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इसलिए पुरुष के व्यक्तित्व में सतह बहुत होती है, गहराई नहीं होती उतनी। स्त्री के व्यक्तित्व में सतह बहुत कम होती है, गहराई बहुत ज्यादा होती है। और यही कारण है कि पुरुष जल्दी थक जाता है और स्त्री जल्दी नहीं थकती। आक्रमण थका देगा। इसलिए पुरुष-वेश्याएं नहीं हो सकी, क्योंकि कोई पुरुष वेश्या नहीं हो सकता। एक संभोग, थक जाएगा। स्त्री वेश्या हो सकी; क्योंकि पचास संभोग भी उसे नहीं थका सकते। वह सिर्फ रिसेप्टिव है, वह कुछ करती ही नहीं। इसलिए एक अनोखी घटना घटी कि पुरुष वेश्याएं नहीं हो सके, स्त्रियां वेश्याएं हो सकीं। पुरुष बलात्कारी हो सके, स्त्रियां बलात्कारी नहीं हो सकीं। पुरुष गुंडे हो सके, स्त्रियां गुंडे नहीं हो सकी। लेकिन स्त्रियां वेश्याएं हो सकी, पुरुष वेश्याएं नहीं हो सके। और कारण कुल इतना है कि पुरुष का सारा व्यक्तित्व आक्रामक है। जो आक्रमण करेगा, वह थक जाएगा।
यह जान कर आप हैरान होंगे कि जब बच्चे पैदा होते हैं, तो सौ लड़कियां पैदा होती हैं तो एक सौ सोलह लड़के पैदा होते हैं। प्रकृति संतुलन को कायम रखती है। क्योंकि पुरुष कमजोर है। हम सब यही सोचते हैं कि पुरुष बहुत शक्तिशाली है। वह सिर्फ पुरुष का खयाल है। पुरुष कमजोर है। इसलिए एक सौ सोलह लड़के पैदा करने पड़ते हैं और सौ लड़कियां। क्योंकि चौदह वर्ष के होते-होते सोलह लड़के मर जाते हैं, और लड़के और लड़कियों का अनुपात बराबर हो जाता है। सोलह लड़के एक्सट्रा, अतिरिक्त, स्पेयर प्रकृति को पैदा करने पड़ते हैं। क्योंकि पता है कि सोलह लड़के सौ में से चौदह वर्ष की उम्र पाते-पाते मर जाएंगे।
स्त्रियों की औसत उम्र पुरुषों से ज्यादा है पांच वर्ष। अगर पुरुष सत्तर साल जीता है, तो स्त्रियां पचहत्तर साल जीती हैं। और स्त्रियां जितना श्रम उठाती हैं शरीर से! क्योंकि एक बच्चे को जन्म देने में जितना श्रम है, उतना एक एटम बम को जन्म देने में भी नहीं है। एक स्त्री बीस बच्चों को जन्म दे और फिर भी पुरुष से पांच साल ज्यादा जीती है। स्त्रियां कम बीमार पड़ती हैं। और जो बीमारियां स्त्रियों को हैं, वे स्त्रियों की नहीं, पुरुषों ने जो समाज निर्मित किया है, उसकी परेशानी की वजह से हैं। स्त्रियां कम बीमार पड़ती हैं। फिर भी जितनी बीमार पड़ती हैं, उसमें भी कोई सत्तर प्रतिशत कारण, पुरुषों ने जो व्यवस्था की है वह है, स्त्रियां नहीं। क्योंकि सारी व्यवस्था पुरुष की है, मैन-डामिनेटेड है। और पुरुष अपने ढंग से व्यवस्था करता है। उसमें स्त्री को एडजस्ट होना पड़ता है। वह उसकी बीमारी का कारण है।
हिस्टीरिया पुरुषों के समाज में स्त्रियों को एडजस्ट होने का परिणाम है। अगर स्त्रियों का समाज हो और पुरुषों को उसमें एडजस्ट होना पड़े, तो हिस्टीरिया इससे पांच गुना ज्यादा होगा। करीब-करीब सारे पुरुष पागल हो जाएंगे। वह स्त्रियों का रेसिस्टेंस है, प्रतिरोधक शक्ति है कि वे सब पागल नहीं हो गई हैं। फिर भी स्त्रियां आपको क्रोधी दिखाई पड़ती हैं,र् ईष्यालु दिखाई पड़ती हैं, उपद्रव-कलह चौबीस घंटे वे जारी रखती हैं। उसका कुल कारण इतना है कि वे जो होने को पैदा हुई हैं, समाज उनको वह नहीं होने देता और कुछ और करवाने की कोशिश करता है। उससे उनकी सृजनात्मक शक्ति विध्वंस की तरफ, परवर्शन की तरफ, विकृति की तरफ चली जाती
और पुरुषों ने स्त्रियों को इतना दबाया और इतना सताया, तो आमतौर से लोग समझते हैं-स्त्रियां भी यही समझती हैं-कि स्त्रियां कमजोर थीं, इसलिए पुरुषों ने इतना सताया।
मैं आपसे कहना चाहता हूं, जो जानते हैं वे कुछ और जानते हैं। वे यह जानते हैं कि स्त्रियां इतनी शक्तिशाली थीं कि अगर न दबाई गई होती, तो पुरुषों को उन्होंने कभी का दबा डाला होता। उनको बचपन से ही दबाने की जरूरत है; नहीं वे खतरनाक सिद्ध हो सकती हैं। स्त्रियों को सारी दुनिया में दबाए जाने का जो असली कारण है, वह असली कारण यह है कि वे इतनी शक्तिशाली सिद्ध हो सकती हैं, अगर बिना दबाई छोड़ दी जाएं, कि पुरुष बहुत मुश्किल में पड़ जाएगा। इसलिए उन्हें सब तरफ से रोक देना जरूरी है। और बचपन से रोक देना जरूरी है।
और रुकावट करीब-करीब वैसी है, जैसे चीन में हम स्त्रियों को लोहे के जूते पहना देते थे। फिर उनका पैर बड़ा नहीं हो पाता था। फिर वे स्त्रियां दौड़ नहीं सकती थीं, चल नहीं सकती थीं ठीक से, भाग नहीं सकती थीं। सच तो यह है, उन्हें सदा ही पुरुष के कंधे के सहारे की जरूरत थी। और फिर पुरुष उनसे कहता था: नाजुक, डेलिकेट। और नाजुक होने को पुरुष ने एक मूल्य बना दिया, एक वैल्यू बना दिया। क्योंकि स्त्री नाजुक हो, तो ही उस पर काबू किया जा सकता है।
स्त्री पुरुष से ज्यादा मजबूत सिद्ध हो सकती है, अगर उसको पूरा विकसित होने दिया जाए। क्योंकि प्रकृति ने उसे जन्म की शक्ति दी है। और जन्म की शक्ति सदा उसके पास होती है, जो ज्यादा शक्तिशाली है। अन्यथा गर्भ को खींच लेना असंभव हो जाएगा।
लाओत्से कहता है, इस स्त्रैण रहस्य को ठीक से समझ लें। यह घाटी की जो आत्मा है, इसे ठीक से समझ लें। यह घाटी की आत्मा कभी थकती नहीं। यह कभी मरती नहीं। यह जो निषेध है, यह जो न करने के द्वारा करने की कला है, यह जो बिना आक्रमण के आक्रमण कर देना है, यह बिना बुलाए बुला लेने का जो राज है, इसे ठीक से समझ लें। क्योंकि लाओत्से कहता है, इस राज को समझ कर ही कोई जीवन के परम सत्य को उपलब्ध कर सकता है। हम पुरुष की तरह परम सत्य को कभी नहीं पा सकते, क्योंकि परम सत्य पर कोई आक्रमण नहीं किया जा सकता। कोई हम बंदूकें और तलवारें लेकर परमात्मा के मकान पर कब्जा नहीं कर लेंगे।
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