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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free एक सूफी फकीर हुआ है, बायजीद। बायजीद जब पहली दफा अपने गुरु के पास गया, तो उसे बड़ी नींद की आदत थी। गुरु समझाता रहता, बायजीद सो जाता। गुरु बायजीद को बाहर पहरे पर बिठालता, बायजीद सो जाता। गुरु ने बहुत बार कहा कि देख, तू सोने से ही चूक जाएगा। पर बायजीद कहता कि मैं इतना तो जागता रहता हूं; ऐसा तो नहीं कि सोया ही रहता हूं। बहुत जागता भी हूं, थोड़ा सोता भी हूं। पर उसके गुरु ने कहा, तुझे पता नहीं है कि कभी ऐसा होता है कि चौबीस घंटे जागे हो और एक क्षण को सो गए हो और सब खो जाता है। बायजीद ने उस रात एक सपना देखा कि वह मर गया है और स्वर्ग के द्वार पर पहुंच गया है। द्वार बंद हैं और द्वार पर एक तख्ती लगी है कि जो भी द्वार पर आए और प्रवेश का इच्छुक हो, वह चुपचाप बैठ जाए। एक हजार वर्ष में एक बार द्वार खुलता है, एक क्षण को। सजग हो बैठा रहे, जब द्वार खुले, भीतर प्रवेश कर जाए। बायजीद बड़ा घबड़ाया, एक हजार साल में एक बार खुलेगा एक क्षण को! और झपकी तो, एक हजार साल का मामला है, लगती ही रहेगी। बड़ी साहस करके, बड़ी हिम्मत जुटा कर, बड़ी ताकत लगा कर, आंखों को खोल कर बैठा-बैठा-बैठा, फिर झपकी लग गई। जब झपकी खुली तो देखा कि द्वार बंद हो रहा था। घबड़ाया, भागा, लेकिन द्वार बंद हो चुका था। फिर बैठा, फिर एक हजार साल बीते। फिर एक दिन झपकी लगी थी, आवाज आई कि द्वार खुला जैसे। लेकिन मन ने कहा, यह सब सपना है; ऐसे द्वार नहीं खुला करते। अभी हजार साल भी कहां पूरे हुए! फिर भी घबड़ा कर उठा, लेकिन देखा कि द्वार बंद हो रहा है। नींद खुल गई। सपने थे। गुरु के पास, आधी रात थी, उसी वक्त गया। और कहा, अब पलक न झपकाऊंगा, मुझे माफ कर दें। गुरु ने कहा, हुआ क्या? अपना सपना कहा। गुरु ने कहा, तूने ठीक से नहीं देखा। दरवाजे के इस तरफ तख्ती लगी थी कि हजार साल में एक बार द्वार खुलेगा, एक क्षण को खुला रहेगा और फिर बंद हो जाता है। जब द्वार बंद हो रहा था, तूने दूसरी तरफ लगी हुई तख्ती देखी कि नहीं? बायजीद ने कहा, दूसरी तरफ की तख्ती देखने का मौका नहीं मिला। द्वार करीब-करीब बंद ही हो रहा था तभी, तभी दो दफा...। बायजीद के गुरु ने कहा, अब दुबारा कभी सपना आए तो दूसरी तरफ की तख्ती भी एक दफा देख लेना। उस पर यह भी लिखा है कि यह द्वार तभी खुलता है, जब तुम सोते हो। जब हम मूर्छित होते हैं, तभी द्वार खुलता है। ऐसा द्वार के खुलने की क्या शर्त हो सकती है? असल बात यह है, अगर और गहरे में जाएं-बायजीद के गुरु ने उससे नहीं कहा-अगर और गहरे में जाएं, तो जब द्वार खुलता है, तभी हम मूर्छित हो जाते हैं। वह हमारे मन का कारण है। ऐसा नहीं कि जब हम मूर्छित होते हैं, तब द्वार खुलता है। लेकिन जब द्वार खुलता है, तभी हम मूर्छित हो जाते हैं। क्योंकि अगर वह द्वार एक दफा हमें खुला दिख जाए, तो फिर मन के बचने का कोई उपाय नहीं है। इसलिए मन अपनी पूरी सुरक्षा करता है; वह अपने को बचाने के पूरे इंतजाम करता है। सब तरह के इंतजाम करता है। अभी परसों एक युवक मेरे पास आए। और उन्होंने कहा कि ध्यान में तो...। अभी दो महीने पहले आए थे, तो बड़े बेचैन थे। मन शांत कैसे हो? अशांति बहुत है; बेचैनी, घबड़ाहट बहुत है। मन शांत होना शुरू हुआ, घबड़ाहट कम होनी शुरू हुई। तो अभी वे एक नई घबड़ाहट लेकर आए थे, वे यह कह रहे थे कि मन तो शांत हो रहा है, घबड़ाहट भी कम हो रही है, लेकिन अब एक नया डर लगता है कि और भीतर प्रवेश करना या नहीं? क्या डर है? कहीं ऐसा तो न होगा कि जीवन की वासनाओं में रुचि कम हो जाए? कहीं ऐसा तो न होगा कि जीवन की जो चारों तरफ दौड़ है, उसमें रुचि कम हो जाए? ऐसा तो न होगा कि मेरी महत्वाकांक्षा मर जाए? नहीं तो फिर विकास कैसे करूंगा? ठीक कह रहे हैं, मन ऐसी ही बातें खोज कर लाता है। तभी द्वार खुलता है, तभी मन ऐसी बातें खोज लाता है। ऐसा तो न होगा कि मेरा सब बना-बनाया जो व्यवस्था है, वह बिगड़ जाए? मन तत्काल कोई खबर भीतर से खोज लाता है। अभी एक सज्जन ने मुझे लिखा कि ध्यान बहुत गहरा जा रहा है, लेकिन अब मैं कर नहीं पाता हूं, क्योंकि मुझे ऐसा डर लगता है कि कहीं ध्यान में मैं मर न जाऊं। ऐसी घबडाहट होती है कि ध्यान में मैं मर न जाऊं! अगर ध्यान में मर गया, तो फिर क्या होगा? आप जिम्मेवार होंगे? मैंने कहा, तुम्हारा क्या खयाल है, बिना ध्यान के मरोगे ही नहीं? अगर तुम्हारा यह पक्का हो कि तुम बिना ध्यान के मरोगे ही नहीं, तो ध्यान में मरोगे तो जिम्मा मैं ले सकता है। लेकिन अगर तुम बिना ध्यान के भी मर सकते हो, तो ध्यान का जिम्मा मुझ पर क्यों डालते हो? लोग मुझे लिखते हैं, हम पागल तो न हो जाएंगे? ध्यान गहरा होता है तो हम पागल तो न हो जाएंगे? इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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