________________
Download More Osho Books in Hindi
Download Hindi PDF Books For Free
परमात्मा को केवल वे ही पा सकते हैं, जो स्त्रैण रहस्य को समझ गए, जिन्होंने अपने को इतना समर्पित किया, इतना छोड़ा, लेट गो, कि परमात्मा उनमें उतर सके। ठीक वैसे ही, जैसे स्त्री पुरुष के प्रेम में अपने को छोड़ देती है; कुछ करती नहीं, बस छोड़ देती है; और पुरुष उसमें उतर पाता है।
एक बहुत अनूठी बात जो इधर दस वर्षों में खयाल में आनी शुरू हुई। क्योंकि वास्तविक स्त्री खो गई है दुनिया से। और जो स्त्री है, वह बिलकुल सूडो है, वह पुरुष के द्वारा बनाई गई है, वह बिलकुल बनावटी है। जिसको हम आज स्त्री कह कर जानते हैं, वह पुरुष के द्वारा बनाई गई गुड़िया से ज्यादा नहीं है। वह स्वाभाविक स्त्री नहीं है, जैसी होनी चाहिए।
अभी पश्चिम में एक छोटा सा वैज्ञानिकों का प्रयोग चलता है, जिसमें वे यह कोशिश करते हैं कि क्या यह संभव है! और तंत्र ने इस पर बहुत पहले काम किया है-बहुत पहले, कोई दो हजार साल पहले-और यह अनुभव किया है कि यह हो सकता है। स्त्री और पुरुष के संभोग में चूंकि पुरुष सक्रिय होता है। अगर पुरुष सक्रिय न हो पाए, तो संभोग असंभव है। अगर पुरुष कमजोर हो जाए, वृद्ध हो जाए, उसके जनन-यंत्र शिथिल हो जाएं, तो संभोग असंभव है। लेकिन अभी पश्चिम में दस वर्षों में कुछ प्रयोग हुए हैं गहरे, जिनमें वे कहते हैं कि अगर पुरुष की जननेंद्रिय बिलकुल शिथिल और क्षीण, शक्तिहीन हो जाए, तो भी फिक्र नहीं। स्त्री अगर उस पुरुष को प्रेम करती है, तो सिर्फ स्त्री-जननेंद्रिय के पास पहुंच जाने पर स्त्री की जननेंद्रिय पुरुष की जननेंद्रिय को चुपचाप अपने भीतर खींच लेती है। पुरुष को प्रवेश की भी जरूरत नहीं है। अगर स्त्री का प्रेम भारी है, तो उसका शरीर ऐसे खींच लेता है, जैसे खाली जगह में हवा खिंच कर आ जाए।
यह बहुत हैरानी का तथ्य है। और अगर ऐसा नहीं होता, तो उसका कुल कारण इतना है कि स्त्री प्रेम नहीं करती है उस पुरुष को। इसलिए उसका शरीर उसे खींचता नहीं। और इसलिए पुरुष जो भी कर रहा है, वह बलात्कार है। अगर स्त्री प्रेम करती है, तो खींच लेगी। उसका पूरा बायोलॉजिकल, उसका जैविक यंत्र ऐसा है कि वह व्यक्ति को अपने भीतर खींच लेगी।
लाओत्से कहता है, यह स्त्री का रहस्य है कि बिना कुछ किए वह कुछ कर सकती है। बिना कुछ किए! पुरुष को कुछ भी करना हो, तो करना पड़ेगा। धर्म का रहस्य भी स्त्रैण है। अगर कोई परमात्मा को पाने जाए, तो कभी न पा सकेगा। और कोई केवल अपने हृदय के
द्वार को खोल कर ठहर जाए, तो परमात्मा यहीं और अभी प्रवेश कर जाता है। दूर-दूर खोजे कोई, अनंत की यात्रा करे कोई, भटके जन्मों-जन्मों तक, तो भी परमात्मा को नहीं पा सकेगा। क्योंकि परमात्मा को पाने का राज ही यही है कि हम रिसेप्टिव हो जाएं, एग्रेसिव नहीं। हम अपने को खुला छोड़ दें। हम सिर्फ राजी हो जाएं कि वह आता हो तो हमारे द्वार-दरवाजे बंद न पाए। हमारा प्रेम इतना ही करे कि वह एक पैसिव अवेटिंग, एक निष्क्रिय प्रतीक्षा बन जाए।
स्त्री जन्म-जन्म तक अपने प्रेमी की प्रतीक्षा कर सकती है; पुरुष नहीं कर सकता। पुरुष प्रतीक्षा जानता ही नहीं है। पुरुष के मन की जो व्यवस्था है, उसमें प्रतीक्षा नहीं है। उसमें अभी और यहीं, इंसटैंट सब चाहिए। इंसटैंट काफी भी, इंसटैंट सेक्स भी। अभी! इसलिए पुरुष ने विवाह ईजाद किया। क्योंकि विवाह के बिना इंसटैंट सेक्स, अभी, संभव नहीं है। पुरुष प्रतीक्षा बिलकुल नहीं कर सकता। आतुर है, व्यग्र है, तनावग्रस्त है। लेकिन स्त्री प्रतीक्षा कर सकती है, अनंत प्रतीक्षा कर सकती है।
इसलिए जब इस मुल्क में हिंदुओं ने पुरुषों को विधुर रखने की व्यवस्था नहीं की और स्त्रियों को विधवा रखने की व्यवस्था की, तो यह सिर्फ स्त्रियों पर ज्यादती ही नहीं थी, यह स्त्रियों की प्रतीक्षा के तत्व की समझ भी इसमें थी। एक स्त्री अपने प्रेमी के लिए पूरे जन्म, अगले जन्म तक के लिए प्रतीक्षा कर सकती है। यह भरोसा किया जा सकता है। लेकिन पुरुष पर यह भरोसा नहीं किया जा सकता।
इसलिए भारत ने अगर स्त्रियों को विधवा रखने की व्यवस्था दी और पुरुषों को नहीं दी, तो सिर्फ इसलिए नहीं कि यह व्यवस्था पुरुष के पक्ष में थी। जहां तक मैं समझ पाता हं, यह परुष का बहत बड़ा अपमान था, यह स्त्री का गहनतम सम्मान था। क्योंकि इस बात की सूचना थी कि हम स्त्री पर भरोसा कर सकते हैं कि वह प्रतीक्षा कर सकती है। लेकिन पुरुष पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। पुरुष पर भरोसा नहीं किया जा सकता, इसलिए विधुर को रखने के लिए आग्रह नहीं रहा। कोई रहना चाहे, वह उसकी मर्जी! लेकिन स्त्री पर आग्रह था।
और आग्रह इसलिए था कि उसकी प्रतीक्षा में ही उसका वह जो स्त्रैण तत्व है, वह ज्यादा प्रकट होगा। उसे जितना अवसर मिले निष्क्रिय प्रतीक्षा का, उसके भीतर की गहराइयां उतनी ही गहन और गहरी हो जाती हैं। और उसके आंतरिक रहस्य मधुर और सुगंधित हो जाते हैं।
एक बहुत हैरानी की बात मैं कभी-कभी पढ़ता रहा हूं। कभी मेरे खयाल में नहीं आती थी कि बात क्या होगी। कैथोलिक प्रीस्ट के सामने लोग अपने पापों की स्वीकृतियां करते हैं, कन्फेशन करते हैं। अनेक कैथोलिक पुरोहितों का यह अनुभव है कि जब स्त्रियां उनके सामने अपने पापों की स्वीकृति करती हैं, तो स्वभावतः वे भी मनुष्य हैं और केवल ट्रेंड प्रीस्ट हैं।
ईसाइयत ने एक दुनिया को बड़े से बड़ी जो बुरी बात दी है, वह यह, प्रशिक्षित पुरोहित दिए। कोई प्रशिक्षित पुरोहित नहीं हो सकता। प्रशिक्षित डाक्टर हो सकते हैं, प्रशिक्षित वकील हो सकते हैं, लेकिन प्रशिक्षित पुरोहित नहीं हो सकता; उसी तरह, जैसे प्रशिक्षित पोएट,
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज