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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free नास्तिक को फर्क नहीं पड़ेगा। आपका ईश्वर रहे न रहे, नर्क-स्वर्ग में बदलाहट हो जाए, नास्तिक को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि वे उसके आधार नहीं हैं। उनके कारण वह नैतिक नहीं है। वह नैतिक है तो इसलिए कि वह कहता है कि नैतिक होने में सुख है। मेरा विवेक कहता है नैतिक होने को, इसलिए मैं नैतिक हूं। और कोई प्रयोजन नहीं है। मैं अपने को ज्यादा स्वच्छ और शांत पाता हूं, इसलिए नैतिक हूं। और कोई प्रयोजन नहीं है। आस्तिक तो तभी आस्तिक होता है, जब वह धार्मिक हो। नैतिक होने से नहीं होता। नैतिक तो नास्तिक भी हो जाता है, और आस्तिक से बेहतर हो जाता है। लाओत्से आस्तिकता का आधारभूत सूत्र कह रहा है। वह यह कह रहा है कि तुम द्वंद्व में मत बांटो जीवन को; दोनों के पार हटो। हमारे मन में फौरन डर पैदा होगा। हमारे मन में, जो कि हम नीति से बंधे हैं, हमारे मन में डर पैदा होगा कि अगर दोनों के पार हुए, तो अनैतिक हो जाएंगे। तत्काल जो लाओत्से की बात सुन कर खयाल में आएगा, वह यह आएगा, अगर दोनों के पार हुए तो फिर चोरी क्यों न करें? हमारे मन में सवाल उठेगा, अगर दोनों ही छोड़ देने हैं, तो दुनिया बरी हो जाएगी। क्योंकि हम अच्छे तो ऊपर-ऊपर से हैं, बुराई सब भीतर भरी है। अगर हमने जरा भी शिथिलता की, तो अच्छाई तो टूट जाएगी, बुराई फैल जाएगी। यह भय हमारे भीतर का वास्तविक भय है। लेकिन लाओत्से कहता है कि जो अच्छाई के भी पार जाने को तैयार है, वह बुराई में गिरने को कभी तैयार नहीं होगा। जो अच्छाई तक को छोड़ने को तैयार है, उसे तुम बुराई में कैसे गिरा पाओगे? असल में, सब बुराइयों में गिरने का कारण भी अहंकार होता है। और हमने अहंकार को ही अच्छाई में चढ़ने की सीढ़ी बनाई है। और वही बराई में गिरने का कारण है। लाओत्से कहता है कि जो अच्छाई तक में चढ़ने को उत्सुक नहीं है, वह बुराई में गिरने को राजी नहीं होगा। और जो अच्छाई में चढ़ने को उत्सुक है, उसे बुराई में गिरने को कभी भी फुसलाया जा सकता है। क्षण भर, और वह नीचे गिर जाएगा। अगर उसको ऐसा दिखाई पड़े कि बुराई अच्छाई से ज्यादा फल दे सकती है क्योंकि फल के कारण ही वह अच्छाई कर रहा है-अगर उसे ऐसा दिखाई पड़े कि बुराई से अहंकार ज्यादा तृप्त होगा बजाय अच्छाई के, तो वह अभी बुराई में चला जाएगा। क्योंकि वह अच्छाई में भी अहंकार के लिए ही गया है। लाओत्से कहता है, जो अच्छाई और बुराई दोनों के पार चला जाता है, उसके गिरने का भी कोई उपाय नहीं, उसके उठने का भी कोई उपाय नहीं। वह पहाड़ों पर भी नहीं चढ़ता, वह खाइयों में भी नहीं उतरता। वह जीवन की समतल रेखा पर आ जाता है। उस समतल रेखा का नाम ऋत, उस समतल रेखा का नाम ताओ। जहां इंच भर वह नीचे भी नहीं गिरता, ऊपर भी नहीं उठता। उस समतल रेखा का नाम धर्म। तो लाओत्से कहता है कि मैं तुमसे नहीं कहता कि तुम बुराई छोड़ो, मैं तुमसे नहीं कहता कि तुम अच्छाई पकड़ो, मैं तुमसे कहता हूं, तुम यह समझो कि अच्छाई और बुराई एक ही चीज के दो नाम हैं। तुम यह पहचानो कि ये दोनों संयुक्त घटनाएं हैं। और जब तुम यह पहचान लोगे ये दोनों संयुक्त हैं, तो तुम इन दोनों के पार हो सकोगे। इसे हम कुछ और तरह से समझ लें तो शायद खयाल में आ जाए। एक फूल के पास आप खड़े हैं। क्या जरूरी है यह कहना कि उसे सुंदर कहें? क्या जरूरी है यह कहना कि उसे कुरूप कहें? और क्या आपके कहने से फूल में कोई अंतर पड़ता है? आपके कहने से फूल में कोई भी अंतर नहीं पड़ता। लेकिन आपके कहने से आप में जरूर अंतर पड़ता है। अगर आप सुंदर कहते हैं, तो आपका फूल के प्रति व्यवहार और हो जाता है। अगर आप कुरूप कहते हैं, तो आपका फूल के प्रति व्यवहार और हो जाता है। आपके कहने से फूल में अंतर नहीं पड़ता, लेकिन आप में अंतर पड़ता है। और सच में ही क्या है आधार कहने का कि फूल सुंदर है? क्या है क्राइटेरियन? कौन सा है तराजू जिससे आप नापते हैं कि फूल सुंदर है? बड़ी कठिनाई में पड़ेंगे, अगर कोई पूछे कि क्यों? तो क्या है आधार? गहरे से गहरा आधार यही होगा कि मुझे पसंद पड़ता है। लेकिन आपकी पसंदगी सौंदर्य का कोई नियम है? कुरूप का क्या होगा आधार? कि मुझे पसंद नहीं पड़ता है। लेकिन आपकी नापसंदगी को परमात्मा ने नियम बनाया है कि वह कुरूप हो गई चीज जो नापसंद है? पसंद और नापसंद क्या खबर देती हैं? आपके बाबत खबर देती हैं, फूल के बाबत कोई भी खबर नहीं देती। क्योंकि मैं उसी फूल के पास खड़े होकर दूसरी पसंदगी जाहिर कर सकता हूं। फूल फिर भी फूल रहेगा। कोई उसे कुरूप कह जाए, कोई उसे सुंदर कह जाए, कोई कुछ न कहे, फूल फूल रहेगा। और हजार लोग फूल के पास से निकल कर हजार वक्तव्य दे जाएं, तो भी फूल फूल रहेगा। फिर वे वक्तव्य किसके संबंध में खबर देते हैं? फूल के संबंध में या देने वाले के संबंध में? अगर हम ठीक से समझें तो सभी वक्तव्य देने वाले के संबंध में खबर देते हैं। अगर मैं कहता है, यह फूल सुंदर है। तो इसको ठीक से कहना हो तो ऐसा कहना पड़ेगा कि मैं इस तरह का आदमी हूं कि यह फूल मुझे संदर मालूम पड़ता है। मगर जरूरी नहीं है कि इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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