SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free ताओ उपनिषाद (भाग-1) प्रवचन-20 धन्य हैं वे जो अंतिम होने को राजी हैं-(प्रवचन-बीसवां) अध्याय 7: सूत्र 1 व 2 सर्व-मंगल हेतु जीना 1. स्वर्ग और पृथ्वी दोनों ही नित्य हैं। इनकी नित्यता का कारण है कि ये स्वार्थ-सिद्धि के निमित नहीं जीते; इसलिए इनका सातत्य संभव होता है। 2. इसलिए तत्वविद (संत) अपने व्यक्तित्व को पीछे रखते हैं। फिर भी वे सबसे आगे पाए जाते हैं। वे निज की सत्ता की उपेक्षा करते हैं, फिर भी उनकी सत्ता सुरक्षित रहती है। चूंकि उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं होता, इसलिए उनके लक्ष्यों की पूर्ति होती है। जीवन दो प्रकार का हो सकता है। एक, इस भांति जीना, जैसे मैं ही सारे जगत का केंद्र है। इस भांति, जैसे सारा जगत मेरे निमित्त ही बनाया गया है। इस भांति कि जैसे मैं परमात्मा हूं और सारा जगत मेरा सेवक है। एक जीने का ढंग यह है। एक जीने का ढंग इससे बिलकुल विपरीत है। ऐसे जीना, जैसे मैं कभी भी जगत का केंद्र नहीं हैं, जगत की परिधि है। ऐसे जीना, जैसे जगत परमात्मा है और मैं केवल उसका एक सेवक हूं। ये दो ढंग के जीवन ही अधार्मिक और धार्मिक आदमी का फर्क हैं। अधार्मिक आदमी स्वयं को परमात्मा मान कर जीता है, सारे जगत को सेवक। और जैसे सारा जगत उसके लिए ही बनाया गया है, उसके शोषण के लिए ही। और धार्मिक आदमी इससे प्रतिकूल जीता है; जैसे वह है ही नहीं। जगत है, वह नहीं है। इन दोनों तरह के जीवन का अलग-अलग परिणाम होगा। लाओत्से कहता है, स्वर्ग और पृथ्वी दोनों ही नित्य हैं, शाश्वत। बहुत लंबी उनकी आयु है। क्या है कारण उनके इतने लंबे होने का? उनके नित्य होने का क्या कारण है? क्योंकि वे स्वयं के लिए नहीं जीते हैं! जो जितना ही स्वयं के लिए जीएगा; उतना ही उसका जीवन तनावग्रस्त, चिंता से भरा हुआ, बेचैन और परेशानी का जीवन हो जाएगा। जो जितना ही अपने लिए जीएगा, उतनी ही परेशानी में जीएगा, उतनी ही जल्दी उसका जीवन क्षीण हो जाता है। चिंता जीवन को क्षीण कर जाती है। जो जितना ही अपने लिए कम जीएगा, उतना ही मुक्त, उतना ही निर्भार, उतना ही तनाव से शून्य, उतना ही विश्राम को उपलब्ध जीएगा। कुछ बातें हम समझें तो खयाल में आ सके। मां के पेट में बच्चा होता है, तो नौ महीने तक सोया रहता है। पैदा होता है, तो फिर तेईस घंटे सोता है; एक घंटा जागता है। फिर बाईस घंटे सोता है; दो घंटे जागता है। फिर बीस घंटे सोता है। फिर धीरे-धीरे उसकी नींद कम होती जाती है और जागरण बड़ा होता जाता है। मध्य वय में आठ घंटे सोता है। फिर छह घंटे सोता है, फिर चार घंटे। फिर बुढ़ापे में दो घंटे की ही नींद रह जाती है। शायद आपने कभी न सोचा होगा कि बच्चे को सोने की ज्यादा जरूरत क्यों है? और बढ़े को नींद की जरूरत क्यों कम हो जाती है? जब जीवन निर्माण करता है, तो स्वयं का बिलकल ही स्मरण नहीं चाहिए। स्वयं का स्मरण जीवन के विकास में बाधा बनता है। बच्चा निर्मित हो रहा है, तो उसे चौबीस घंटे सुलाए रखती है प्रकृति; ताकि बच्चे को मेरे होने का खयाल न आ पाए, वह ईगोकांशसनेस न आ पाए। जैसे ही बच्चे को खयाल आया कि मैं हूं, वैसे ही उसके विकास में बाधा पड़नी शुरू हो जाती है। वह मैं जो है, वह जीवन के ऊपर बोझ बन जाता है। जैसे-जैसे मैं बड़ा होगा, वैसे-वैसे नींद कम होती जाएगी। और बुढ़ापे में नींद बिलकुल ही विदा हो जाएगी; क्योंकि फिर मृत्यु करीब आ रही है। अब जीवन को निर्मित होने की कोई जरूरत नहीं है, अब जीवन विसर्जित होने के करीब है। अब बूढ़ा आदमी पूरे समय जाग सकता है। अब जागने की कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन बच्चा नहीं जाग सकता। चिकित्सक कहेंगे कि अगर कोई आदमी बीमार है और साथ ही उसकी नींद भी खो जाए, तो उसकी बीमारी को ठीक करना मुश्किल हो जाता है। इसलिए पहली फिक्र चिकित्सक करेगा कि बीमारी की हम पहले चिंता न करेंगे, पहले उसकी नींद की चिंता करेंगे। पहले उसे नींद आ जाए, तो बीमारी को दूर करना बहुत कठिन नहीं होगा। क्यों? क्योंकि नींद में वह मैं को भूल जाएगा और जितनी देर मैं को भूल जाए, उतनी ही देर के लिए जीवन निर्भार हो जाता है। और उसी बीच जीवन की सारी क्रियाएं अपना पूरा काम कर पाती हैं। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy