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घंटे बोलते-बोलते, बोलते-बोलते शब्द इतने इकट्ठे हो जाते हैं कि शब्दों के बीच में वह जो आत्मा में छिपा हुआ शून्य है, उसकी हमें कोई खबर नहीं रह जाती। शब्द की इस ऊपरी पर्त को हटाना पड़े, तो ही हम भीतर के शून्य से परिचित होते हैं।
लाओत्से कहता है, “शब्द-बाहल्य से बुद्धि निःशेष होती है। इसलिए अपने केंद्र में स्थापित होना ही श्रेयस्कर है।'
अपने केंद्र में! क्योंकि केंद्र शून्य है। शब्द केवल परिधि है। जैसे नदी की ऊपर सतह पर पते छा गए हों और नदी ढंक गई हो, काई छा गई हो और नदी का पानी दिखाई न पड़ता हो, ऐसे ही हमारे ऊपर शब्दों का बाहुल्य है। भीतर शून्य छिप गया है। उस शून्य को लाओत्से केंद्र कहता है। वह कहता है, वही है हमारे प्राण का केंद्र। लेकिन हम परिधि पर भटकते रहते हैं। और परिधि हमें इतने जोर से पकड़ लेती है कि हम कभी भीतर पहुंच नहीं पाते। परिधि-एक शब्द दूसरे शब्द को पकड़ा देता है, दूसरा तीसरे को पकड़ा देता है।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हम एसोसिएशन से जीते हैं। अगर आपको हम एक शब्द दे दें, दे दें कुत्ता, और आपसे कह दें बस चल पड़िए, तो आप भीतर चल पड़ेंगे। कुत्ता स्टार्ट करवा देगा। भीतर आपकी बंदूक का घोड़ा खींच दिया गया। अब आप कुत्ते से यात्रा शुरू कर देंगे। भीतर शब्द आ जाएंगे। तत्काल कुत्ते के पीछे क्यू खड़ा हो जाएगा। कोई कुत्ता आपको पसंद है; कोई कुत्ता आपको नहीं पसंद है। किसी कुत्ते का क्या नाम है; किसी कुत्ते का क्या नाम नहीं है। यात्रा शुरू हो गई। किस मित्र के पास कुत्ता है; और अब आप बढ़ चले। और उस मित्र की पत्नी कैसी है। और पत्नी आपको देख कर प्रीतिकर लगती है, अप्रीतिकर लगती है। आप चल पड़े। एक कुत्ते ने सिर्फ यात्रा शुरू की, पता नहीं आप किस रोमांस में यात्रा का अंत करें। कुछ कहा नहीं जा सकता।
एक छोटा सा शब्द, और आपके भीतर तत्काल यात्रा शुरू हो जाती है। आप भीतर तैयार बैठे हैं। शब्द मिल जाए, और आप जुगाली करने लगेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि आपको समझने की फसत कभी न मिलेगी। शब्द मिला कि आप चल पड़ते हैं! समझ तो वह सकता है, जो शब्द के साथ शून्य होकर खड़ा हो जाता है।
मैंने कोई बात कही, आप तभी समझ पाएंगे, जब आपके सामने शून्य खड़ा हो। मैं एक बात कहूं और आपके भीतर शून्य उसका सामना करे, जैसे दर्पण के सामने मैं आ जाऊं, तो दर्पण मेरी तस्वीर को देख ले। अगर आपका हृदय शून्य हो, तो जो मैं कहूं, वह भी आपको सुनाई पड़ जाए; और जो मैंने नहीं कहा, वह भी सुनाई पड़ जाए। जो मैं दिखाई पड़ता हूं, वह भी दिखाई पड़ जाए; और जो मैं दिखाई नहीं पड़ता हूं, वह भी दिखाई पड़ जाए। लेकिन आपके भीतर इतने शब्द भरे हैं कि जब भी मैं कुछ कहूंगा, आप मुझे सुनने को नहीं रुकेंगे। आपने सुना भी नहीं कि आप जा चुके यात्रा पर। आपके भीतर शब्दों की कतारबंध यात्रा शुरू हो गई। आप सोचने लगे, गीता में भी यही कहा है, कुरान में भी यही कहा है। यह तो मेरे धर्म के खिलाफ हो गया; यह बात मैं नहीं मान सकता हूं।
एक दिन एक छोटी सभा में मैं बोल रहा था। एक ही आदमी मुसलमान था, वह मेरे सामने ही बैठा था। थोड़े ही लोग थे, कोई पचास लोग थे। मैं जो भी बोलता था, वे मुसलमान मित्र बिलकुल सिर हिलाते थे कि बिलकुल ठीक! वे मेरे सामने ही बैठे थे। बिलकुल ठीक! जो भी मैं बोलता था, वे सिर हिलाते, बिलकुल ठीक! मैंने कहा कि क्या ऐसी भी कोई बात कह सकता हूं, जिसमें कि इनका सिर न हिले। मैंने सिर्फ उनका सिर देखने के लिए कहा कि कुरान किताब तो अदभुत है, लेकिन बहुत ग्रामीण है, जैसे कि गांव के लोगों ने लिखी हो। उनका सिर बिलकुल हिलने लगा कि नहीं। वे बोल नहीं रहे, अपनी कुर्सी पर बैठे हैं। उनसे मेरा कोई लेना-देना नहीं। लेकिन मैं जो कहता हूं, हां और न वे उसमें करते जाते हैं। जैसे ही मैंने कहा कि ग्रामीण, उन्होंने कहा कि बिलकुल नहीं। और इसके बाद वे अकड़ गए। फिर कुर्सी पकड़ कर बैठे रहे। फिर उनसे मेरा संबंध टूट गया। वह एक शब्द ग्रामीण, मेरा संबंध उनसे टूट गया! फिर सारे लोग उस कमरे में थे, वे एक मित्र उस कमरे में नहीं रह गए। एक छोटा शब्द, ग्रामीण; उनके मन में, पता नहीं, उठा होगा गंवार या क्या! मैंने कहा ग्रामीण, उनके मन में आया होगा गंवार कह रहा हूं। उनके भीतर एक यात्रा शुरू हो गई। वे सख्त हो गए। बाद उनके दरवाजे बंद हो गए।
असल में, जब मैं कह रहा था, तब पूरे समय भीतर वे एक चर्चा चला रहे थे; हां और न कर रहे थे। हमारी बॉडी लैंग्वेज होती है। बहुत कुछ जो हम मुंह से नहीं कहते, अपने शरीर से कह देते हैं। अभी पश्चिम में एक नया विज्ञान खड़ा हो रहा है बॉडी लैंग्वेज पर कि आदमी के शरीर को समझा जाए कि वह क्या कहता है!
अगर आप किसी स्त्री से मिलते हैं और वह आपको पसंद नहीं करती, तो वह पीछे की तरफ गिरती हुई हालत में खड़ी रहती है। पूरे वक्त डरी है कि कहीं आप और आगे न बढ़ आएं। उसका जो एंगल है, वह पीछे की तरफ झुका रहता है। अगर एक क्लबघर में पचास जोड़े बात कर रहे हैं, तो बराबर बताया जा सकता है कि इनमें से कितने जोड़े एक-दूसरे के प्रेम में गिर जाएंगे-सिर्फ इनकी बॉडी लैंग्वेज को देख कर। और कितने जोड़े सिर्फ बचने की कोशिश कर रहे हैं, एक-दूसरे से भागने की कोशिश कर रहे हैं। अगर स्त्री आपको प्रेम करती है, तो आपके पास और ढंग से बैठेगी; अगर प्रेम नहीं करती है, तो और ढंग से बैठेगी।
अगर आप किसी को प्रेम करते हैं, तो उसके पास जब आप बैठते हैं तो आप रिलैक्स्ड बैठते हैं। उससे कोई खतरा नहीं है। अगर आप उससे प्रेम नहीं करते, तो आप सजग बैठते हैं; उससे खतरा है। स्ट्रेंजर, अजनबी आदमी है। अजनबी आदमी के पास आप और ढंग से बैठते हैं। अगर मेरी बात आपको ठीक लग रही है, तो आप और ढंग से बैठते हैं। अगर ठीक नहीं लग रही है, आपकी बॉडी लैंग्वेज फौरन बदल जाती है। अगर आपको मेरी बात में जिज्ञासा है, तो आपकी रीढ़ आगे झुक आती है। अगर आपको जिज्ञासा नहीं है, आप
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