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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free अगर बुद्ध के आस-पास एक प्रेम की फिल्म-कथा बनानी हो, तो बड़ी मुश्किल पड़े, बड़ी मुश्किल पड़ जाए। प्रेम की कथा के लिए एक अभद्र नायक चाहिए। और जितना अभद्र हो, उतना रोचक, उतना पुरुष मालूम पड़ेगा। इसलिए अगर पश्चिम का डायरेक्टर, फिल्म का डायरेक्टर किसी अभिनेता को चुनता है, तो देखता है, छाती पर बाल हैं या नहीं! हाथों पर बाल हैं या नहीं! स्त्री को देखता है, तो बाल बिलकुल नहीं होने चाहिए। थोड़ा जंगली दिखाई पड़े, रॉ, थोड़ा कच्चा दिखाई पड़े, तो एक सेक्सुअल अट्रैक्शन, एक कामुक आकर्षण है। नीग्रो से भय पैदा हो गया है। वह भय आर्थिक कम, मानसिक ज्यादा है। जैसे ही कोई पुरुष भद्र होगा, जितना भद्र होगा, उतना स्त्रैण हो जाएगा, उतना कोमल हो जाएगा। और बड़े मजे की बात है, जितना कोमल हो जाएगा, उतना कम कामुक हो जाएगा। जितना पुरुष कोमल होता जाता है, उतना कम कामुक होता चला जाता है। और यह उसकी जो कम कामुकता है, उसे जीवन के परम रहस्य की तरफ ले जाने के लिए मार्ग बन जाती है। लाओत्से कहता है, यूज जेंटली, भद्ररूपेण अगर उपयोग किया। एंड विदाउट दि टच ऑफ पेन। ध्यान रहे, यह थोड़ा समझने जैसा है। पुरुष जब भी स्त्री को छूता है, तो बहुत तरह के दर्द उसको देना चाहता है, बहुत तरह के पेन। असल में, पुरुष का जो प्रेम है, मेथडोलॉजिकली-विधि की दृष्टि से स्त्री को सताने जैसा है। अगर वह ज्यादा प्रेम करेगा, तो ज्यादा जोर से हाथ दबाएगा। अगर चुंबन ज्यादा प्रेमपूर्ण होगा, तो वह काटना शुरू कर देगा। नाखून गड़ाएगा। पुराने कामशास्त्र के जो ग्रंथ हैं, उनमें नखदंश की बड़ी प्रशंसा है, कि वह पुरुष ही क्या जो अपनी स्त्री के शरीर में नख गड़ा-गड़ा कर लहू न निकाल दे! प्रेमी का लक्षण है, नखदंश। फिर प्रेमी अगर बहुत कुशल हो, जैसा कि मार्कस-डी सादे था। तो नाखून काम नहीं करते, तो वह साथ में छुरी-कांटे रखता था। जब किसी को प्रेम करे, तो थोड़ी देर नाखून; और फिर नाखून जब काम न करे, तो छुरी-कांटे! पुरुष का जो प्रेम का ढंग है, उसमें हिंसा है। इसलिए वह जितना ज्यादा प्रेम में पड़ेगा, उतना हिंसक होने लगेगा। इस बात की संभावना है कि अगर पुरुष अपने पूरे प्रेम में आ जाए, तो वह स्त्री की हत्या कर सकता है-प्रेम के कारण। ऐसी हत्याएं हुई हैं। और अदालतें बड़ी मुश्किल में पड़ गईं, क्योंकि उन हत्याओं में कोई भी दुश्मनी न थी। अति प्रेम कारण था। इतने प्रेम से भर गया वह, इतने प्रेम से भर गया कि दबाते-दबाते कब उसने अपनी प्रेयसी की गर्दन दबा दी, वह उसे पता नहीं रहा। लाओत्से कहता है, यूज जेंटली। यह परम सत्य के संबंध में वह कहता है कि बहुत भद्रता से व्यवहार करना। एंड विदाउट दि टच ऑफ पेन। और तुम्हारे द्वारा अस्तित्व को जरा सी भी पीड़ा न पहुंचे। तो ही तुम, तो ही तुम स्त्रैण रहस्य को समझ पाओगे। स्त्री अगर पुरुष को प्रेम भी करती है, अगर स्त्री पुरुष के कंधे पर भी हाथ रखती है, तो वह ऐसे रखती है कि कंधा छू न जाए। और वही स्त्री का राज है। और जितना उसका हाथ कम छूता हुआ छूता है, उतना प्रेमपूर्ण हो जाता है। और जब स्त्री भी पुरुष के कंधे को दबाती है, तो वह खबर दे रही है कि उस स्त्रैण जगत से वह हट गई है और पुरुष की नकल कर रही है। वह सिर्फ अपने को छोड़ देती है, जस्ट फ्लोटिंग, पुरुष के प्रेम में छोड़ देती है। वह सिर्फ राजी होती है, कुछ करती नहीं। वह पुरुष को छूती भी नहीं इतने जोर से कि स्पर्श भी अभद्र न हो जाए! लेकिन अभी पश्चिम में उपद्रव चला है। अभी पश्चिम की बुद्धिमान स्त्रियां-उन्हें अगर बुद्धिमान कहा जा सके तो-वे यह कह रही हैं कि स्त्रियों को ठीक पुरुष जैसा एग्रेसिव होना चाहिए। ठीक पुरुष जैसा प्रेम करता है, स्त्रियों को करना चाहिए। उतना ही आक्रामक। निश्चित ही, उतना आक्रामक होकर वे पुरुष जैसी हो जाएंगी। लेकिन उस फेमिनिन मिस्ट्री को खो देंगी, लाओत्से जिसकी बात करता है। और लाओत्से ज्यादा बुद्धिमान है। और लाओत्से की बुद्धिमत्ता बहुत पराबुद्धिमत्ता है। वह जहां विजडम के भी पार एक विजडम शुरू होती है, जहां सब बुद्धिमानी चुक जाती है और प्रज्ञा का जन्म होता है, वहां की बात है। पर यह पुरुष-स्त्री दोनों के लिए लागू है, अंत में इतना आपको कह दूं। यह मत सोचना, स्त्रियां प्रसन्न होकर न जाएं, क्योंकि उनमें बहुत कम स्त्रियां हैं। स्त्री होना बड़ा कठिन है। स्त्री होना परम अनुभव है। पुरुष परेशान होकर न जाएं, क्योंकि उनमें और स्त्रियों में बहुत भेद नहीं है। दोनों को यात्रा करनी है। समझ लें इतना कि हम सत्य को जानने में उतने ही समर्थ हो जाएंगे, जितने अनाक्रामक, नॉन-एग्रेसिव, जितने प्रतीक्षारत, अवेटिंग, जितने निष्क्रिय, पैसिव, घाटी की आत्मा जैसे! शिखर की तरह अहंकार से भरे हुए पहाड़ की अस्मिता नहीं; घाटी की तरह विनम्र, घाटी की तरह गर्भ जैसे, मौन, चूप, प्रतीक्षा में रत! तो उस पैसिविटी में, उस परम निष्क्रियता में अखंड और अविच्छिन्न शक्ति का वास है। वहीं से जन्मता है सब, और वहीं सब लीन हो जाता है। आज इतना ही। फिर हम कल बात करें। लेकिन अभी जाएं न। अभी हम कीर्तन में चलेंगे, हो सकता है यह कीर्तन स्त्रैण रहस्य को समझने का द्वार बन जाए। सम्मिलित हों। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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