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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free इसलिए लाओत्से कहता है, देयरफोर। इसलिए वह कहता है कि काम से भरा हुआ चित्त, इच्छा से भरा हुआ चित्त जीवन की अतल गहराई के द्वार नहीं खोल पाता है; केवल परिधि से, बाह्य परिधि से परिचित हो पाता है। रहस्य अनजाने रह जाते हैं। महल अपरिचित रह जाता है। महल के बाहर की दीवार को ही जीवन समझ कर वासना से भरा हआ चित्त जीता है। जीएगा ही। क्योंकि महल है यहां और अभी; और वासना से भरा चित्त सदा होता है कहीं और कभी। वह कभी भी हियर एंड नाउ, अभी और यहीं नहीं होता। कहीं और, स्वप्न में! और ऐसा नहीं है कि वह जब वहां पहुंच जाएगा तो कोई स्थिति परिवर्तित होगी। आज जिस जगह मैं खड़ा हूं, वहां सोचता हूं कहीं और होने के लिए; और जब वहां पहुंच जाऊंगा, तो यही मन मेरे साथ फिर खड़ा हो जाएगा और कहीं और जाने की आकांक्षाओं के बीज पुनः निर्मित कर लेगा। ऐसे हम दौड़ते ही रहते हैं। और यह बहुत मजेदार दौड़ है। क्योंकि जिस जगह के लिए हम दौड़ते हैं, वहां पहुंच कर हम पुनः फिर किसी और जगह के लिए दौड़ने लगते हैं। असल में, जिसे हमने पाने के पहले मंजिल समझा, पाने के बाद वह फिर पड़ाव हो जाता है। पाने के पहले लगता है, वहां पहुंच कर सब मिल जाएगा। पहुंच कर लगता है कि यह तो केवल शुरुआत है, और आगे जाना होगा। और हर बिंदु पर ठहराव के ऐसा ही लगता है, और आगे जाना होगा। इसलिए हम कहीं भी शांति से नहीं हो पाते हैं एक क्षण को भी। लाओत्से ने जान कर इन सूत्रों के पीछे देयरफोर का उपयोग किया है, जैसे कोई गणित या तर्क में करता है। और जो निष्पत्ति ली है, वह यह है: आलवेज स्ट्रिप्ड ऑफ पैशन वी मस्ट बी फाउंड-वासना से उघड़े हुए, वासना से उखड़े हुए। जैसे वासना की पर्तों को कोई छील दे अपने ऊपर से। जैसे कोई प्याज को छील डाले और सारी पर्तों को अलग फेंक दे; और फेंकता जाए, जब तक एक भी पर्त बचे। लेकिन प्याज को छीलते-छीलते आखिर में हाथ कुछ भी नहीं लगता है। पर्त को निकालते हैं, एक दूसरी पर्त हाथ आती है; उसे निकालते हैं, तीसरी पर्त हाथ आती है। उखाड़ते चले जाते हैं; आखिर में तो शून्य ही बच रहता है। अगर आप अपनी सारी इच्छाओं को हटा दें, तो क्या आपको खयाल है कि आप बचेंगे? क्या आप अपनी इच्छाओं के जोड़ से ज्यादा कुछ हैं? अगर आपकी सारी इच्छाएं खींच डाली जाएं प्याज की पर्तों की भांति, तो आप एक शून्य के अतिरिक्त और क्या होंगे? आपने जो चाहा है, वही तो आप हैं; उसका ही जोड़! अगर आपकी सारी चाह झड़ जाए, तो आप क्या होंगे, कभी सोचा है! एक निपट शून्य; नाकुछ। लेकिन उसी शून्य से, उसी ना-कुछ से जीवन का द्वार खुलता है। असल में, सभी द्वार शून्य से खुलते हैं। आप एक मकान बनाते हैं, आप उसमें एक दरवाजा बनाते हैं। आपने खयाल रखा कि दरवाजा क्या है? दरवाजा सिर्फ एक शून्य है। जहां आपने दीवार नहीं बनाई है, वह दरवाजा है। ठीक से समझें, तो दरवाजे का अर्थ होता है, जहां कुछ भी नहीं है। दीवार से भीतर प्रवेश नहीं होगा। प्रवेश तो दरवाजे से होगा। दरवाजे का मतलब क्या होता है? दरवाजे का मतलब जहां शून्य है। जहां कुछ भी नहीं है, वहां से आप प्रवेश करते हैं। और जहां कुछ है, वहां से आप प्रवेश नहीं करते। अब यह बहुत मजे की बात है, मकान में प्रवेश मकान से कभी नहीं होता। उस जगह से होता है, जहां शून्य होता है, जहां कुछ भी नहीं होता, मकान नहीं होता। दरवाजे का मतलब है, मकान का न होना। दरवाजे को छोड़ कर मकान होता है। तो जब तक हमारे भीतर ऐसा शून्य हमें न मिल जाए, जहां कुछ भी नहीं है, तब तक हम उस जीवन के परम रहस्य में प्रवेश न कर पाएंगे। वह महल हमसे अपरिचित और अनजाना ही रह जाएगा। तो लाओत्से कहता है, उखाड़ डालो सारी पर्ते कामना की। एक भी पर्त कामना की न रह जाए। हम भी कभी-कभी कामना की पर्ते तो उखाड़ते हैं। लेकिन हम एक उखाड़ते हैं तभी, जब हम उससे बड़ी निर्मित कर लेते हैं। हम भी वासनाओं को छोड़ते हैं। पर हम एक वासना को तभी छोड़ते हैं, जब उससे बड़ी वासना को रिप्लेस, उसको उसकी जगह परिपूरक कर लेते हैं। असल में, हम छोड़ते तभी हैं किसी वासना को, जब उससे बड़ी वासना पर हमारा पैर पड़ जाता है। छोटे मकान हम छोड़ देते हैं बड़े मकानों के लिए, छोटे पद हम छोड़ देते हैं बड़े पदों के लिए। हम भी छोड़ते हैं। पर सदा और बड़ा परकोटा निर्मित हो जाए, तब हम कोई छोटी दीवार छोड़ते हैं। और कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम जीवन की पूरी वासना का ढांचा भी छोड़ते हैं। एक आदमी धन खोजता था, पद खोजता था, यश खोजता था। सब बंद कर देता है; पदों से नीचे उतर जाता है, धन का त्याग कर देता है, वस्त्र छोड़ नग्न हो जाता है। और कहता है, मैं अब प्रभु को खोजने जाता हूं। सब छोड़ देता है। लेकिन तब एक और विराट वासना के पीछे सारा ढांचा तोड़ देता है। अब कोई भी उससे न कह सकेगा कि वह धन खोज रहा है। कोई भी न कह सकेगा, पद खोज रहा है। कोई भी न कह सकेगा कि वह प्रतिष्ठा खोज रहा है। लेकिन अगर ईश्वर शब्द में हम गौर करें, तो हमें सब मिल जाएगा। ईश्वर शब्द बनता है ऐश्वर्य से। परम ऐश्वर्य का नाम ईश्वर है। अब वह उस ऐश्वर्य को खोज रहा है, जिसका कभी अंत नहीं होता। अब वह उस धन की तलाश में है, जिसे चोर चुरा नहीं सकते। अब वह उस संपदा की खोज कर रहा है, जिसे मृत्यु छीन नहीं सकती। पर सब खोज वही है। अब वह उस पद को खोज रहा है, जिस पद इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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