________________
Download More Osho Books in Hindi
Download Hindi PDF Books For Free
ऐसे मूल्य देते रहे हैं। जैन साधु स्नान नहीं करता है। तो अगर जैन साधु को जो जानते हैं, वे उसके पास जाएं और पसीने की बदबू न आए, तो उन्हें शक हो जाए कि मामला कुछ गड़बड़ है। दातुन नहीं करता है। तो जब जैन साधु बात करे, तो उसके मुंह से बास आनी चाहिए। वह उसकी साधुता की प्रामाणिकता का सबूत है! अगर न आए, तो भक्त चिंता में पड़ जाएगा कि जरूर टूथपेस्ट कहीं छिपाया हुआ है। यद्यपि छिपाया हुआ है, आज तो छिपाया हुआ है।
अब उस जैन साधु की बड़ी तकलीफ है। उसकी तकलीफ यह है कि उसके पास एक रिस्पेक्टबिलिटी का मूल्य है दो हजार साल पुराना। और अभी वह जो पढ़ता-सुनता है, और चारों तरफ देखता है, वह टूथपेस्ट का मूल्य भी है। उसकी नजर में दोनों का मूल्य है। वह बड़ी कनफ्यूजन में पड़ गया है। वह बड़े धोखे में पड़ गया है। वह दोनों काम एक साथ करता है। अपनी पोटली में टूथपेस्ट भी छिपाए रहता है और ऐसे भी दिखाए रखता है कि वह दातुन नहीं करता है। स्पंज से स्नान भी करता रहता है....।
एक जैन साध्वी मुझे मिलने आई। तो मैंने पूछा कि तेरे शरीर से बास नहीं आ रही! तो उसने कहा, आप से तो मैं सच कह सक कि बर्दाश्त नहीं होता पसीना । तो मैं तो गीला कपड़ा भिगा कर स्पंज कर लेती हूं। लेकिन आप किसी को बताना मत। नहीं तो मेरी सब साधुता गई। क्योंकि वह सब साधुता इसमें है कि वह कितनी स्नान नहीं करती है। क्योंकि एक मूल्य था जैनों के मन में। वह मूल्य यह था कि जो आदमी स्नान करता है, वह शरीरवादी है। शरीर को स्वच्छ करना, शरीर को सजाना-संवारना, यह शरीरवादी का लक्षण है। आत्मवादी को शरीर की फिक्र ही नहीं करनी चाहिए।
इसमें आगे जैनियों से भी पहुंच गए कुछ लोग, जिनको हम परमहंस कहते रहे हैं। वे पाखाना करके बैठ जाएंगे और वहीं खाना खाएंगे। अगर परमहंस ऐसा न करे, तो लोग कहेंगे, कैसा परमहंस ! अगर परमहंस होना हो, तो वहीं मल-मूत्र करो, वहीं बैठ कर खाना खाओ। तब लोग कहेंगे, यह है परमहंस ! जिन-जिन के नाम के पीछे परमहंस पुराने दिनों में लगा है, वे ऐसे लोग हैं। जिस चीज को भी हम मूल्य दे दें और अहंकार की तृप्ति का रास्ता बता दें, आदमी वही करने को राजी हो जाता है। आदमी बड़ा अजीब है।
आप जब ये बातें सुन रहे हैं, तो आपको लगता होगा, ये दूसरों के बाबत हो रही हैं। ऐसी भ्रांति में मत पड़ना आप आप अपनी तरफ खोजेंगे, तो खुद भी पा लेंगे कि आप क्या-क्या कर रहे हैं। जो आपकी प्रकृति के अनुकूल नहीं है, सुख भी नहीं आता, शांति भी नहीं आती; लेकिन चारों तरफ उसकी रिस्पेक्टबिलिटी है, उसका आदर है, तो आप वह कर रहे हैं। चारों तरफ पड़ोसियों के ऊपर सिक्का जमाना है, तो एक आदमी ऐसी कार खरीद लेता है, जिसकी उसकी हैसियत नहीं है खरीदने की। लेकिन पड़ोसी पर सिक्का जमाना है।
रुद्दीन की पत्नी ने एक दिन उससे कहा है कि अब दो ही उपाय हैं: या तो बड़ी कार खरीद लो, या मुहल्ला बदल लो; जो भी तुम्हें सस्ता लगे। क्योंकि पड़ोसी ने एक बड़ी कार खरीद ली है। अब दो ही उपाय हैं: या तो बड़ी कार खरीद लो, या पड़ोस बदल लो।
नसरुद्दीन ने कहा कि बड़ी कार ही खरीद लेना सस्ता पड़ेगा; पड़ोस बदलना बहुत मंहगा काम है। और फिर इस पड़ोसी की तो सब चीजों को हम जवाब दे चुके हैं; नए पड़ोसियों की चीजों को फिर जवाब देने की शुरुआत करनी पड़ेगी। और पता नहीं, नए पड़ोसियों के पास किस तरह की चीजें हों, उनको जवाब देना पड़ेगा।
सब एक-दूसरे को जवाब दे रहे हैं। इसकी उन्हें कोई फिक्र नहीं कि उनकी जरूरत क्या है! खुद की जरूरत क्या है !
लाओत्से कहता है, “आवास की श्रेष्ठता स्थान की उपयुक्तता में है।'
और कभी यह हो सकता है कि महल उपयुक्त न हो, वृक्ष के नीचे बैठ जाना उपयुक्त हो। और कभी यह हो सकता है कि कीमती से कीमती वस्त्र उपयुक्त न हों और एक लंगोटी लगा कर धूप में लेट जाना उपयुक्त हो। लेकिन हम मजेदार लोग हैं, हम लंगोटी लगा कर भी धूप में लेट सकते हैं; लेकिन वह तभी, जब वह रिस्पेक्टबल हो जाए। तब फिर गैर-जरूरी लोग भी लेटे रहते हैं। मोटी औरतें दुबला होने का प्रयास करती रहती हैं, दुबली औरतें मोटा होने का प्रयास करती रहती हैं। ऐसी औरत खोजना मुश्किल है, जो कोई प्रयास न कर रही हो। अगर मोटी है, तो दुबला होने का प्रयास कर रही है। अगर दुबली है, तो मोटा होने का प्रयास कर रही है।
अमरीका में अगर बाल उसके काले नहीं हैं, तो वह काले बालों के लिए दीवानी है। और अगर बाल काले हैं, तो वह विपरीत बालों के लिए दीवानी है। मगर दीवानगी जारी है। क्योंकि किसी को इससे मतलब नहीं है कि उपयुक्त क्या है। मतलब इससे है कि चारों तरफ क्या हवा कह रही है। और हवा रोज बदल जाती है। और हवा को चलाने वाले बहुत और लोग हैं, जिनका आपको पता ही नहीं
है।
वैंस पैकार्ड ने एक किताब लिखी है: दि हिडेन परसुएडर्स ! छिपे हुए फुसलाने वाले लोग! उनका धंधा इस पर निर्भर है कि आपको फुसलाते रहें। हिडेन परसुएडर्स हैं चारों तरफ। जब एक कपड़ा फैशन में छह महीने चल चुका होता है, तो वे हिडेन परसुएडर्स दूसरे कपड़े को गतिमान करते हैं। क्योंकि अन्यथा मिलें कैसे चलेंगी? धंधा कैसे चलेगा? कपड़ा तो एक चल सकता है सदा-सदा; लेकिन मिल एक कपड़े से नहीं चल सकती। और जब एक साबुन चल जाती है, तो एक साबुन काम कर सकती है। बड़े मजे की बात है कि भ साबुन करीब-करीब एक से मैटेरियल से बनती हैं। लेकिन एक साबुन चल जाए, तो फैक्ट्री नहीं चलेगी। तो हिडेन परसुएडर्स हैं, छिपे हुए फुसलाने वाले लोग हैं। जैसे ही एक साबुन गति पकड़ती है, तत्काल खबर आती है कि वह आउट ऑफ फैशन हो गई। और सब
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज