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लेकिन आदमी कुशल है। वह अपने अंधे भावों के लिए भी तर्कयुक्त व्याख्याएं करता है। वह कहता है कि हमारी व्याख्याएं ये हैं। ऐसे ही हम चांद को पसंद नहीं करते; चांद सुंदर है, इसलिए पसंद करते हैं। फलां आदमी है, हम उसको आदर यों ही नहीं देते; उसमें सदगुण हैं, इसलिए आदर देते हैं। सचाई और है। आप किसी आदमी को आदर पहले दे देते हैं; सदगुण वगैरह की खोज पीछे होती है।
और जब आप किसी आदमी से आदर छीनते हैं और उसकी निंदा करते हैं, तब भी आप सोचते हैं कि हम निंदा इसलिए करते हैं कि हमें उसके दुर्गुण मिल गए। फिर आप गलती करते हैं। निंदा आपके मन में पहले आ जाती है; दुर्गुण आप पीछे से खोज लाते हैं।
लेकिन आदमी सदा फ्रायड के पहले ऐसा ही मानता था कि वह जो भी करता है, बुद्धि से, तर्क से करता है। लेकिन इधर पचास वर्षों की साइकोएनालिसिस ने बहुत प्रमाणित कर दिया है कि आदमी बुद्धि से कुछ भी करता हुआ मालूम नहीं पड़ता। सैकड़ों प्रयोग हैं। बटैंड रसेल ने एक उल्लेख किया है। बटैंड रसेल ने उल्लेख किया है कि एक साबुन की फैक्टरी को बटैंड रसेल ने राजी किया कि वह दस ब्रिटेन के बड़े से बड़े डाक्टरों का वक्तव्य ले अपनी साबुन के संबंध में। ब्रिटेन के दस बड़े वैज्ञानिक चिकित्सकों का वक्तव्य लेकर उस साबुन के मालिक ने अपना विज्ञापन अखबारों में दिया, जिनमें देश के चोटी के दस वैज्ञानिकों ने वक्तव्य दिए थे कि यह श्रेष्ठतम साबुन है। और दूसरे साबुन के मालिक को तैयार किया, जिसका साबुन बिलकुल ही हेठा था, इस साबुन के मुकाबले बिलकुल नहीं था, जिसको एक भी डाक्टर कहने को राजी नहीं था कि यह साबुन श्रेष्ठ है। एक सस्ती, दो कौड़ी की फिल्म अभिनेत्री को राजी किया कि वह कहे कि मेरा सौंदर्य इसी साबुन की वजह से है। फिल्म अभिनेत्री वाला साबुन बिका, दस डाक्टरों वाला साबुन नहीं
बिका।
आदमी बुद्धिमान प्राणी है! बहुत बुद्धिमान प्राणी है! वे दस चोटी के वैज्ञानिक किसी मतलब के नहीं हैं। लेकिन एक नाचने वाली लड़की ज्यादा मतलब की है। क्योंकि चोटी के वैज्ञानिक बुद्धि से बात करते हैं, नाचने वाली लड़की बुद्धि के पीछे, जहां से आप चलते हैं, उसको छूती है, उसको टिटिलेट करती है।
अब सबको समझ में आ गया है दुनिया में। इसलिए कुछ भी बेचना हो, लड़की को खड़ा करो और दलीलें देने की कोई भी जरूरत नहीं है। कुछ भी बेचना हो; इससे कोई संबंध नहीं है कि क्या बेचना है आपको। कुछ भी बेचना हो, लड़की को खड़ा करो अर्धनग्न; वह चीज बिकेगी। आप दुनिया भर के वैज्ञानिकों की दलीलें ले आओ, सब महात्माओं के वक्तव्य ले आओ; वह चीज नहीं बिकेगी। एक नाचने वाली लड़की सबको हरा देगी। क्योंकि आदमी बुद्धिमान प्राणी है, ऐसी भांति है। है नहीं। आदमी चलता है किन्हीं और कारणों से। उसके भीतर जो चलने की व्यवस्था है, वह बौद्धिक नहीं है, रेशनल नहीं है। इम्मोशनल है, भावुक है, इसटिंक्टिव है, वृत्तियों से चलता है। लेकिन मानने को मन नहीं होता।
