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क्या है? विज्ञान चीजों को नाम देते चला जाता है। और जिस चीज को विज्ञान नाम देने में समर्थ हो जाता है, समझता है कि हमने जान लिया। नाम की परिभाषा तय कर देता है और जानता है कि हमने जान लिया।
विज्ञान इसीलिए रोज स्पेशलाइज्ड होता चला जाता है। एक युग था कि विज्ञान एक था। फिर उसके विभाजन होने शुरू हो गए। फिर विज्ञान की जो शाखाएं थीं, उनकी भी प्रशाखाएं होनी शुरू हो गईं। और अब प्रशाखाओं की भी प्रशाखाएं होनी शुरू हो गईं।
एक वक्त था कि सारी दुनिया में सारा ज्ञान फिलासफी के अंतर्गत आ जाता था। इसलिए आज भी हम अपनी पुरानी यूनिवर्सिटीज में पी एच.डी. की डिग्री दिए चले जाते हैं-उसको भी, जिसका फिलासफी से कोई संबंध नहीं है। अब एक आदमी केमिस्ट्री में रिसर्च करता है, उसे हम पी एच.डी. की डिग्री देते हैं। वह एक हजार साल पुरानी आदत है। उसको डाक्टर ऑफ फिलासफी कहते हैं। फिलासफी से उसका कोई लेना-देना नहीं है अब। लेकिन एक हजार साल पहले केमिस्ट्री फिलासफी का एक हिस्सा थी।
अरस्तू ने एक किताब लिखी है आज से दो हजार साल पहले। तो उसकी किताब के एक-एक अध्याय का जो नाम था, आज एक-एक विज्ञान का नाम है। और बहुत मजेदार मजाक की घटना घटी है। उसने फिजिक्स का जो चैप्टर लिखा था, उसके बाद का जो चैप्टर था, वह धर्म का था। और इसलिए पश्चिम में यूनान धर्म को मेटाफिजिक्स कहने लगा। मेटाफिजिक्स का इतना ही मतलब होता है, फिजिक्स के बाद वाला चैप्टर। फिजिक्स के आगे जो अध्याय आता है, उसका नाम मेटाफिजिक्स था। आज भी आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी पर जो पुरानी तख्ती लगी है फिजिक्स के डिपार्टमेंट पर, वह लगी है: डिपार्टमेंट ऑफ नेचुरल फिलासफी। हजार साल पहले फिजिक्स नेचुरल फिलासफी थी। फिर विभाजन हुआ। और विज्ञान तो विभाजित होगा। क्योंकि जितना ज्यादा हमें जानना हो, जितना व्यवस्थित जानना हो, उतना संकीर्ण करना पड़ेगा खोज को, उतना नैरो डाउन करना पड़ेगा। जितना ज्यादा जानना हो किसी चीज के संबंध में, उतनी कम चीज जानने के लिए चुननी पड़ेगी। इसलिए विज्ञान की परिभाषा है, ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश कम से कम के संबंध में।
तो जब हम कम करेंगे तो चीजें टूटती चली जाएंगी। अब तो फिजिक्स भी अकेली नहीं है। अब तो फिजिक्स को भी हमें हिस्सों में तोड़ देना पड़ा। अब तो केमिस्ट्री भी एक विज्ञान नहीं है। अब तो आर्गेनिक केमिस्ट्री अलग होगी, इन-आर्गेनिक अलग होगी। और रोज टूटते जाएंगे हिस्से। विज्ञान धीरे-धीरे पत्तों पर पहुंच जाता है, और रहस्य से दूर होता चला जाता है।
लाओत्से कहता है, नाम और अनाम के, दोनों के बीच में जो एक होना है, उसी का नाम मिस्ट्री है, उसी का नाम रहस्य है।
असल में, जो अद्वैत की तरफ जाएगा, वह रहस्य की तरफ जाएगा। और जो अनेक की तरफ जाएगा, वह रहस्य की तरफ नहीं जाएगा। इसलिए विज्ञान धीरे-धीरे रहस्य को तोड़ता चला जाता है। वह सोचता है, कोई रहस्य नहीं है, सब रहस्य हम जान लेंगे। और फिर भी रहस्य अपनी जगह ही खड़ा रहेगा। विज्ञान का जानने का ढंग ऐसा है कि वह रहस्य से वंचित हो जाएगा। और इसलिए विज्ञान जितना विकसित हुआ, आदमी का रहस्य-भाव उतना कम हुआ। धर्म को जो नुकसान पहुंचे हैं, उनमें गहरे से गहरा नुकसान है रहस्य-भाव के कम होने से। कोई रहस्य नहीं मालूम पड़ता। सब चीजें ज्ञात हैं।
एक फूल आप देखते हैं। कोई कहता है, सुंदर है। आप कहते हैं, बेकार की बात कर रहे हो। इसमें कौन सा सौंदर्य है? फला-फलां रंग हैं, फला-फलां तत्वों से मिल कर बना है। जाएं और वैज्ञानिक से विश्लेषण करवा लें, वह सब निकाल कर बता देगा कि क्या-क्या है। और सौंदर्य इसमें कहीं भी नहीं है।
जैसे ही हम चीजों के सारे तथ्यों को जान लेते हैं और नाम दे देते हैं, वैसे ही वह जो सबके भीतर छिपा हुआ अद्वैत था, वह लुप्त हो जाता है, वह खो जाता है। उसके खोने के साथ ही रहस्य विसर्जित हो जाता है।
लाओत्से कहता है, अनेक जिसे हमने नाम दिए हैं, फिर भी जो एक है, उसे ही हम रहस्य कहते हैं। अनेक होकर भी जो एक ही बना रहता है, उसे ही हम रहस्य कहते हैं। भिन्न-भिन्न दिखाई पड़ कर भी जो अभिन्न ही बना रहता है, उसे ही हम रहस्य कहते हैं। वैत में बंटा हुआ दिखाई पड़ता है, फिर भी बंटता नहीं, अनबंटा है, अनडिवाइडेड है, उसे ही हम रहस्य कहते हैं। रहस्य का मतलब समझ लें। रहस्य का मतलब होता है, जिसे हम जान भी लेते हैं और फिर भी नहीं जान पाते। धर्म की भाषा में रहस्य का अर्थ होता है, जिसे हम जान भी लेते हैं और फिर भी नहीं जान पाते। जिसे हम पहचान भी लेते हैं और फिर भी जो अनपहचाना रह जाता है।
इसे उदाहरण से समझें तो शायद खयाल में आ जाए। आप किसी व्यक्ति को प्रेम करते हैं और पचास साल उसके साथ रहे हैं। क्या आप उसे जान पाए? परिचित तो भलीभांति हो गए होंगे। पचास साल में अगर परिचित नहीं हो पाए तो फिर कब परिचित हो पाएंगे? परिचित भलीभांति हो गए हैं, सब कुछ जानते हुए मालूम पड़ते हैं। और फिर भी क्या आप साहस से कह सकेंगे कि आप उसे जान पाए? उसका कोना-कोना जान लिया, उसकी एक-एक बात जान ली, उसकी सब आदतों का आपको पता है। फिर भी आप क्या कह सकते हैं कि वह प्रेडिक्टेबल है? कल सुबह क्या करेगा, यह आप बता सकते हैं?
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