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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free उसकी पत्नी ने कहा, आप शायद भूल गए होंगे, बहुत काम था। बारह वर्ष आप काम में थे। याद आपको रहे, संभव भी नहीं है। बारह वर्ष पहले, खयाल अगर आपको आता हो, तो आप मुझे पत्नी की तरह घर ले आए थे। तब से मैं यहीं हैं। वाचस्पति रोने लगा। उसने कहा, यह तो बहुत देर हो गई। क्योंकि मैंने तो प्रतिज्ञा कर रखी है कि जिस दिन यह ग्रंथ पूरा हो जाएगा, उसी दिन घर का त्याग कर दूंगा। तो यह तो मेरे जाने का वक्त हो गया। भोर होने के करीब है; तो मैं जा रहा हूं। पागल, तूने पहले क्यों न कहा? थोड़ा भी त इशारा कर सकती थी। लेकिन अब बहत देर हो गई। वाचस्पति की आंखों में आंसू देख कर पत्नी ने उसके चरणों में सिर रखा और उसने कहा, जो भी मुझे मिल सकता था, वह इन आंसुओं में मिल गया। अब मुझे कुछ और चाहिए भी नहीं है। आप निश्चिंत जाएं। और मैं क्या पा सकती थी इससे ज्यादा कि वाचस्पति की आंख में मेरे लिए आंसू हैं! बस, बहुत मुझे मिल गया है। वाचस्पति ने अपने ब्रह्मसूत्र की टीका का नाम भामति रखा है। भामति का कोई संबंध टीका से नहीं है। ब्रह्मसूत्र से कोई लेना-देना नहीं है। यह उसकी पत्नी का नाम है। यह कह कर कि अब मैं कुछ और तेरे लिए नहीं कर सकता, लेकिन मुझे चाहे लोग भूल जाएं, तुझे न भूलें, इसलिए भामति नाम देता हूं अपने ग्रंथ को। वाचस्पति को बहुत लोग भूल गए हैं; भामति को भूलना मुश्किल है। भामति लोग पढ़ते हैं। अदभुत टीका है ब्रह्मसूत्र की। वैसी दूसरी टीका नहीं है। उस पर नाम भामति है। फेमिनिन मिस्ट्री इस स्त्री के पास होगी। और मैं मानता हूं कि उस क्षण में इसने वाचस्पति को जितना पा लिया होगा, उतना हजार वर्ष भी चेष्टा करके कोई स्त्री किसी पुरुष को नहीं पा सकती। उस क्षण में, उस क्षण में वाचस्पति जिस भांति एक हो गया होगा इस स्त्री के हृदय से, वैसा कोई पुरुष को कोई स्त्री कभी नहीं पा सकती। क्योंकि फेमिनिन मिस्ट्री, वह जो रहस्य है, वह अनुपस्थित होने का है। छुआ क्या प्राण को वाचस्पति के? कि बारह वर्ष! और उस स्त्री ने पता भी न चलने दिया कि मैं यहीं हूं। और वह रोज दीया उठाती रही और भोजन कराती रही। और वाचस्पति ने कहा, तो रोज जो थाली खींच लेता था, वह तू ही है? और रोज सुबह जो फूल रख जाता था, वह कौन है? और जिसने रोज दीया जलाया, वह तू ही थी? पर तेरा हाथ मुझे दिखाई नहीं पड़ा! भामति ने कहा, मेरा हाथ दिखाई पड़ जाता, तो मेरे प्रेम में कमी साबित होती। मैं प्रतीक्षा कर सकती हूं। तो जरूरी नहीं कि कोई स्त्री स्त्रैण रहस्य को उपलब्ध ही हो। यह तो लाओत्से ने नाम दिया, क्योंकि यह नाम सूचक है और समझा सकता है। पुरुष भी हो सकता है। असल में, अस्तित्व के साथ तादात्म्य उन्हीं का होता है, जो इस भांति प्रार्थनापूर्ण प्रतीक्षा को उपलब्ध होते हैं। “इस स्त्रैण रहस्यमयी का द्वार स्वर्ग और पृथ्वी का मूल स्रोत है।' चाहे पदार्थ का हो जन्म और चाहे चेतना का, और चाहे पृथ्वी जन्मे और चाहे स्वर्ग, इस अस्तित्व की गहराई में जो रहस्य छिपा हुआ है, उससे ही सबका जन्म होता है। इसलिए मैंने कहा, जिन्होंने परमात्मा को मदर, मां की तरह देखा, दुर्गा या अंबा की तरह देखा, उनकी समझ परमात्मा को पिता की तरह देखने से ज्यादा गहरी है। अगर परमात्मा कहीं भी है, तो वह स्त्रैण होगा। क्योंकि इतने बड़े जगत को जन्म देने की क्षमता पुरुष में नहीं है। इतने विराट चांदत्तारे जिससे पैदा होते हों, उसके पास गर्भ चाहिए। बिना गर्भ के यह संभव नहीं है। इसलिए खासकर यहूदी परंपराएं, ज्यूविश परंपराएं-यहूदी, ईसाई और इसलाम, तीनों ही ज्यूविश परंपराओं का फैलाव हैं-उन्होंने जगत को एक बड़ी भ्रांत धारणा दी, गॉड दि फादर। वह धारणा बड़ी खतरनाक है। पुरुष के मन को तृप्त करती है, क्योंकि पुरुष अपने को प्रतिष्ठित पाता है परमात्मा के रूप में। लेकिन जीवन के सत्य से उस बात का संबंध नहीं है। ज्यादा उचित एक जागतिक मां की धारणा है। पर वह तभी खयाल में आ सकेगी, जब स्त्रैण रहस्य को आप समझ लें, लाओत्से को समझ लें। अन्यथा समझ में न आ सकेगी। कभी आपने देखा है काली की मूर्ति को? वह मां है और विकराल! मां है और हाथ में खप्पर लिए है आदमी की खोपड़ी का! मां है, उसकी आंखों में सारे मातृत्व का सागर। और नीचे? नीचे वह किसी की छाती पर खड़ी है। पैरों के नीचे कोई दबा है। क्योंकि जो सृजनात्मक है, वही विध्वंसात्मक होगा। क्रिएटिविटी का दूसरा हिस्सा डिस्ट्रक्शन है। इसलिए बड़ी खूबी के लोग थे, जिन्होंने यह सोचा! बड़ी इमेजिनेशन के, बड़ी कल्पना के लोग थे। बड़ी संभावनाओं को देखते थे। मां को खड़ा किया है, नीचे लाश की छाती पर खड़ी है। हाथ में खोपड़ी है आदमी की, मुर्दा। खप्पर है, लहू टपकता है। गले में माला है खोपड़ियों की। और मां की आंखें हैं और मां का हृदय है, जिनसे दूध बहे। और वहां खोपड़ियों की माला टंगी है! असल में, जहां से सृष्टि पैदा होती है, वहीं प्रलय होता है। सर्किल पूरा वहीं होता है। इसलिए मां जन्म दे सकती है। लेकिन मां अगर विकराल हो जाए, तो मृत्य भी दे सकती है। और स्त्री अगर विकराल हो, तो बहुत खतरनाक हो जाती है। शक्ति उसमें बहुत है। शक्ति इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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