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अगर बीमार आदमी न सो सके, तो बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक उसका जागना हो जाएगा। क्योंकि चिंता चौबीस घंटे उसके सिर पर बनी रहेगी।
आप रात आठ घंटा सोने के बाद सुबह ताजा अनुभव करते हैं अपने को, प्रसन्न अनुभव करते हैं। उसका कोई और कारण नहीं है। क्योंकि छह घंटे के लिए अहंकार से छुटकारा हुआ था। अगर मनुष्य-जाति हजारों-हजारों साल से शराब में, बेहोशी की और मादक द्रव्यों में रस लेती रही है, तो उसका एक ही कारण है। क्योंकि आदमी इतना चिंता और इतने अहंकार से भरा हुआ है कि उसका जीना मुश्किल हो जाता है, अगर वह अपने को न भूल पाए। इस पृथ्वी से शराब अलग न हो सकेगी, जब तक पूरी पृथ्वी ध्यान में डूबने को तैयार न हो। तब तक शराब को दूर करने का कोई भी उपाय नहीं है। क्योंकि दो ही उपाय हैं अहंकार से मुक्त होने के: या तो आप इतने ध्यान में उतर जाएं, जैसा लाओत्से कहता है कि आप अपने लिए जीना ही बंद कर दें; और या दूसरा उपाय यह है कि जबरदस्ती केमिकल ड्रग से अपने को बेहोश कर लें। मैं मिटेगा नहीं शराब से, लेकिन भूल जाएगा। और जितनी देर भूल जाएगा, उतनी देर अच्छा लगेगा। लेकिन जब होश आएगा वापस, तो वही मैं दुगुनी ताकत इकट्ठी करके खड़ा हो जाएगा। इतनी देर दबा रहा; उसका भी बदला, उसका भी रिवेंज लेगा।
जैसे-जैसे मनुष्य का अहंकार बढ़ा है, वैसे-वैसे दुनिया में बेहोश होने की व्यवस्था में बढ़ती करनी पड़ी है। जितना सभ्य मुल्क, उतनी ज्यादा शराब! और अब हमें और नई चीजें खोजनी पड़ी हैं। मारिजुआना है, मेस्कलीन है, एल एस डी है। आदमी किसी तरह अपने को भूल पाए।
आखिर आदमी अपने को याद इतना रख कर क्यों परेशानी में पड़ता है?
लाओत्से कहता है, यह प्रकृति इतनी शाश्वत है इसीलिए कि इसे पता ही नहीं है कि मैं हूं। यह आकाश इतना नित्य है इसीलिए कि यह अपने लिए नहीं है, दूसरों के लिए है।
हम सब अपने लिए हैं। और जो आदमी जितना ज्यादा अपने लिए है, उतना परेशान होगा, विक्षिप्त हो जाएगा, पागल हो जाएगा। जितना हमारा बड़ा घेरा होता है जीने का, उतनी ही विक्षिप्तता कम हो जाती है। जो जितने ज्यादा लोगों के लिए जी सकता है, उतना ही हलका हो जाता है। उसमें पंख लग जाते हैं, वह आकाश में उड़ सकता है। और अगर कोई व्यक्ति अपने मैं को बिलकुल ही भूल जाए, तो उसके जीवन पर किसी तरह के ग्रेविटेशन का, किसी तरह की कशिश का कोई प्रभाव नहीं रह जाता। उसकी जमीन में कोई जड़ें नहीं रह जातीं; वह आकाश में उड़ सकता है मुक्त होकर। पूरब ने इसी तरह के व्यक्तियों को मुक्त व्यक्ति कहा है, जिनका जीवन मैं-केंद्रित, ईगो-सेंट्रिक नहीं है।
यह मैंने आपसे कहा कि नींद आपको हलका कर जाती है इसीलिए कि उतनी देर के लिए आप अपने मैं को भूल जाते हैं। मैंने आपसे कहा कि बुढ़ापे में नींद की जरूरत कम हो जाती है, क्योंकि मैं इतना सघन हो जाता है कि नींद को आने भी नहीं देता। वह इतना भारग्रस्त हो जाता है मन कि नींद के लिए जो शिथिलता और रिलैक्सेशन चाहिए, वह असंभव हो जाता है।
लेकिन एक और तरह के आदमी के बाबत हम जानते हैं, जिसकी नींद की भीतरी जरूरत समाप्त हो जाती है। कृष्ण ने गीता में कहा है कि वैसा जागा हुआ पुरुष नींद में भी जागता है। बुद्ध ने भी कहा है कि अब मैं सोता हूं जरूर, लेकिन वह नींद मेरे शरीर की ही नींद है, मेरी नहीं। महावीर ने कहा है, जब तक नींद जारी रहे, तब तक जानना कि तुम्हारे भीतर आत्मा का अनुभव शुरू नहीं हुआ है।
एक और जागरण भी है, जब कि भीतर किसी नींद की कोई जरूरत नहीं रह जाती, क्योंकि कोई अहंकार नहीं रह जाता, जिसे उतारने के लिए नींद की, बेहोशी की आवश्यकता हो। कोई भीतर अहंकार नहीं रह जाता, तो कोई तनाव नहीं रह जाता। तनाव नहीं रह जाता, तो नींद की कोई जरूरत नहीं रह जाती। शरीर थकेगा, सो लेगा; लेकिन भीतर चेतना जागती ही रहेगी। भीतर चेतना देखती रहेगी कि अब नींद आई; और अब नींद शरीर पर छा गई; और अब नींद समाप्त हो गई; और शरीर नींद के बाहर हो गया। भीतर कोई सतत जाग कर इसे भी देखता रहेगा।
कभी आपने सोचा न होगा, कभी आपने अपनी नींद को आते हुए देखा है या कभी जाते हुए देखा है? अगर देखा हो, तो आप एक धार्मिक आदमी हैं। और अगर न देखा हो, तो आप एक धार्मिक आदमी नहीं हैं। आप कितने मंदिर जाते हैं, इससे कोई संबंध नहीं है। और कितनी गीता और कुरान पढ़ते हैं, इससे भी कोई संबंध नहीं है। जांच की विधि और है। और वह यह है कि क्या आपने अपनी नींद को आते देखा है? क्योंकि नींद को आते वही देख सकता है, जो भीतर नींद के आने पर भी जागा रहे। अन्यथा कैसे देख सकेगा? नींद आएगी, आप सो चुके होंगे। नींद जाएगी, तब आप जागेंगे। इसलिए आपने अपनी नींद को कभी नहीं देखा है। जब नींद आ गई होती है, तब आप मौजूद नहीं रह जाते। देखेगा कौन? और जब नींद जाती है, तब आप सोए होते हैं। देखेगा कौन? नींद और आपका मिलन कभी नहीं होता। उसका अर्थ यह हुआ कि आप ही नींद बन जाते हैं। जब नींद आती है, तो आप इतने बेहोश हो जाते हैं कि भीतर का कोई कोना अलग खड़े होकर देख नहीं सकता कि नींद आ रही है।
और जिस व्यक्ति ने अपने भीतर आती नींद नहीं देखी, वह व्यक्ति अपने भीतर आते क्रोध को भी नहीं देख पाएगा। क्योंकि क्रोध के पहले भी निद्रा की स्थिति शरीर में फैल जाती है। वह जरूर देख पाएगा पीछे, बाद में, जब क्रोध जा चुका होगा, या क्रोध अपना काम
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