आदमी सदा अपने को जगत के केंद्र में, बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, परमात्मा से सीधा उपजा हुआ-ऐसा मानता रहा है। इधर डेढ़ सौ वर्षों में जो मनुष्य को बहुत धक्के लगे हैं, जिनसे मनुष्य का बिलकुल सारा का सारा भवन अहंकार का गिर गया है...।
लाओत्से कहता है कि यह भवन बनाने की जरूरत ही नहीं है। किस पागल ने तुमसे कहा? लाओत्से ईश्वर का नाम भी नहीं लेता अपने पूरे वक्तव्यों में-जान कर। क्योंकि वह कहता है, ईश्वर का नाम लेते ही आदमी कोशिश करता है कि अपने अहंकार को ईश्वर से जोड़ ले। वह नाम भी नहीं लेता ईश्वर का। वह परम पद की बात ही नहीं करता। वह मोक्ष की बात ही नहीं करता। वह कहता है, अंतिम पद! आखिरी पद! पीछे खड़े हो जाओ! वही मोक्ष है।
कोई राजी नहीं होता पीछे खड़े होने को। आप आगे खड़े होने को किसी भी काम में राजी कर सकते हैं आदमी को किसी भी काम में! कितना ही एब्सर्ड और कितना ही मूढ़तापूर्ण हो, आगे खड़े होने के लिए आप आदमी को किसी भी चीज के लिए राजी कर सकते हैं। पीछे खड़े होने के लिए, अगर परमात्मा भी मिलता हो पीछे खड़े होने से, तो आदमी को आप राजी नहीं कर सकते हैं। पीछे खड़े होने की तैयारी ही हमारी भीतर की निकृष्टता नहीं दिखा पाती; भीतर श्रेष्ठता हो, तो ही संभव है कि कोई पीछे खड़े होने को राजी हो जाए। और मजा यह है कि प्रथम केवल वे ही पहुंच पाते हैं, जो पीछे खड़े हो जाते हैं। और मोक्ष की अंतिम ऊंचाई उनको उपलब्ध होती है, जो जल की भांति वादियों और घाटियों की अंतिम नीचाई को खोजने के लिए राजी हो जाते हैं।
यह जो विपरीत का नियम है, इसे ध्यान में रख कर लाओत्से कहता है कि मैं एक ही सूचना देता हूं, जल के सदृश जो हो जाए, वह ताओ को उपलब्ध हो जाता है।
“आवास की श्रेष्ठता स्थान की उपयुक्तता में है।'
हमारे लिए नहीं। ये वक्तव्य कोई भी हम पर लागू नहीं होंगे। लाओत्से कहता है, स्थान की श्रेष्ठता उसकी उपयुक्तता में है। हमारे लिए नहीं। अगर हम एक मकान खरीदते हैं, तो इसलिए नहीं कि वह मकान रहने के लिए उपयुक्त है। मकान हम इसलिए खरीदते हैं कि वह हमारे अहंकार को प्रोजेक्ट करने के लिए कितना उपयुक्त है। इसलिए कई बार आप ऐसे मकान में रहने को राजी हो जाएंगे जहां अमीरों के घर है, चाहे वह मकान रहने के उपयुक्त न हो। और उस इलाके में रहने को आप राजी न होंगे जहां गरीबों के घर हैं, चाहे मकान रहने को ज्यादा उपयुक्त हो। उपयुक्तता से हमें प्रयोजन नहीं है। हमारे लिए तो एक ही प्रयोजन है कि अहंकार किससे तृप्त हो।
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