SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free लाओत्से तो कहता है कि अंडरस्टैंडिंग, समझ, प्रज्ञा! अगर खयाल में आ जाए मन का यह जाल, तो आप इसी क्षण बाहर हो जाएंगे खयाल में आने से ही, कोई और उपाय की जरूरत नहीं है। मुझे यह समझ में आ जाए कि यह जहर है, तो यह प्याला मेरे हाथ से छूट जाएगा। इस प्याले को छुड़ाने के लिए मुझे कोई कसरत करने की जरूरत नहीं है। मुझे समझ में आ जाए, आग जलाती है, तो यह हाथ आग की तरफ जाने से रुक जाएगा। इसे रोकने के लिए मुझे दो-चार पहलवान लगाने की जरूरत नहीं है। उपाय तो तब करने पड़ते हैं जब समझ न हो, समझ हो तो उपाय की जरूरत नहीं है। इसलिए दो मार्ग हैं। एक मार्ग है उपाय का, नासमझी का। नासमझ आदमी कहता है, समझ तो मेरे पास नहीं है, कोई उपाय बता दो, जिससे मैं समझ की कमी पूरी कर लूं। कोई तरकीब, कोई टेक्नीक, कोई मेथड। नासमझी उपाय मांगती है, बिना उपाय के नहीं जी सकती। समझदारी के लिए किसी उपाय की जरूरत नहीं है। बात समझ में आ गई और बात समाप्त हो गई। समझ लेना ही काफी है। उसका कारण है। क्योंकि लाओत्से जैसे लोगों का खयाल है कि हम वस्तुतः बंधे हुए नहीं हैं, हमें बंधे होने का सिर्फ खयाल है। हम बीमार नहीं हैं, केवल अज्ञानी हैं। दो बातें हैं। एक आदमी बीमार है, सच में बीमार है। वास्तविक बीमारी उसके छाती को पकड़े हुए है। तब तो दवा की जरूरत पड़ेगी ही, उपाय आवश्यक होगा। लेकिन एक आदमी है, जो बीमार बिलकुल नहीं है, सिर्फ वहम है उसे कि मैं बीमार हूं। तब दवा देना मंहगा और खतरनाक भी हो सकता है। क्योंकि दवा तब नई बीमारी बन सकती है। इस आदमी को तो सिर्फ समझ चाहिए कि वह बीमार नहीं है। और अगर इसे दवा भी देनी पड़े कभी, तो शक्कर की गालियां ही देनी पड़ेंगी, पानी ही पिलाना पड़ेगा। वह सिर्फ धोखा ही होने वाला है दवा का। वह दवा होने वाली नहीं है। लाओत्से का खयाल है-और ठीक खयाल है-कि जीवन की जो कठिनाई है, वह अज्ञान की कठिनाई है। वह वास्तविक कठिनाई नहीं है। हम सच में ही परमात्मा से दूर नहीं हो गए हैं, सिर्फ हमें खयाल है। हम सच में ही अपने जीवन के महल के बाहर चले नहीं गए हैं, चले जाने का हमें सिर्फ खयाल है। हमने जीवन की संपदा को खोया नहीं है, हम सिर्फ भूल गए हैं। अगर यह बात है, तो लाओत्से कहता है, उपाय की क्या जरूरत है? उपाय का कोई सवाल नहीं है। समझ पर्याप्त होगी। समझ ही उपाय है। बुद्ध ने कहीं कहा है, कि जो नहीं समझते, उन्हें मैंने विधियां दी हैं। और जो समझते हैं, उन्हें मैंने समझ दी है। जो नहीं समझते, उन्हें मैंने उपाय दिए हैं कि तुम ऐसा-ऐसा करो तो हो जाएगा। जो समझते हैं, उन्हें मैंने समझा दिया है। बात समाप्त हो गई। करीब-करीब...जैसा कि मनोवैज्ञानिक की कोच पर सैकड़ों मरीज रोज आते हैं, जिन्हें बीमारी नहीं होती। पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, वे बीमार तो हैं ही। बीमारी कोई नहीं है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बीमार तो वे हैं ही। असली बीमारों से भी ज्यादा बीमार हैं! और बीमारी बिलकुल नहीं है। सिर्फ वहम है, सिर्फ खयाल है कि बीमारी है। उनका भी इलाज करना पड़ता है। इलाज क्या है? फ्रायड या जुंग क्या करते रहे हैं? कुछ नहीं, उस मरीज से वर्षों तक उसकी बीमारी को उखाड़ कर बात करते रहे हैं। इस बातचीत के दौरान अगर समझ पैदा हो जाए, तो वह आदमी बीमारी के बाहर हो जाता है। और अगर समझ पैदा न हो, तो वह आदमी बीमारी के भीतर रह जाता है। जीवन की समस्या वास्तविक बीमारी की समस्या नहीं है। जीवन की समस्या एक भ्रांत, सूडो बीमारी की समस्या है। इसलिए लाओत्से किसी उपाय की बात नहीं करता। वह कहता है, निरुपाय हो रहो! बस, यही उपाय है। जान लो, समझ लो और ठहर जाओ, बस यही उपाय है। लाओत्से की बात किसी हताशा, किसी पराजय की बात भी नहीं है। यह बहुत मजे की बात है। यह समझनी चाहिए। यह सदा मन में उठती है। लाओत्से जैसे व्यक्तियों की बात सुन कर ऐसा लगता है, एस्केपिस्ट हैं, पलायनवादी हैं। कहते हैं, कुछ चाहो मत। नहीं चाहेंगे तो बढ़ेंगे कैसे? यदयपि चाह कर कितने बढ़ गए हैं, इसका कोई हिसाब रखा? चाह कर कितने बढ़ गए हैं? अल्डुअस हक्सले से कोई पूछ रहा था कि आपकी तीन पीढ़ियां-हक्सले परिवार की तीन पीढ़ियां प्रोग्रेस और प्रगति के पक्ष में काम करती रही हैं, बाप और परदादा से लेकर तीन परिवार मनुष्य-जाति की प्रगति हो, इस का काम करते रहे हैं तो अल्डुअस से किसी ने पूछा है कि आपकी तीन पीढ़ियों ने काम किया है मनुष्य की प्रगति के लिए। आपसे हम लेखा चाहते हैं, ब्योरा चाहते हैं इस बात का कि क्या आप कह सकते हैं कि आदमी आज से पांच हजार साल पहले जैसा था, उससे आज ज्यादा सुखी है? ज्यादा शांत है? ज्यादा आनंदित है? अल्डुअस हक्सले ने कहा, अगर मेरे परदादा से पूछा होता, तो वे हिम्मत से कह सकते थे कि हां, है! अगर मेरे बाप से पूछा होता, तो वे थोड़ा झिझकते। मैं उत्तर ही नहीं दे सकता। नहीं, आदमी सुखी भी नहीं हुआ, शांत भी नहीं हुआ, आनंदित भी नहीं हुआ। और प्रगति काफी हो गई। प्रगति कम न हुई, प्रगति काफी हो गई। लाओत्से की बात से यह खयाल उठता है, प्रगति रुक जाएगी। लेकिन आदमी प्रगति के लिए है क्या? या कि प्रगति आदमी के लिए है? अगर आदमी सिर्फ प्रगति के लिए है, तो फिर ठीक है, आदमी की कुर्बानी हो जाए, कोई चिंता नहीं। प्रगति होनी चाहिए; होकर रहनी इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy