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कई बार हम बड़ी कठिनाइयां झेलते रहते हैं अहंकार की तृप्ति के लिए। अगर अहंकार टाई बांधने से तृप्त होता हो, तो हम पसीना झेल सकते हैं, लेकिन टाई हटा नहीं सकते। अगर रिस्पेक्टबिलिटी जूते पहनने में ही हो, तो चाहे जूतों में आग पड़ रही हो, लेकिन हम नंगे पैर नहीं चल सकते हैं।
चीन में स्त्रियां पैर में लोहे के जूते पहन कर पैर छोटे करती रही हैं, क्योंकि वे रिस्पेक्टबल थे। बड़े घर की स्त्री की पहचान उसका छोटा पैर थी। और इसीलिए चीन में पैर जो था, वह सेक्स सिंबल बन गया था। जैसे आज स्तन सारी दुनिया में सेक्स सिंबल बन गया है। चीन में पांच हजार साल तक स्तन पर कोई ध्यान नहीं देता था स्त्री के पैर पर ध्यान देता था। छोटा पैर दिखा कि आदमी एकदम दीवाना हो जाता था। अभी कोई दीवाना नहीं होता। पैर से संबंध टूट गया, खयाल मिट गया। कंडीशनिंग थी पांच हजार साल की।
जिसका पैर बड़ा था, वह स्त्री इतनी बेचैन और दुखी होती थी, जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है। पैर की वजह से नहीं; क्योंकि पैर बड़ा हो, इससे दुख का क्या संबंध है? बड़ा पैर तो और भी जमीन पर ढंग से रखा जाता है। चलने की क्षमता बड़े पैर में ज्यादा होती है। दौड़ने की क्षमता भी ज्यादा होती है। बलशाली भी होता है। शरीर को सम्हालने के उपयुक्त भी होता है। लेकिन नहीं, वह सवाल नहीं था। स्थान की उपयुक्तता उपयुक्तता में नहीं है, अहंकार की तृप्ति में है। तो जो स्त्री बिना किसी के कंधे का सहारा लेकर चलती थी, वह कुलीन घर की नहीं थी, यह सिद्ध होता था। सहारा चाहिए, कंधे पर किसी के हाथ चाहिए; क्योंकि पैर इतने छोटे कर लेते थे कि वे बड़े शरीर को सम्हालने के योग्य नहीं रह जाते थे। स्त्रियां चल नहीं सकती थीं।
आज भी वही हालत है; कोई फर्क नहीं पड़ गया। सिंबल्स बदल जाते हैं, प्रतीक बदल जाते हैं, हालत वही होती है। आप हजार तरह की मुसीबत झेलने को तैयार होते हैं, अगर अहंकार उससे तृप्त होता हो और आप हजार तरह के आनंद छोड़ सकते हैं, अगर अहंकार तृप्त न होता हो। तो आप छोड़ सकते हैं। आदमी के ऊपर बढ़ने की यात्रा में कैसा भी कष्ट उसे मिले, वह शहीद होने को सदा तैयार है। हमारे पहनने के ढंग, हमारे कपड़े, हमारे जेवर, हमारा मकान, हमारी कारें, उनमें कोई में भी इस बात की फिक्र नहीं है कि वे उपयुक्त हैं। हमारा भोजन, उसमें भी कोई फिक्र नहीं है कि वह उपयुक्त है। फिक्र इस बात की है कि वह रिस्पेक्टबल है, अहंकार को तृप्ति देता है।
आपके घर एक मेहमान आता है, तो आप इसकी फिक्र नहीं करते कि मेहमान को जो भोजन दिया जाए, वह स्वास्थ्यप्रद हो। कोई फिक्र नहीं करता। इसलिए तो हर मेहमान लौट कर फिर बीमार पड़ता है। मेहमान को बीमार पड़ना ही चाहिए; नहीं तो आपकी प्रतिष्ठा नहीं है। अगर मेहमान बिना बीमार पड़े घर चला जाए, तो उसका मतलब यह है कि स्वागत-सत्कार नहीं हुआ। आपने भी नहीं किया और मेहमान भी समझेगा कि स्वागत-सत्कार ठीक से नहीं हुआ है। सीधा मेजबान के घर से डाक्टर की एंबुलेंस पर जाना पड़े!
तो हम कोशिश तो पूरी करते हैं। बच जाए, उसकी किस्मत! नहीं, स्वास्थ्य की फिक्र नहीं है कि उसे जो भोजन मिले, वह स्वास्थ्यप्रद हो । नहीं, उसे वह भोजन दिया जाए जिसका कोई अहंकार से संबंध है। वह जाने कि वह ऐसी चीज खाकर लौटा है, जो कहीं और नहीं मिल सकती है।
कहा जाए कि इतना झोला उठा कर तुम दो घर चलो, तो वे इनकार कर बहुत नाजुक स्त्रियां, जिनको नाजुक होने का खयाल है, वे भी सोने के
स्त्रियां गहने लादे रही हैं, वजनों, इतना वजन कि अगर उनसे दें। लेकिन सेर-सेर, दो-दो सेर सोना वे लाद कर चल सकी हैं। वक्त बिलकुल नाजुक नहीं रह जातीं। सोने को ढोया जा सकता है। हालांकि सोने में और लोहे में तराजू पर कोई फर्क नहीं होता। जो वजन तराजू पर सोने का पता चलेगा, वही लोहे का पता चलेगा। लेकिन ईगो के तराजू पर फर्क है। तो अगर लोहा उठाना पड़े, तो हाथ दुखते हैं। लेकिन अगर सोना उठाना पड़े, तो पैरों में पर लग जाते हैं। बात क्या है? हो क्या जाता है?
अफ्रीका में औरतें हैं, गले में हड्डियों का इतना सामान पहनती हैं कि गला जो है, वह करीब-करीब ऊंट जैसा हो जाता है। लेकिन वह चलेगा, उसमें कोई तकलीफ नहीं है। अगर हम ऐसे किसी आदमी के गले को फंसाएं, तो वह कहेगा, आप फांसी लगा रहे हैं मेरी । लेकिन अगर वह सौंदर्य का प्रतीक हो, तो चल सकता है। कुछ भी चल सकता है।
अभी अमरीका में नई पीढ़ी के लड़के और लड़कियां हैं; वे सब तरह की गंदगी में जी रहे हैं। क्योंकि हिप्पीज ने गंदगी को एक मूल्य दे दिया, जो कभी नहीं था। हिप्पीज ने कहा कि ये स्वच्छता की जो बातें हैं, बुर्जुआ! ये बैठे-ठाले मुफ्तखोर लोगों की बातें हैं। यह जो स्वच्छता की-साबुन है, और पाउडर है, और डियोडरेंट है - यह सारी जो स्वच्छता है, स्नान है, ये सब झूठी बातें हैं। ये सब मुफ्तखोर लोगों की, बुर्जुआ लोगों की बातें हैं। असली आदमी इन बातों में नहीं पड़ता। तो आज गंदगी को एक नई वैल्यू हिप्पीज ने दे दी है। अब अगर किसी को हिप्पी के समाज में आहत होना है, तो वह रिस्पेक्टबिलिटी का हिस्सा है कि उसको गंदा रहना चाहिए। वह जितना गंदा रहे, उतना महान हिप्पी है। आस-पास के हिप्पी, अगर आप पहुंच जाएं ठीक से बाल-वाल कटा कर, साफ-सुथरे, पुराने ढंग के साफ-सुथरे आदमी बन कर तो सारे हिप्पी कहेंगे, स्क्वायर आ गया, यह पोंगापंथी आ गया! देखो, कैसा क्लीन शेव किया हुआ है!
हिप्पीज ने नया मूल्य बना लिया, तो आज हिप्पी लड़के और लड़कियां उस नए मूल्य के लिए भी राजी हैं। उसके लिए भी राजी हैं। गंदगी में रहने के लिए राजी हैं। उनके शरीर से बदबू निकले, तो वह मूल्य हो गया। और ऐसा नहीं कि ऐसा पहले हुआ है। हम सब
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