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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free कार्य-कारण का पता नहीं चलता। असली चमत्कार में भी कार्य-कारण का पता नहीं चलता, क्योंकि कारण और कार्य एक साथ उपस्थित हो जाते हैं। अभी आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक प्रयोगशाला में बहुत हैरानी की आकस्मिक घटना घट गई। उससे इस चमत्कार को समझने में आसानी मिलेगी। कुछ वैज्ञानिक एक कली का चित्र ले रहे थे। और चित्र कली का नहीं आया, फूल का आ गया। जिस फिल्म का उपयोग किया जा रहा था, वह अधिकतम सेंसिटिव जो फिल्म आज संभव है, वह थी। अभी सामने कैमरे के कली ही थी; अंदर जो चित्र आया, वह फूल का आया। स्वभावतः, लगा कि कोई भूल हो गई। कली अभी भी कली थी, चित्र फूल का आ गया। लेकिन सुरक्षित रखा गया। समझा गया कि कोई भूल-चूक हो सकती है। पहले से कोई एक्सपोजर हो गया हो। कोई किरण प्रवेश कर गई हो, कोई गड़बड़ हो गई हो। कोई केमिकल भूल-चूक हो गई हो, कुछ न कुछ गड़बड़ हो गई है। उस चित्र को रखा गया सम्हाल कर। और जब कली फूल बनी, तब उसके दूसरे चित्र लिए गए। और बड़ी हैरानी हुई, क्योंकि वह चित्र वही था। जो बाद में चित्र आए वे चित्र वही थे, जो चित्र पहले आ गया था। उस प्रयोग को दुबारा दुहराया नहीं जा सका है अब तक। लेकिन इस बात की संभावना प्रकट हो गई है और जिस वैज्ञानिक के द्वारा यह घटना घटी है, उसको यह आस्था गहन हो गई है कि हम किसी न किसी दिन इतनी सेंसिटिव फिल्म तैयार कर लेंगे कि जब बच्चा पैदा हो, तो हम उसके बुढ़ापे का चित्र ले लें। क्योंकि जो होने वाला है, वह सूक्ष्म के जगत में अभी हो ही गया है। जो कल होने वाला है, उसकी होने की सारी प्रक्रिया सूक्ष्म के जगत में अभी शुरू हो गई है। यह और गहन जगत में हो गई होगी; हम तक खबर पहुंचने में देर लगेगी। हमारी इंद्रियां जब तक पकड़ेंगी, उसमें देर लगेगी। अगर हम बिना इंद्रियों के पकड़ पाएं, तो शायद अभी पकड़ लें। शायद टाइम का जो गैप है, कली जब फूल बनती है तो कली और फूल के बीच समय का जो फासला है, वह कली और फूल के बीच नहीं, वह हमारी इंद्रियों और फूल के बीच है। अगर हमारी इंद्रियां बीच से हट जाएं, तो हम कली में फूल को देख सकते हैं। और तब चमत्कार घटित होता है। और उस चमत्कार की जो दुनिया है, उस चमत्कार की दुनिया में प्रवेश ही धर्म के विज्ञान का लक्ष्य है। लाओत्से जो कह रहा है, उसने इस छोटे से वचन में बहुत कुछ कहा है। इस...लेकिन यह सब कोड है। इसको ऐसा सीधा पढ़ जाएंगे, तो कुछ भी इसमें मिलेगा नहीं। इसे खोल-खोल कर, एक-एक शब्द की पर्त उखाड़-उखाड़ कर देखेंगे, तब कहीं लाओत्से की आत्मा से थोड़ा सा स्पर्श होता है। आज इतना ही रहने दें, कल बात करें। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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