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लाओत्से कहता है, ताओ का अर्थ है धर्म। ताओ का अर्थ है स्वभाव। ताओ का अर्थ है स्वरूप। जीवन का जो परम नियम है, उसका नाम है ताओ। लाओत्से कहता है, जल की यह व्यवस्था ठीक ताओ के निकट है। ताओ को उपलब्ध व्यक्ति भी इसी तरह, सर्वोत्कृष्ट व्यक्ति भी इसी तरह नीचे, पीछे और दूर हट जाता है। छाया में, जहां उसे कोई देखे भी नहीं। भीड़ की अंतिम कतार में, जहां कोई संघर्ष न हो। और जब भी कोई वहां मौजूद हो, तब वह पीछे हटता चला जाता है।
दो तरह के लोग हैं: आगे बढ़ते हुए लोग और पीछे हटते हुए लोग। पीछे हटते हुए लोग कभी-कभी पैदा होते हैं। कभी कोई बुद्ध, कभी कोई लाओत्से, कभी कोई क्राइस्ट। आगे बढ़ते हुए लोगों की बड़ी भीड़ है।
एक सभा में नसरुद्दीन गया है। जरा देर से पहुंचा है, तो आगे जगह खाली नहीं रही है। दरवाजे के पास ही उसे बैठना पड़ा है। उसे बड़ी बेचैनी हुई है। सभापति के आसन पर बैठने की उसकी आदत है। उसने पीछे बैठ कर गपशप करनी शुरू कर दी। उसने कुछ लतीफे सुनाने शुरू कर दिए। कुछ लोग उसकी बातों में उत्सुक हो गए। उन्होंने सभापति की तरफ पीठ कर ली और नसरुद्दीन की बातें सुनने लगे। थोड़ी देर में पूरी सभा नसरुद्दीन की तरफ हो गई। सभापति का चेहरा लोगों की पीठ हो गई। सभापति चिल्लाया कि नसरुद्दीन, तुम यह क्या कर रहे हो? सभापति के पद पर मैं हूँ!
नसरुद्दीन ने कहा, हम कोई पद नहीं जानते; हम जहां होते हैं, वहीं सभापति का पद होता है। सभा दो ही हालत में चल सकती है, या तो मैं सभापति रहं और या फिर सभा नहीं चल सकेगी। सभापति तो मैं रहंगा ही।
बुलाना पड़ा नसरुद्दीन को, सभापति के पद पर बिठालना पड़ा। तब सभा आगे चल सकी।
नसरुद्दीन ने कहा, हम जहां होते हैं, वहीं सभापति का पद होता है। यह हम सब की आकांक्षा है। न भी हो सभापति के पद पर, तो भी हम जहां होते हैं, वहीं सभापति का पद है, ऐसा हम सब का भाव है। सारी दुनिया के सेंटर पर हम हैं। सब चांदत्तारे हमारा चक्कर लगा रहे हैं। इसलिए जब पहली दफा गैलीलियो ने कहा कि नहीं, सूरज पृथ्वी का चक्कर नहीं लगाता, तो समस्त मनुष्य-जाति को धक्का जो पहुंचा वह यह नहीं था कि हमारी धारणा गलत हो गई। इससे क्या फर्क पड़ता है कि सूरज चक्कर लगाता है या नहीं लगाता है! कि पृथ्वी चक्कर लगाती है! नहीं, गहरा आघात आदमी को पहुंचा कि उसकी पृथ्वी, उसकी पृथ्वी जगत का सेंटर नहीं रह गई। आदमी को सदा खयाल था कि पृथ्वी जगत का सेंटर है, केंद्र है। सूरज और चांदत्तारे सब जमीन का चक्कर लगाते हैं। मेरी जमीन! आदमी की जमीन! गैलीलियो ने बड़ा धक्का पहुंचाया। उसने कहा कि नहीं, सूरज चक्कर लगाता नहीं, पृथ्वी ही चक्कर सूरज का लगाती है। और यह सूरज भी किसी महासूर्य का चक्कर लगा रहा है। हम केंद्र पर नहीं हैं।
फिर भी आदमी को डार्विन तक भरोसा था कि आदमी को परमात्मा ने अपनी ही शक्ल में बनाया-ही क्रिएटेड मैन इन हिज ओन इमेज। आदमी ने किताबें लिखी हैं। अगर गधे किताबें लिखें, तो वे लिखेंगे कि परमात्मा ने हमको उसकी ही शक्ल में बनाया। क्योंकि गधे यह मानने को राजी न होंगे कि परमात्मा आदमी को अपनी शक्ल में बनाता है। आदमी ने किताबें लिखी हैं, आदमी ने लिखा है कि ईश्वर ने हमें बनाया जगत का सर्वश्रेष्ठ प्राणी।
डार्विन ने बहुत मुश्किल खड़ी कर दी। उसने कहा कि परमात्मा का कोई पता नहीं चलता पीछे, पता यह चलता है कि आप बंदर से पैदा हुए हैं। भारी धक्का लगा अहंकार को। कहां आदमी परमात्मा से पैदा होता था, कहां अचानक बंदर से पैदा होना पड़ा! डार्विन का जो विरोध हुआ, वह इसलिए नहीं कि वह गलत कहता था, वह इसलिए कि आदमी के अहंकार को और एक सीढ़ी से नीचे गिरा दिया गया।
और फ्रायड ने इस सदी में तीसरा बड़ा धक्का दिया। आदमी सदा से सोचता था कि मैन इज़ ए रेशनल बीइंग, बुद्धिमान प्राणी है आदमी। फ्रायड ने कहा कि आदमी से ज्यादा निर्बुद्धि प्राणी खोजना मुश्किल है। आदमी जो भी करता है, वह बिलकुल बिना बुद्धि के करता है। सिर्फ होशियार इतना है कि उस पर बुद्धि का मुलम्मा चढ़ाता है। रेशनलाइजेशन करता है, रीजन बिलकुल नहीं है। तो जो करना चाहता है, उसके लिए कारण खोज लेता है। जो करना चाहता है, उसके लिए कारण खोज लेता है। अगर युद्ध करना है; तो कारण खोज लेता है। युद्ध नहीं करना है; तो कारण खोज लेता है। प्रेम करना है; तो कारण खोज लेता है। घृणा करनी है; तो कारण खोज लेता है। और हमेशा कारण खोज लेता है। लेकिन जो करना है, वह कारण के पहले करता है।
हम सब यही करते हैं। अगर मैं कहता हूं कि आप मुझे अच्छे नहीं मालूम पड़ते, तो मैं बराबर कारण बताऊंगा कि क्यों अच्छे नहीं मालूम पड़ते। लेकिन अच्छा नहीं मालूम पड़ना बिना कारण के पहले घटित हो जाता है मेरे इमोशंस में। फिर मैं कारण खोजता हूं, पीछे वजह खोज लेता हूं। एक आदमी मुझे अच्छा लगता है, तो मैं कहता हूं, वह सुंदर है इसलिए अच्छा लगता है। फ्रायड कहता है कि नहीं, आपको अच्छा लगता है इसलिए आप सुंदर कहते हैं। अच्छा पहले लग जाता है, फिर आप कहते हैं सुंदर है। लेकिन पीछे जब आप बताते हैं, तो आप कहते हैं कि अच्छा इसलिए लगता है, क्योंकि सुंदर है। चांद सुंदर है, इसलिए अच्छा लगता है? कि आपको अच्छा लगता है, इसलिए सुंदर मालूम पड़ता है? आपका दिवाला निकल गया हो; चांद वही का वही होता है, फिर सुंदर नहीं मालूम पड़ता। फिर ऐसा लगता है कि चांद से आंसू टपक रहे हैं। चांद बैंक्रप्ट हो गया है। आपका भाव ही चांद पर आरोपित हो जाता है। आप जो भीतर अनुभव करते हैं, वह बाहर फैला देते हैं।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज