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निकल रहा है एक तरफ से, दूसरी तरफ कोई भी नहीं है। शुद्ध क्रोध! और तब उनको समझ आया कि ये तो सिर्फ बहाने थे लोग, जिन पर मैंने निकाला। यह आग तो मेरे भीतर ही है, जो बहाने खोजती है। तब एक अंडरस्टैंडिंग पैदा हुई, एक समझ पैदा हुई। क्रोध को एक नए रूप में देखा। आज वह दूसरे पर निकलने का दूसरे पर जिम्मा न रहा। आज अपने ही भीतर कोई आग है जो निकलना चाहती है, अपने पर ही जिम्मा आ गया; आब्जेक्टिव न रहा, सब्जेक्टिव हो गया। आपने गाली दी, इसलिए क्रोध किया था, ऐसा नहीं; अब समझ में आया कि मैं क्रोध करना चाहता था और आपकी गाली की प्रतीक्षा थी। और अगर आप गाली न देते, तो मैं कहीं और से गाली खोजता। मैं उकसाता कि गाली दो। मैं ऐसी तरकीब करता, मैं ऐसी बात करता, मैं ऐसा काम करता कि कहीं से गाली आए। क्योंकि मेरे भीतर जो भर गया था, वह रिलीज होना चाहता था। उसे मुक्त होना जरूरी था।
दूसरे दिन उन्हें दिखाई पड़ा-वे दिन भर कर रहे हैं; तीन-चार बार दिन में कर रहे हैं; घंटे-घंटे भर तीन-चार बार-दूसरे दिन उन्हें दिखाई पड़ा कि यह क्रोध किसी पर नहीं है, यह क्रोध मेरे भीतर है। और आज तीसरा दिन था उनका। आज उन्होंने मुझे आकर कहा कि हैरान हूं; जैसे ही यह दिखाई पड़ा कि किसी पर नहीं है, मेरे ही भीतर है, वैसे ही जैसे भीतर कोई चीज विदा हो गई, सब शांत हो गया है। मैं निपट असमर्थ हो गया हूं। अगर मुझे कोई गाली दे इस वक्त, तो मैं क्रोध न कर पाऊंगा। इस वक्त तो नहीं ही कर पाऊंगा। क्योंकि इस वक्त भीतर से जैसे कोई बहुत भार था, वह फिंक गया है। सब खाली हो गया है।
समझ का अर्थ है, आपके भीतर जो भी घटे, वह आपके जानते, अवेयरनेस में, आपके होश में, आपके चैतन्य में घटे। जो भी! और तब बहुत कुछ घटना बंद हो जाएगा अपने आप। और जो बंद हो जाए, वही पाप है। और जो होशपूर्वक भी चलता रहे, वही पुण्य है। और समझ कसौटी है। समझ के साथ जो चल पाए, वह पुण्य है; और समझ के साथ जो न चल पाए, वह पाप है। नासमझी में ही जो चल सके, वह पाप है। और नासमझी में जिसे चलाया ही न जा सके, वह पुण्य है। तो यह समझ का अर्थ इतना ही हुआ कि मेरे भीतर जो मी और सीरिया
की
मोटारसा ही मामीनार भी घटता है, वह मेरे ध्यानपूर्वक घटे, मेरे गैर-ध्यान में न घटे।
और सब गैर-ध्यान में घटता है। कब आप क्रोधित हो जाते हैं, कब आप प्रेम से भर जाते हैं, कभी आप सुख अनुभव करते हैं, कब दुख अनुभव करते हैं, सब भान के बाहर है, अनकांशस है। अचानक लगता है, सुखी हूं; अचानक लगता है, दुखी हूं। लगता है, बड़ा विषाद है। और जब आपको विषाद लगता है, तब आप यह नहीं सोचते कि यह मेरे भीतर से आ रहा है। तब आस-पास आप कारण खोजते हैं: कौन कर रहा है, विषाद में मुझे डाल रहा है? लड़का डालता है, कि लड़की, कि पत्नी, कि पति, कि मित्र, कि धंधा? कौन है? फौरन आप खोजने निकल जाते हैं। और खोज कर किसी न किसी को पकड़ लेते हैं।
लेकिन वे सब एस्केप गोट्स हैं, वे सब बहाने हैं, वे सब खूटियां हैं। वे कोई असली नहीं हैं। क्योंकि मजे की बात यह है कि आपको बिलकुल अकेले कमरे में बंद कर दिया जाए, तब भी यही सब आप करेंगे जो आप किसी के साथ कर रहे हैं। यही करेंगे। आप सोचते हैं, मित्र मिल जाता है, इसलिए बात करते हैं? अकेले में छोड़ दिए जाएं, अकेले में बात करेंगे। सपने के मित्र से बात करेंगे। आप सोचते हैं, क्रोध करते हैं, क्योंकि कोई गाली देता है? तो आपको बंद कमरे में रख दिया जाए, पंद्रह दिन में आप पाएंगे कि आप सैकड़ों दफे क्रोधित हो गए बंद कमरे में। हो सकता है, कमीज जोर से पटकी हो; हो सकता है, बर्तन फेंक दिया हो; हो सकता है, स्नान करते वक्त क्रोध निकाला हो। पच्चीस रास्ते से आप क्रोध निकाल लेंगे।
यह समझपूर्वक हो सके, जो भी भीतर घटता है। अंतर-जीवन की कोई भी घटना मेरे गैर-ध्यान में न हो, इसका नाम समझ है, अंडरस्टैंडिंग है। और मजे की बात यह है कि समझ अगर हो, तो जो गलत है, वह होना अपने से बंद हो जाता है। समझ न हो, तो जो सही है, उसे आप कितना ही उपाय करें तो भी आप उसको शुरू नहीं कर सकते।
फिर कल।
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