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अगर कोई मुर्दा आदमी भी जीवित हो जाए, तब भी चमत्कार नहीं है। और आज नहीं कल हम उसके मुर्दा होने के, जीवित होने का राज खोज सकते हैं कि वह क्यों जीवित हो गया। अगर बीमारी मानसिक होती है, तो क्या आप समझते हैं मौत मानसिक नहीं हो सकती? बिलकुल होती है। मौत मानसिक भी होती है। सभी लोग शारीरिक बीमारियों से नहीं मरते; समझदार लोग अक्सर मानसिक बीमारियों से मरते हैं।
अगर पक्का भरोसा आ जाए कि मैं मर रहा हूं, मैं मर रहा हूं, मैं मर गया, तो आप मर जाएंगे। आपका शरीर-यंत्र पूरी तरह ठीक है, अभी वह चल सकता था। सिर्फ आपकी चेतना भीतर सिकुड़ गई है। जीसस का हाथ उस सिकुड़ी हुई चेतना को फैला सकता है। कोई चमत्कार नहीं है। जीसस के हाथ में इतनी चुंबकीय ताकत है कि आपके भीतर जो दबी चेतना है, वह उठ कर सतह पर आ जाए।
यह जो मैग्नेटिज्म है, यह जो शरीर का जीवंत चुंबकीय तत्व है, यह इसका अपना विज्ञान है, इसके अपने कार्य-कारण हैं। तब यह भी हो सकता है कि पैर में किसी ने सिर रखा हो और उसे कुछ लाभ हो जाए, बिना उसकी आस्था के भी। तब इस व्यक्ति के पैर का जो जीवंत चुंबकीय तत्व है, वह प्रवेश कर सकता है। जैसे बिजली प्रवेश करती है छू देने से, शॉक लग जाता है और आदमी गिर पड़ता है, वैसे ही शरीर की विद्युत-धारा और शरीर का चुंबकीय तत्व भी प्रवेश करता है और दूसरे को छूता है और परिवर्तित करता है। लेकिन तब कार्य-कारण खोज लिए जाते हैं। नहीं, चमत्कार यहां नहीं है। हम चमत्कार सिर्फ इसलिए कहते हैं कि हमें कार्य-कारण का पता नहीं चलता।
लाओत्से जिस चमत्कार की बात कर रहा है, वह बहुत और है। वह चमत्कार उस जगह है, जहां हमारा अहंकार पूरी तरह समाप्त हो जाता है। और जब हमारा अहंकार पूरी तरह समाप्त होता है, तो एक अनूठी घटना घटती है कि हमें कार्य-कारण में जो भेद दिखाई पड़ता था, वह विदा हो जाता है। कार्य ही कारण हो जाता है; कारण ही कार्य हो जाता है। बीज ही वृक्ष हो जाता है; वृक्ष ही बीज हो जाता है। और उस स्थिति में कोई व्यक्ति बीज और वृक्ष को एक ही साथ देख सकता है, साइमलटेनियसली। लेकिन तब वह चमत्कार
इसे थोड़ा समझें। यह थोड़ा गहन है।
हम देखते हैं एक दफा बीज को, लेकिन उसी वक्त हम वृक्ष को नहीं देख सकते। वृक्ष को देखने में हमें बीस साल ठहरना पड़ेगा। बीस साल बाद हम वृक्ष को देखेंगे। लेकिन तब बीज न दिखाई पड़ेगा। हम एक बच्चे को देखते हैं पैदा होते हुए, तब हम बूढ़े को नहीं देख सकते। बूढ़े के लिए हमें सत्तर साल रुकना पड़ेगा। लेकिन जब हम बूढ़े को देखेंगे, तब तक बच्चा खो गया होगा। हम दोनों को साथ न देख सकेंगे।
चमत्कार लाओत्से उसे कहता है कि उस रहस्य के जगत में जब गहन होता रहस्य और अहंकार शून्य हो जाता, तो बच्चे में बूढ़ा दिखाई पड़ता है; बूढ़े में बच्चा दिखाई पड़ता है; जन्म में मौत दिखने लगती है; बीज में पूरा वृक्ष दिखाई पड़ता है। जो फूल अभी नहीं खिले, वे खिले हुए दिखाई पड़ते हैं। जो अभी नहीं हुआ, वह होता हुआ मालूम पड़ता है। जो हो चुका, वह मौजूद मालूम पड़ता है। जो होगा, वह भी मौजूद मालूम पड़ता है। अतीत और भविष्य समाप्त हो जाते हैं। एक ही क्षण रह जाता है। सारा अस्तित्व एक क्षण की इटरनिटी में, सनातन में खड़ा हो जाता है।
तो जो कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से कि ये जिन्हें तू सोचता है कि तू मारेगा, मैं इन्हें मरा हुआ देख रहा हूं अर्जुन! ये मर चुके हैं, अर्जुन! ये सिर्फ तुझे खड़े दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि तुझे भविष्य दिखाई नहीं देता। यह चमत्कार है।
चमत्कार का अर्थ है, कार्य-कारण जहां भिन्न न रह जाएं। वे भिन्न हैं भी नहीं, हमारे देखने के ढंग में भूल है। हमारा ढंग ऐसा है, जैसे मैं दीवार में एक छोटा सा छेद कर लूं और उस छेद में से इस कमरे में देखू। आपकी तरफ से देखना शुरू करूं, तो पहले मुझे अ नाम का व्यक्ति दिखाई पड़े। फिर जब मेरी आंख आगे घूमे, तो अ खो जाए और ब दिखाई पड़े। फिर जब मेरी आंख और आगे बढ़े, तो ब भी खो जाए और स दिखाई पड़े। और समझ लें कि अगर मेरी गर्दन को मोड़ने की सुविधा न हो, तो मैं क्या समझूगा? मैं यहीं समझूगा कि अ समाप्त हो गया, ब समाप्त हो गया, अब स दिखाई पड़ रहा है। लेकिन आगे जो ड है, वह अभी मुझे दिखाई नहीं पड़ रहा है।
लेकिन दीवार अचानक खो जाए और मैं पूरे कमरे को एक साथ देख लूं-अ, ब, स, ड, सब मुझे एक साथ दिखाई पड़ जाएं-वह चमत्कार है। अगर मुझे इस सृष्टि का जन्म होता हुआ और इस सृष्टि की प्रलय होती हुई एक साथ दिखाई पड़ जाए, तो चमत्कार है।
लाओत्से कहता है कि जो इस रहस्य में सघन उतर जाता है, सूक्ष्म के द्वार खुलते हैं उसे, और अंततः चमत्कार का द्वार खुलता है। तब वह विश्व को पैदा होते और समाप्त होते एक साथ देखता है। तब वह परमात्मा को जगत को बनाते और मिटाते एक साथ देखता है।
पर इसे समझना कठिन होगा। और इसे समझा नहीं जा सकता, इसलिए उसका नाम चमत्कार है। हम जिन्हें चमत्कार कहते हैं, उनका चमत्कार से कोई संबंध नहीं है। उनको समझा जा सकता है, उनको खोजा जा सकता है। लेकिन हम भी इसीलिए कहते हैं कि हमें
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