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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free ताओ उपनिषाद (भाग-1) प्रवचन-5 सापेक्ष विरोधों से मुक्त-सुंदर और शुभ-प्रवचन-पांचवां अध्याय 2: सूत्र 1 सापेक्ष विरोधों की उत्पत्ति जब पृथ्वी के प्राणी सुंदर के सौंदर्य से परिचित होते हैं, तभी से कुरूप की पहचान शुरू होती है। और जब वे शुभ से परिचित होते हैं, तभी उन्हें इस बात का बोध होता है कि अशुभ क्या है। सौंदर्य से परिचित होते ही, सौंदर्य की प्रतीति होते ही, इस बात की खबर मिलती है कि कुरूप का परिचय हो गया। शुभ का बोध अशुभ के बोध के बिना असंभव है। लाओत्से ने अपने प्रथम सूत्रों में जो बात कही है, उसे एक नए आयाम से पुनः दोहराया है। लाओत्से यह कह रहा है, जो व्यक्ति सुंदर को अनुभव करता है, वह बिना कुरूप का अनुभव किए सुंदर को अनुभव न कर सकेगा। जिस व्यक्ति के मन में सौंदर्य की प्रतीति होती है, उस व्यक्ति के मन में उतनी ही कुरूपता की प्रतीति भी होगी। असल में, जिसे कुरूप का कुछ भी पता नहीं है, उसे सौंदर्य का भी कोई पता नहीं होगा। जो व्यक्ति शुभ होने की कोशिश करता है, उसके मन में अशुभ की मौजूदगी जरूर ही होगी। जो अच्छा होना चाहता है, वह बुरा हुए बिना अच्छा न हो सकेगा। लाओत्से का खयाल था और महत्वपूर्ण खयाल है-कि जिस दिन से लोगों ने जाना कि सौंदर्य क्या है, उसी दिन से जगत से वह सहज सौंदर्य खो गया, जिसमें कुरूपता का अभाव था। और जब से लोगों ने समझा कि शुभ क्या है, तभी से शुभ की वह सहज अवस्था खो गई, जब कि लोगों को अशुभ का कोई पता ही न था। इसे हम ऐसा समझें। यदि हम मनुष्य के पुरातन, अति पुरातन में प्रवेश करें, यदि मनुष्य की प्रथम सौम्य, सरल और प्राकृतिक, नैसर्गिक अवस्था का खयाल करें, तो हमें वहां सौंदर्य का बोध नहीं मिलेगा। लेकिन साथ ही वहां कुरूपता के बोध का भी अभाव होगा। वहां हमें ईमानदार लोग नहीं मिलेंगे, क्योंकि बेईमानी वहां संभव नहीं थी। वहां हमें चोर खोजे से नहीं मिलेंगे, क्योंकि साधु वहां नहीं होता था। लाओत्से यह कह रहा है कि यह सारा जीवन हमारा सदा ही वंद्व से निर्मित होता है। अगर किसी समाज में लोग बहुत ईमानदार होने के लिए आतुर हों, तो वे केवल इस बात की खबर देते हैं कि वह समाज बहुत बेईमान हो गया है। अगर किसी समाज में मां-बाप अपने बच्चों को सिखाते हों कि सच बोलना धर्म है, तो जानना चाहिए कि उस समाज ने जीवन की जो सहज सच्चाई है, वह खो दी है, और उस समाज में असत्य बोलना व्यवहार बन गया है। लाओत्से यह कह रहा है कि हम उसी बात पर जोर देते हैं, जिससे विपरीत पहले ही मौजूद हो गया होता है। अगर हम बच्चों से कहते हैं, झूठ मत बोलो, तो उसका अर्थ इतना ही है कि झूठ काफी जोर से प्रचलित है। अगर हम उनसे कहते हैं, ईमानदार बनो, तो उसका मतलब इतना ही है कि बेईमानी ने घर कर लिया है। लाओत्से के पास कथा है कि कनफ्यूशियस मिलने गया था। कनफ्यूशियस, इस पृथ्वी पर जो नैतिक विचारक हुए हैं, उनमें श्रेष्ठतम है। नैतिक विचारक, धार्मिक नहीं! कनफ्यूशियस कोई धार्मिक विचारक नहीं है, नैतिक विचारक, मॉरल थिंकर। कनफ्यूशियस उन लोगों में से है, जिन्होंने सिर्फ, मनुष्य कैसे अच्छा हो, इस संबंध में गहनतम चिंतन और विचार किया है। स्वभावतः, कनफ्यूशियस लाओत्से से मिलने गया, यह सुन कर कि लाओत्से बहुत बड़ा धार्मिक व्यक्ति है, तो मैं लाओत्से से प्रार्थना करूं कि तुम भी लोगों को समझाओ कि वे अच्छे कैसे हो जाएं, ईमानदार कैसे हो जाएं, चोरी क्यों न करें, कैसे चोरी से बचें, कैसे अचोर बनें, कैसे क्रोध छोड़ें, कैसे क्षमावान बनें, हिंसा कैसे मिटे, अहिंसा कैसे आए, तुम भी लोगों को समझाओ। तो कनफ्यूशियस लाओत्से से मिलने गया। लाओत्से अपने झोपड़े के बाहर बैठा है। कनफ्यूशियस ने कहा, लोगों को समझाओ कि वे अच्छे कैसे हो जाएं। लाओत्से ने कहा, जब तक बुराई न हो, तब तक लोग अच्छे कैसे हो सकेंगे? बुराई होगी तो ही लोग अच्छे हो सकेंगे। तो मैं तो यह समझाता हूं कि बुराई कैसे न हो, अच्छे की मैं फिक्र नहीं करता हूं। मैं तो वह स्थिति चाहता हूं, जहां अच्छे का भी पता नहीं चलता है कि कौन अच्छा है। कनफ्यूशियस की समझ में कुछ भी न पड़ा। कनफ्यूशियस ने कहा, लोग बेईमान हैं, उन्हें ईमानदारी समझानी है। लाओत्से ने कहा कि जिस दिन से तुमने ईमानदारी की बात की, उसी दिन से बेईमानी प्रगाढ़ हो गई है। मैं वह दिन चाहता हूं जहां लोग ईमानदारी की बात ही नहीं करते। कनफ्यूशियस की फिर भी समझ में न आया। किसी नैतिक चिंतक की समझ में न आएगा यह सूत्र। क्योंकि नैतिक चिंतक ऐसा मानता है कि बुराई और भलाई विपरीत चीजें हैं; बुराई को काट दो, तो भलाई बच रहेगी। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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