________________
Download More Osho Books in Hindi
Download Hindi PDF Books For Free
अगर आप कहें, प्रेम के लिए! तो आप रहस्य की दुनिया में उतरे। काम कहेगा, प्रेम कहां है? सब जगह खोजा, सिवाय कामवासना के कुछ नहीं पाया। प्रेम तो रहस्य है, कामवासना तथ्य है। पकड़ने जाएंगे, तो कामवासना पकड़ में आएगी, प्रेम पकड़ में नहीं आएगा। कोई कहे, आनंद के लिए! आनंद तो रहस्य है; तथ्य तो तथाकथित सुख-दुख है। और सब सुख के पीछे दुख छिपा है। तो कामू कहेगा, किसलिए जीना है? और ठीक है, एक सुख एक बार देख लिया।
नसरुद्दीन एक होटल में बैठा हुआ है। और कोई आदमी उससे आकर पूछता है...कोई आदमी बैठ कर बातचीत करने लगा है, गांव के समाचार पूछता है। अजनबी है, परदेशी है। नसरुद्दीन उससे कहता है कि आप ताश तो नहीं खेलते हैं? अन्यथा हम ताश खेलें। वह आदमी कहता है, एक बार खेल कर देखा, फिर बेकार पाया। नसरुद्दीन कहता है, आप शतरंज में तो शौक नहीं रखते हैं? अन्यथा मैं शतरंज बुला लूं। वह आदमी कहता है, एक दफा शतरंज भी खेली थी। नहीं, कुछ सार न पाया। नसरुद्दीन कहता है, फिर आपके लिए मैं क्या इंतजाम करूं? संगीत सुनना पसंद करेंगे? तो मैं कुछ वाद्य बजाऊं। वह आदमी कहता है, एक दफा सुना था, सार नहीं पाया। तो नसरुद्दीन कहता है, मछली मारने के शौकीन हैं? तो चलें हम, मौसम अच्छा है, बाहर मछलियां मारें। तो वह आदमी कहता है, मैं तो न जा सकंगा, मेरा लड़का है उसे ले जाएं।
नसरुद्दीन उससे कहता है, माफ करें, मैं सोचता हूं, आपका एकमात्र लड़का! नसरुद्दीन उससे कहता है, मैं सोचता हूं, आपका एकमात्र लड़का होगा यह। क्योंकि एक दफा देखा होगा आपने प्रेम, काम, फिर दुबारा तो...आई प्रिज्यूम योर ओनली सन, नसरुद्दीन कहता है। क्योंकि एक दफा ताश खेल कर देखा, बेकार पाया। एक दफा शतरंज खेल कर देखी, बेकार पाई। एक दफा मछली मार कर देखी, बेकार पाई। तो आई प्रिज्यूम योर ओनली सन!
जीवन में कोई तथ्य ऐसा नहीं है, जो दुबारा देखने योग्य है। और अगर दुबारा देखने योग्य है, तो वह तथ्य नहीं होगा, उसमें कुछ रहस्य होगा, जो अनजाना रह गया, जिसको फिर जानना पड़ेगा, फिर जानना पड़ेगा। फिर भी अनजाना रह जाएगा, तो फिर जानना पड़ेगा। जिस चीज को हम पूरा जान लें, उसे दुबारा जानने का कोई भी सवाल नहीं है। क्या सवाल है? नहीं जान पाते हैं पूरा, इसलिए दुबारा जानते हैं, तिबारा जानते हैं, हजार बार जानते हैं, और फिर भी एक हजार एक बार जानने की कामना जगती है। क्योंकि वह अनजाना, अपरिचित रहस्य पीछे शेष रह गया।
तो काम ठीक कहता है, अगर कोई रहस्य नहीं है, तो आत्महत्या एकमात्र दार्शनिक समस्या है। हमारा युग सर्वाधिक ज्ञानपूर्ण, सर्वाधिक आत्महत्याएं करने वाला, सर्वाधिक अहंकार से भरा। इसलिए हम कहते हैं, कोई ईश्वर नहीं है, कोई धर्म नहीं है, कोई रहस्य नहीं है।
और लाओत्से कहता है, जो विरल करेगा अस्मिता को, सघन करेगा रहस्य को, उसके लिए जीवन के सूक्ष्म और चमत्कारी...।
ये सूक्ष्म और चमत्कारी, दो शब्द खयाल में ले लेने चाहिए। एक, सूक्ष्म से हम जो मतलब लेते हैं साधारणतः, वह लाओत्से जैसे लोग नहीं लेते। सूक्ष्म से हमारा मतलब होता है कम स्थूल। हम कहते हैं, दीवार स्थूल है, वायु सूक्ष्म है। लेकिन वायु भी स्थूल है, सूक्ष्म नहीं; कम स्थूल है। जो भेद है वायु में और दीवार में, वह बहुत ज्यादा नहीं है। वह कोई गुणात्मक भेद नहीं है, वह मात्रा का ही भेद है। क्वांटिटी का भेद है, क्वालिटी का भेद नहीं है।
और वायु की भी दीवार बनाई जा सकती है। और वायु से भी आपको इतने जोर से गिराया जा सकता है, जितना आपकी दीवार से आप टकरा कर कभी न गिरें। और दीवार से आप बच भी जाएं, अगर वायु की सघन दीवार खड़ी की जाए, तो आप उससे बच न पाएं। दीवार में ही वजन नहीं है, वायु में भी वजन है, बहुत ज्यादा वजन है। वह तो आपको पता नहीं चलता, क्योंकि आपके चारों तरफ शरीर पर वाय का एक सा वजन पड़ता है। इसलिए वायु अपने वजन को काट देती है। नहीं तो हजारों पौंड का वजन आपके ऊपर है। आप मर जाएं दब कर इसी वक्त, अगर एक तरफ से वायु अलग हो जाए। जब जोर की हवा चलती है, तो आप शायद आगे को गिर पड़ने को होते हैं। तो आप सोचते होंगे, पीछे की हवा धक्का दे रही है इसलिए, तो आप गलत सोचते हैं। पीछे की हवा आपको धक्का देकर नहीं गिरा रही है। पीछे की हवा के धक्के के कारण आपके आगे की हवा धक रही है, वहां खाली जगह पैदा हो रही है, वह खाली जगह में आप गिरेंगे।
वायु का तो अपना बहुत स्थूल रूप है। हम किन चीजों को सूक्ष्म कहते हैं? हमारा सब सूक्ष्म स्थूल का ही एक रूप होता है। लाओत्से जैसे लोग जब सूक्ष्म का उपयोग करते हैं, दि सटल, तो उनका मतलब होता है वह, जो इंद्रियों की किसी भी भांति पकड़ में नहीं आता। सूक्ष्म का अर्थ समझ लेना आप। वायु हमारी आंख को नहीं दिखाई पड़ती, लेकिन हाथ को तो दिखाई पड़ती है। इंद्रियों की पकड़ में आती है, सूक्ष्म नहीं है। सूक्ष्म का अर्थ है, जो इंद्रियों की पकड़ के बाहर है।
आपने कोई ऐसी चीज जानी है जो इंद्रियों की पकड़ के बाहर है? जो भी जाना है, सब इंद्रियों की पकड़ से जाना है। देखा तो आंख से, सुना तो कान से, सूंघा तो नाक से, छुआ तो हाथ से। आपके अनुभव में सूक्ष्म का कोई भी अनुभव नहीं है। इसे हम ऐसी व्याख्या कर लें: जो इंद्रियों से जाना जाता है, वह स्थल; और जो इंद्रियों से नहीं जाना जाता और फिर भी जाना जाता है, वह सूक्ष्म। तब आपको खयाल में आएगा। नहीं तो हम जो फर्क करते हैं, वह इंद्रियों में फर्क कर लेते हैं।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज