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ठहरे हैं, सब सो गया है, सब सन्नाटा है। नीचे सड़क खाली है। दूसरी मंजिल पर हैं। कोई आकस्मिक आ नहीं सकता है। फिर द्वार बंद करके सोचा, मन का कोई भ्रम होगा।
फिर सो गए हैं। पर फिर पांच-सात मिनट ही बीते हैं कि फिर वही दस्तक, और फिर आवाज इतनी साफ, और अब दुबारा थी तो वे खुद भी सजग थे। स्वरलहरी इतनी परिचित कि पिता के सिवाय किसी की आवाज नहीं। फिर द्वार खोला है, लेकिन फिर वहां कोई नहीं है। हवा सांय-सांय करके फिर भीतर भर आती है। सो न सके। बेचैनी उठी। तीन बजे रात, जाकर नीचे घर फोन लगाया। पता चला कि पिता चल बसे। ठीक दो बजे रात उनकी सांस टूटी और ठीक दो बजे रात पहली दस्तक और मन्ना की आवाज! पर वे अपने को झुठलाते रहे। वे अब भी झुठलाते हैं। वे कहते हैं, पता नहीं, कोई भ्रम ही होगा। अब भी-बुद्धिमान आदमी हैं, सोच-विचार करते हैं-अब भी वे कहते हैं, हुआ है, लेकिन अब भी मैं नहीं मानता कि पिता होंगे। कोई भूल हो गई। या तो मेरे मन का ही कोई खेल होगा, कोई संयोग, कोई कोइंसीडेंस, कि दो बजे वे मरे हैं और दो बजे मुझे कुछ खयाल आ गया होगा।
ऐसे हम सब के जीवन में कभी-कभी सूक्ष्म झांकता है। हम खुद झुठलाए चले जाते हैं। लेकिन अगर रहस्य का बोध सघन हो जाए, तो सूक्ष्म झांकता नहीं, हम ही सूक्ष्म में कूद जाते हैं। फिर हम सूक्ष्म में जीते हैं। फिर यह चौबीस घंटे चारों तरफ होने लगता है, यह चारों तरफ होने लगता है।
लाओत्से कहता है, सूक्ष्म का द्वार खुल जाता है और चमत्कारी का। दि मिरैकुलस का! वह जो वंडरफुल है उसका! वह जो विस्मयजनक है उसका!
चमत्कार क्या है, इसे भी थोड़ा सा समझ लेना जरूरी है। जगत में हम साधारणतः जिसे चमत्कार कहते हैं, उसमें भी कुछ बात है, इसीलिए चमत्कार कहते हैं। यद्यपि हमें पता नहीं कि क्या बात है।
कब कहते हैं आप चमत्कार? एक आदमी मर गया; और जीसस उसके सिर पर हाथ रख देते हैं और वह आदमी जिंदा हो जाता है। तो हम कहते हैं, चमत्कार हुआ! मरा हुआ आदमी जिंदा हो गया। क्यों कहते हैं चमत्कार? एक आदमी बीमार है और किसी के चरणों में सिर रख देता है और स्वस्थ हो जाता है। हम कहते हैं, चमत्कार हुआ। क्यों हुआ चमत्कार? बुद्ध किसी वृक्ष के पास से गुजरते हैं।
और वृक्ष सूखा है और उसमें नए अंकुर आ जाते हैं। तो हम कहते हैं, चमत्कार हुआ। लेकिन क्यों कहते हैं चमत्कार हुआ? कारण क्या है चमत्कार कहने का?
एक ही कारण साधारणतः जो हमारे खयाल में है, वह यह है कि जहां भी कार्य-कारण के बाहर कोई घटना घटती है, वहां चमत्कार है। ऐसे तो हर वृक्ष में नए अंकुर आते हैं, लेकिन वक्त से आते हैं, नियम से आते हैं। कारण होता है तो आते हैं। अब सूखा वृक्ष। वर्षों से जिस पर पत्ते नहीं, कोई कारण नहीं आने का। बुद्ध के निकलने से आते हैं। और बुद्ध का निकलना वृक्ष में अंकुर आने का कारण नहीं है। असंबंधित है, कोई संबंध नहीं है। बुद्ध के निकलने से वृक्ष में पत्ते आने का क्या संबंध है?
एक आदमी मर गया है। अगर दवा से ठीक हो जाए, तो हम कहेंगे कि शायद हृदय की गति थोड़ी कम चलती होगी, ठीक चलने लगी है। एक आदमी बीमार है। दवा से ठीक हो जाए, तो हम कहते हैं, कोई चमत्कार नहीं। क्यों? क्योंकि दवा में कारण है और ठीक हो जाना कार्य है। एक कॉजालिटी है। लेकिन एक आदमी के पैर में सिर रख दो और ठीक हो जाओ, तो फिर कोई कॉजालिटी नहीं है। फिर चमत्कार है।
चमत्कार का मतलब है, कार्य-कारण का नियम जहां टूट जाता है; जहां कोई संबंध खोजे नहीं मिलता कि क्या है कारण और क्या है कार्य। अब जीसस किसी के सिर पर हाथ रखें, मुर्दा आदमी जिंदा हो, इसका कोई भी संबंध नहीं है। जीसस के हाथ से क्या संबंध है? लेकिन आदमी जिंदा हो गया है, तो चमत्कार है। साधारणतः हम चमत्कार जिसे कहते हैं, उसके पीछे का राज जो है वह इतना ही है कि वहां कार्य-कारण हमारी समझ में नहीं आते।
लेकिन वहां भी कार्य-कारण हो सकते हैं, होते हैं। वहां भी कार्य-कारण हो सकते हैं, होते हैं। इसलिए जिन्हें हम चमत्कार कहते हैं, आज नहीं कल विज्ञान सिद्ध कर देगा कि वे चमत्कार नहीं हैं। कार्य-कारण का पता लगाने की बात है, बस! पता चल जाएगा, चमत्कार खो जाएगा।
अगर एक आदमी मेरे पैर में आकर सिर रख दे और उसकी बीमारी ठीक हो जाए, तो चमत्कार नहीं है। नहीं है इसलिए...लेकिन दिखाई पड़ेगा। क्योंकि आपको कार्य-कारण का संबंध आप नहीं जोड़ पाते। लेकिन हो सकता है, वह आदमी सच में किसी बीमारी से पीड़ित ही न हो। सिर्फ उसे खयाल हो बीमारी का, सिर्फ एक मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो। और अगर बहुत भरोसे से, और बहुत आस्था से मेरे पैर में सिर रख दे आकर, तो उतनी आस्था से वह भरोसा, जो बीमारी को मजबूत किए था, पिघल जाए, टूट जाए। चमत्कार हो जाएगा, लेकिन चमत्कार नहीं हुआ। देयर इज़ नो मिरेकल, क्योंकि कार्य-कारण पूरा काम कर रहा है। उसकी ही अपनी श्रद्धा से बनाई गई बीमारी थी, अपनी ही श्रद्धा से कट गई। मेरे पैर ने कुछ भी नहीं किया है। मेरा पैर कुछ कर भी नहीं सकता। चमत्कार कुछ भी नहीं है। चमत्कार जरा भी नहीं है।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज