो नहीं कहते कि वृक्ष ने बहुत बुरा किया; वृक्ष बहुत शैतान है, कि दुष्ट है, कि हिंसक है; कि वृक्ष की इच्छा आपको नुकसान पहुंचाने की थी; कि अब आप वृक्ष से बदला लेकर रहेंगे।
नहीं, आप कुछ भी नहीं कहते। आप वृक्ष के संबंध में कोई निर्णय ही नहीं लेते। आप वृक्ष के संबंध में निर्णय-शून्य होते हैं। तब रात वृक्ष की गिरी हुई शाखा आपकी नींद में चिंता नहीं बनती। तब महीनों आप उससे बदला कैसे लें, इसमें व्यतीत नहीं करते। क्योंकि आपने कोई निर्णय न लिया कि शुभ हुआ कि अशुभ हुआ, वृक्ष ने बुरा किया कि भला किया। आपने यह सोचा ही नहीं कि वृक्ष ने कुछ किया। संयोग की बात थी कि आप नीचे थे और वृक्ष की शाखा गिर पड़ी। वृक्ष को आप कोई दोष नहीं देते।
लेकिन एक आदमी एक लकड़ी आपको मार दे। लकड़ी तो दूर की बात है, एक गाली मार दे। लकड़ी में तो थोड़ी चोट भी रहती है, गाली में तो कोई चोट भी नहीं है। खाली शब्द कैसे घाव कर पाते होंगे? लेकिन तत्काल मन निर्णय लेता है कि बुरा किया उसने, कि भला किया, कि बदला लेना जरूरी हो गया। अब चिंता पकड़ेगी। अब चित्त घूमेगा आस-पास उस गाली के। अब महीनों नष्ट हो सकते हैं; सालों नष्ट हो सकते हैं; पूरा जीवन भी लग सकता है उस काम में। पर कहां से शुरुआत हुई? उस आदमी के गाली देने से शुरुआत हुई, कि आपके निर्णय लेने से शुरुआत हुई, यह समझने की बात है।
अगर आप निर्णय न लेते और आप कहते, संयोग की बात कि मैं निकट पड़ गया और तुम्हारे मुंह में गाली आ गई, जैसे कि मैं पास से गुजरता था और वृक्ष की शाखा गिरी, संयोग की बात कि मैं पास से गुजरता था और तुम्हारे मुंह में गाली आ गई। मैं कोई निर्णय नहीं लेता कि शुभ हुआ कि अशुभ हुआ; संयोग हुआ। अगर सच में ही मैं वृक्ष की शाखा की तरह इसे भी संयोग की भांति देख पाऊं और बुरे और भले का निर्णय न लूं, तो क्या यह मेरे मन में चिंता बन पाएगी? क्या यह गाली घाव बन जाएगी? क्या इसके आस-पास मुझे जीवन का और समय नष्ट करना पड़ेगा? क्या मुझे गालियां बनानी पड़ेंगी और देनी पड़ेंगी? और क्या गालियां देकर मुझे और गालियां निमंत्रण करवानी पड़ेंगी? नहीं, यह बात समाप्त हो गई। मैंने कुछ बुरे-भले का निर्णय न लिया। एक तथ्य था, जाना और बढ़ गया। लाओत्से इसे शुभ कहता है।
अब ध्यान रखना, इसमें बहुत बारीक फासले हैं। जीसस कहेंगे कि जो तुम्हारे गाल पर एक चांटा मारे, दूसरा गाल उसके सामने कर देना। लाओत्से कहेगा, ऐसा मत करना। जीसस कहेंगे, जो गाल पर तुम्हारे एक चांटा मारे, दूसरा उसके सामने कर देना। लेकिन लाओत्से कहेगा, अगर दूसरा तुमने उसके सामने किया, तो तुमने निर्णय ले लिया, तुमने निर्णय ले लिया। एंड यू हैव रिएक्टेड, और तुमने प्रतिक्रिया भी कर दी। माना कि तुमने गाली नहीं दी, लेकिन चांटा तुमने मार दिया; तुमने दूसरा गाल सामने किया न!
जीसस कहते हैं, अपने शत्रु को भी प्रेम करना। लाओत्से कहेगा, नहीं, ऐसा मत करना। क्योंकि तुमने प्रेम भी प्रकट किया, तो भी इतना मान लिया कि वह शत्रु है। लाओत्से की बात बहुत-बहुत पार है। लाओत्से कहेगा, शत्रु को प्रेम करना, तो शत्रु तो मान ही लिया। फिर तुमने क्या किया, शत्रु को गाली दी, घृणा की, या प्रेम किया, ये दूसरी बातें हैं। लेकिन एक बात तय हो गई कि वह शत्रु है।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज