________________
Download More Osho Books in Hindi
Download Hindi PDF Books For Free
नहीं, वह अनप्रेडिक्टेबल एलीमेंट मौजूद है। और ऐसा नहीं कि पचास साल कम हैं, पांच सौ साल में भी वह मौजूद ही रहेगा। वही रहस्य है, दि अनप्रेडिक्टेबल! वह जिसकी हम कोई घोषणा न कर पाएंगे, जिसकी हम कोई भविष्यवाणी न कर पाएंगे! जिसको हम जान कर भी न कह पाएंगे कि हमने जान लिया।
और किसी किनारे से देखें।
संत अगस्तीन से कोई पूछता है कि समय क्या है? व्हाट इज़ टाइम? तो अगस्तीन कहता है, जब तक मुझसे कोई नहीं पूछता, मैं भलीभांति जानता हूं; और जब कोई पूछता है, तभी गड़बड़ हो जाती है।
आप भी जानते हैं कि समय क्या है; भलीभांति जानते हैं। समय से उठते हैं। अगर न जानते, तो समय से उठते कैसे? न जानते, तो समय से घर कैसे पहुंचते? न जानते, तो कैसे तय करते कि समय हो गया? जानते जरूर हैं समय को। लेकिन अगस्तीन ने ठीक कहा है कि जब तक मुझसे कोई नहीं पूछता, तब तक मैं बिलकुल जानता हूं कि व्हाट इज़ टाइम, और तुमने पूछा कि सब खो जाता है। कोई पूछे ले कि क्या है समय? तो आज तक जगत का बुद्धिमान से बुद्धिमान आदमी उत्तर नहीं दे पाया है। और ऐसे बुद्धिहीन से बुद्धिहीन आदमी समय का उपयोग कर रहा है। ऐसे मूढ़ से मूढ़ आदमी समय में जी रहा है। और बुद्धिमान से बुद्धिमान आदमी इशारा नहीं कर सकता कि यह है समय।
छोड़ें, समय थोड़ी जटिल बात है; जीवन तो इतनी जटिल नहीं। हम सब जी रहे हैं। हम काफी जी लिए हैं। जो जानते हैं, वे कहते हैं, हजारों-हजारों जन्म जी लिए हैं। छोड़ें उन्हें; इतना ही मान लें कि हम एक जन्म जी लिए हैं। पचास साल, चालीस साल, बीस साल, साठ साल जी लिए हैं। जीवन को जाना है। लेकिन अगर कोई पछे कि जीवन क्या है? तो बस चुक जाता है हाथ। क्या हो जाता है? जीवन क्या है, जब जी लिए हैं, तो बताना चाहिए।
लाओत्से कहता है, इसे हम रहस्य कहते हैं। जान भी लेते हैं, फिर भी अनजाना रह जाता है। सब जान लेते हैं, फिर भी पाते हैं कि सब अनजाना रह गया। अस्तित्व चारों तरफ मौजूद है। भीतर-बाहर वही है। रोएं-रोएं में, श्वास-श्वास में वही व्याप्त है। फिर भी अनजाना है। क्या जाना हमने?
ये लहरें समुद्र की लाखों साल से आकर इस तट पर टकरा कर गिर रही होंगी। तट, अभी तक ये लहरें जान न पाई होंगी कि क्या है? और न यह तट जान पाया होगा कि ये लहरें क्या हैं? लेकिन आप कहेंगे, लहरों की छोड़िए। लेकिन अगर आप भी लाख वर्ष तक इस तट से इसी तरह टकराते रहें, तो भी इतना ही जान पाएंगे जितना लहरें जान पाई हैं। क्या हम जान पाते हैं? एक ऊपरी परिचय, एक एक्वेनटेंस हो जाता है। और उस ऊपरी परिचय को हम कहने लगते हैं ज्ञान। इस ऊपरी परिचय को ज्ञान कहने से बड़ी भांति पैदा होती है; तब हम रहस्य से वंचित रह जाते हैं। लाओत्से कहता है, इस ऊपरी परिचय को ज्ञान मत समझना, जानना कि बस ऊपरी पहचान है। तब तुम्हें प्रतिपल रहस्य चारों तरफ उपस्थित दिखाई पड़ेगा। रहस्य है ही। कितना ही जान लें हम, उसका कोई अंत नहीं होता।
और अब, अब जब कि विज्ञान थोड़ा गहन और गंभीर हुआ है और उसका बचपना टूटा है, क्योंकि विज्ञान को अभी पैदा हुए ज्यादा दिन नहीं हुए। धर्म को, अंदाजन बीस हजार साल के तो चिह्न मौजूद हैं धर्म को पैदा हुए। तो धर्म ने अगर आज से पांच हजार साल पहले भी यह बात कही है कि जीवन रहस्य है, तब भी वह पंद्रह हजार साल पुरानी घटना थी, अनुभव था। विज्ञान को तो पैदा हुए तीन सौ साल हुए हैं। बिलकुल बचपना है। यह बात पक्की है कि जिस दिन विज्ञान भी पंद्रह हजार साल की उम्र का होगा, तब वह इतने ही जोर से घोषणा करके कहेगा कि जीवन रहस्य है।
पंद्रह हजार साल तो दूर है; अभी आइंस्टीन मौजूद था। तो हमने विज्ञान की जो बड़ी से बड़ी प्रतिभा पैदा की है, वह उस आदमी में थी। लेकिन मरते वक्त वह आदमी कह कर गया है कि मैं सोचता था अपनी युवा अवस्था में कि सत्य को जाना जा सकेगा, अब मैं ऐसा नहीं सोचता हूं। अब मैं सोचता हूं कि सत्य अज्ञेय है और अज्ञेय ही रहेगा। हम बहुत कुछ जान लेंगे, यह पक्का है। फिर भी जानने को उतना ही शेष रहेगा, जितना हमारे जानने के पहले शेष था। हमारे जानने से कुछ अंतर न पड़ेगा। वह ऐसा ही होगा, जैसे हम एक चुल्लू भर पानी समुद्र से भर लाए। शायद चुल्लू भर पानी समुद्र से भरने में समुद्र थोड़ा कम भी होता होगा, लेकिन वह जो अज्ञात का चारों तरफ विस्तार है, अज्ञेय का, अननोएबल का, वह हमारे कितने ही जान लेने से चुल्लू भर भी कम नहीं होता।
धर्म इसे रहस्य कहता है, वह सदा शेष ही रह जाता है-अनजाना, अपरिचित। उतना का उतना मौजूद रह जाता है। रहस्य का अर्थ
तीन चीजें समझ लें। अज्ञान; अज्ञान रहस्य नहीं है। विज्ञान समझता है कि अज्ञान की वजह से ही यह रहस्य मालूम होता है। वह विज्ञान की भूल है। अज्ञान रहस्य नहीं है; क्योंकि अज्ञान में हमें कुछ पता ही नहीं है। रहस्य का तो पता होगा ही कैसे! कुछ भी पता नहीं है। ज्ञान भी रहस्य नहीं है; क्योंकि ज्ञान में हमें कुछ पता है। रहस्य ज्ञान से ऊपर की घटना है। अज्ञान के ऊपर ज्ञान घटता है; ज्ञान के ऊपर रहस्य घटता है। जो अज्ञान से जानने में जाएगा, वह ज्ञानी हो जाएगा। और जो ज्ञान से भी और ऊपर जानने में जाएगा, वह रहस्यवादी, मिस्टिक हो जाएगा।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज