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लाओत्से के लिए सब बेमानी है। और लाओत्से ठीक कहता है, गलत नहीं कहता। असल में, ठीक इतनी बड़ी बात है, सत्य इतना बड़ा है कि वह अपने से विपरीत सत्यों को समा लेता है। सत्य इतना बड़ा है कि वह अपने से विपरीत को भी मेहमान बना लेता है। असत्य बहुत छोटा होता है; वह अपने से विपरीत को मेहमान नहीं बना सकता। सत्य के भवन में, जैसा कि जीसस ने कहा है कि मेरे प्रभु के मकान में बहुत कक्ष हैं-देयर आर मेनी मैन्शंस इन माई लाई हाउस। बहुत कक्ष हैं मेरे प्रभु के मकान में। और एक-एक कक्ष इतना बड़ा है कि एक कृष्ण के लिए, एक बुद्ध के लिए, एक महावीर के लिए, एक लाओत्से के लिए, और इस तरह के हजार लोग हों, तो उनके लिए एक कक्ष काफी है एक-एक के लिए। और वे सभी कक्ष प्रभु के मंदिर के कक्ष हैं।
लेकिन जब मैं तुम्हें लाओत्से के कक्ष का दरवाजा बताऊं, तब तुम यह मत कहना कि यह दरवाजा तो लाल रंग का है; कल जो कक्ष का आपने दरवाजा दिखाया था, कृष्ण का, वह तो पीले रंग का था। आप तो कहते थे कि पीले रंग के दरवाजे से प्रवेश होगा। अब आप कहते हैं, लाल रंग के दरवाजे से प्रवेश होगा!
और मजा यह है कि आप पीले रंग के दरवाजे से भी प्रवेश नहीं किए थे और अब आप पीले रंग के दरवाजे की आड़ लेकर लाल रंग के दरवाजे से भी प्रवेश नहीं करेंगे।
कहीं से भी प्रवेश कर जाएं! छलांग बने लगाते, छलांग लगा जाएं। जिनका चित्त युवा है और साहस से भरा है, वे छलांग लगा जाएं। जो डरे हुए हैं, भयभीत हैं, छलांग लगाने में पता नहीं हाथ-पैर न टूट जाएं, वे भी कम से कम सीढ़ियां तो उतरें। वे वहीं पहुंच जाएंगे थोड़ी देर-अबेर। लेकिन बैठे न रह जाएं। क्योंकि बैठने वाला कभी नहीं पहुंचेगा। और यह भी मैं नहीं कहता कि हर कोई छलांग लगा जाए। क्योंकि जिसका मन लगाने का न हो, वह न ही लगाए। क्योंकि जरूरी नहीं है कि छलांग से पहुंचे ही, हाथ-पैर भी तोड़ ले सकता है। यह जरूरी नहीं है कि छलांग लगाने में कोई गौरव है। लगती हो तो लगाएं, न लगती हो तो सीढ़ियों से उतर आएं।
लेकिन जिससे छलांग लगती हो वह सीढ़ियों से उतर कर समय क्यों जाया करे? और ध्यान रहे, जो छलांग लगा सकता है, वह सीढ़ियों पर गिर भी सकता है। सीढ़ियां बहुत छोटी पड़ेंगी उसके लिए। वह गिर सकता है, हाथ-पैर तोड़ सकता है। जैसा सीढ़ियों से उतरने वाला छलांग में हाथ-पैर तोड़ सकता है, वैसा छलांग लगाने वाला सीढ़ियों में हाथ-पैर तोड़ सकता है।
नहीं, निश्चित कर लें। अपने को समझ लें। मैं तो न मालूम कितने मार्गों की बात किए चला जाऊंगा। आपको जो दरवाजा अपने जैसा लगे, आप उसमें प्रवेश कर जाना। आप इसकी फिक्र मत करना कि आगे के दरवाजे को और समझ लें। आपको जो भी समझने जैसा लगे, वहां से चुपचाप प्रवेश कर जाना।
और आखिर में मंदिर के बीच में पहुंच कर आप पाएंगे कि और दरवाजों से प्रवेश किए लोग भी वहीं पहुंचे हैं। किस दरवाजे से पहुंचे हैं आप, यह मंदिर के अंतर्गृह में पहुंचने पर कोई नहीं पूछता-कि आप किस दरवाजे से आए? बाएं से आए कि दाएं से आए? छलांग लगा कर चढ़े थे सीढ़ियां, कि सीढ़ियां आसानी से चढ़े थे? मंदिर के भीतर पहुंच कर, प्रभु की प्रतिमा के निकट पहुंच कर कोई आप से हिसाब नहीं पूछेगा कि आप धीमे आए, तेजी से आए? एक-एक सीढ़ी चढ़े, दो-दो सीढ़ियां छलांग लगाईं? कूद कर आ गए? क्या किया, कोई नहीं पूछेगा। न आप ही याद रखेंगे कि आप कैसे आए। मंजिल पर पहुंच गया यात्री तत्काल भूल जाता है मार्ग को। मार्ग तभी तक याद रहता है जब तक मंजिल नहीं है।
ये सवाल न उठाएं; इससे लाओत्से को समझने में कठिनाई पड़ेगी। और इससे चैतन्य या मीरा को समझने में कोई सुविधा न होगी। लाओत्से को समझने चले हैं तो पूरा का पूरा आत्मसात हो जाएं, उसकी बात समझें। वह बिलकुल ठीक कह रहा है। कुछ लोग उसके ही रास्ते से पहुंचे हैं, कुछ लोग उसी के रास्ते से पहुंच सकते हैं। आप में से भी कुछ होंगे, जो उसी के रास्ते से पहुंच सकते हैं। पूरी तरह समझ लें। शायद आप ही वही हों। तो वह रस आपके मन में बैठ जाए तो रास्ता बन जाए।
लेकिन हमारा मन सदा ऐसा होता है। पहले मैं लोगों को शांत बैठ कर ध्यान करवा रहा था। तो वे मुझसे आकर कहते थे कि इसमें तो कुछ होता नहीं, बैठे रहते हैं। वही लोग, ठीक वही लोग, जब मैं तेजी से ध्यान करवाने लगा, आकर मुझसे कहने लगे कि इससे तो वह शांत बैठने वाला बहुत अच्छा था। उन्होंने ही मुझसे कहा था कि इससे कुछ नहीं होता, शांत बैठे समय खराब हो जाता है। अब वे मुझसे कहते हैं कि वह बहुत अच्छा था, उसमें तो शांत बैठ कर बड़ा आनंद आता था। उस वक्त उन्होंने मुझसे उलटा कहा था।
नहीं, आनंद नहीं; अब इससे बचना है। तब वे उससे बच रहे थे, कि इससे कुछ नहीं होता। अब वे पीछे लौट कर कहते हैं कि उससे कुछ होता था। अब इससे बचना है।
अगर बचते चले जाना है, तब तो कोई अड़चन नहीं है। अन्यथा जब एक बात को समझने बैठे, तो शेष सब बातों को भूल जाएं। तब पूरे उसमें लीन हों, डूबें। शायद वह रास्ता आपके लिए रास्ता बन जाए।
और कुछ पूछना हो तो पूछ लें, सूत्र फिर कल लेंगे।
प्रश्न:
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