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किस अस्वीकृति से यह चाह पैदा , कौन सी चीज थी जो आपने चाही ऐसी न हो, अन्य हो, अन्यथा हो, भिन्न हो, और चाह का जन्म हुआ।
नसरुद्दीन के जीवन में पढ़ा है मैंने। एक दिन गांव से कोई की अरथी गुजर रही है, कोई मर गया है। मुल्ला का घर पड़ा है बीच में, नसरुद्दीन का। बड़ा आदमी मरा है गांव का। करीब-करीब गांव के सभी प्रतिष्ठित लोग अरथी में सम्मिलित हुए हैं। नसरुद्दीन का घर बीच में पड़ा देख कर सम्मानवश अनेक लोगों ने नसरुद्दीन के झोपड़े की तरफ हाथ उठा कर सलाम किया है, नमस्कार किया है।
नसरुद्दीन की पत्नी बाहर खड़ी है। वह दौड़ कर आकर मुल्ला को कहती है कि मुल्ला, नगर में कोई प्रतिष्ठित जन गुजर गया है, बहुत लोग अरथी में जा रहे हैं; तुम्हारी तरफ देख कर, तुम्हारे झोपड़े की तरफ देख कर अनेक लोग नमस्कार कर रहे हैं।
नसरुद्दीन ने कहा, हो सकता है, आवाज मुझे सुनाई पड़ती थी; लेकिन उस समय मैं दूसरी करवट लिए हुए लेटा था। और तुझे तो पता ही है कि वह जो आदमी मर गया है, उसकी सदा से गलत आदत है। घड़ी भर बाद भी मर सकता था, तब तक हम करवट उस तरफ किए होते।
नसरुद्दीन तो व्यंग्य कर रहा है आदमी पर। लेकिन वह कहता है कि उस वक्त हम दूसरी तरफ करवट किए हुए थे। नमस्कार लेने को करवट बदलने का भी कोई सवाल नहीं था!
एक बार गांव के लोगों ने सोचा, नसरुद्दीन बहुत मुश्किल में है। कुछ पैसे इकट्ठे किए और नसरुद्दीन को देने आए। वह सीधा, चित लेटा हुआ था, खुले आकाश के नीचे, वृक्ष के पास। लोगों ने कहा कि हम कुछ पैसे भेंट करने आए हैं, नसरुद्दीन ! सुना कि तुम बहुत तकलीफ में हो। नसरुद्दीन ने कहा, तुम थोड़ी देर से आना, क्योंकि खीसा मेरा नीचे दबा है। जब मैं उलटा लेट जाऊं, तब तुम आकर
रख जाना।
नसरुद्दीन ने आदमी पर गहरे व्यंग्य किए हैं। वह कीमती आदमी था।
पर अगर हम निष्काम भाव की गहराई में जाएं, तो हमें पता चलेगा कि जहां हैं, जैसे हैं, स्वीकृत है; उसमें इंच भर यहां-वहां होने की कोई कामना नहीं है। न हो वैसी कामना, तो लाओत्से कहता है, जीवन के रहस्य को, अतल गहराइयों को स्पर्श किया जा सकता है। और गहराइयों में ही जीवन है। सतह पर तो केवल परिधि है; सतह पर तो बाह्य रेखा मात्र है। जैसे मैं आपके शरीर को स्पर्श करके लौट आऊं और कहूं कि मैंने आपको स्पर्श किया। यद्यपि हम ऐसा ही कहते हैं। अगर मैं आपके शरीर को स्पर्श करके लौट आऊं, तो
मैं कहता हूं कि मैंने आपको स्पर्श किया। यद्यपि केवल बाह्य रूप-रेखा को, आकृति को छूकर आ गया हूं, आपको नहीं स्पर्श किया है। आपके शरीर की जो बाह्य रूप-रेखा है, आकृति है, वह आप नहीं हैं। वह रूप-रेखा तो केवल आप और जगत के बीच एक सीमा है। आप तो गहन गहरे में, भीतर हैं। वह सब तो आपके लिए बाह्य आयोजन है, जिसके भीतर आप हो सके हैं। वह आपका सिर्फ घर है, भवन है, वस्त्र है।
पर दूसरे को हम वस्त्रों से देखते हों और रूप-रेखा छूते हों, वह तो क्षम्य है। हम अपने को भी बाहर से ही देखते हैं और अपने को भी हम शरीर से ही छूते और स्पर्श करते हैं।
पूरे जीवन को हम बाहर से ही छू पाते हैं। लाओत्से कहता है, कामयुक्त मन के कारण।
इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। कामयुक्त मन गहरे क्यों नहीं जा सकता ? तीन सूत्र हैं।
एक, कामयुक्त मन एक जगह एक क्षण से ज्यादा ठहर नहीं सकता, इसलिए खुदाई नहीं कर सकता। कामयुक्त मन भागा हुआ मन है। एक क्षण भी एक जगह रुक नहीं सकता। तो गहरे उतरने के लिए तो खुदाई की जरूरत पड़ेगी। और अगर आप हाथ में एक कुदाली लेकर और दौड़ते हुए खोदते चले जाते हों, तो कुआं आप न खोद पाएंगे। थोड़े-बहुत कंकड़-पत्थर जगह-जगह के उखाड़ देंगे, रास्ते को खराब कर देंगे या जमीन को व्यर्थ के गड्ढों से भर देंगे, लेकिन कुआं आप न खोद पाएंगे। कुआं खोदने के लिए एक जगह, एक जगह चोट, एक जगह श्रम, प्रतीक्षा - कामयुक्त मन वह नहीं कर पाता । कामयुक्त मन सदा भागा हुआ है। कहना चाहिए, एक कदम आपसे सदा आगे है। आप जहां होते हैं, वहां से थोड़ा आगे ही भागा हुआ होता है। जैसे छाया आपके पीछे चलती है, ऐसे काम आपके आगे चलता है। जहां आप हैं, वह आगे के दर्शन दिलाने लगता है।
तो एक तो कामयुक्त मन क्षण भर भी ठहरता नहीं; ठहराए बिना कोई गहराई नहीं है ।
दूसरा, कामयुक्त मन कभी भी वर्तमान में नहीं होता, कभी भी। और जीवन वर्तमान में है। कामयुक्त मन होता है सदा भविष्य में। जीवन को छूना है तो इसी क्षण छूना पड़ेगा। और कामयुक्त मन कहता है, किसी और क्षण में सब कुछ छिपा है। कल जहां मैं पहुंचूंगा, वहां सब आनंद के द्वार खुलेंगे। कल जहां मैं पहुंचूंगा, वहां खजाने गड़े हैं। आज ? आज तो कुछ भी नहीं है। कामयुक्त वर्तमान के प्रति अत्यंत उदास और भविष्य के प्रति अति आतुर मन है। और जीवन का रहस्य तो है वर्तमान में ।
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