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तो अच्छा; अन्यथा ये केकड़े निकल भागेंगे। नसरुद्दीन ने कहा, ढांकने की कोई जरूरत न पड़ेगी। दीज क्रैब्स आर बॉर्न पोलिटीशियंस। ये जो केंकड़े हैं, जन्मजात राजनीतिज्ञ हैं। एक चढ़ता है, तो दूसरे उसे खींच कर नीचे गिरा लेते हैं; ये भाग नहीं सकते। चढ़ जाते हैं, भाग नहीं पाते। क्योंकि वे तीन इनके पीछे पड़े हैं पूरे समय। जब उन तीन में से कोई चढ़ता है, तो बाकी तीन हमेशा खींचने को पीछे हैं। मुल्ला ने कहा, पहले मैं भी टोकरी को ढांकता था। लेकिन फिर मैंने पाया, बेकार है। ये तो जन्मजात राजनीतिज्ञ हैं; इन्हें ढांकने की कोई भी जरूरत नहीं है।
असल में, जब भी आप चढ़ने लगते हैं ऊपर, तब आप न मालूम कितने लोगों को आपको पीछे खींच लेने के लिए उत्सुक कर देते हैं। आपके चढ़ने में ही वह कीमिया छिपा है। असल में, चढ़ने का मजा ही तब है, जब कोई आपको खींचने को उत्सुक हो जाए। इसे थोड़ा समझ लें। अगर कोई खींचने को उत्सुक न हो, तो आपको चढ़ने में कोई मजा न आए। या आए? आप एक सिंहासन पर बैठ जाएं और कोई आपको नीचे उतारने को उत्सुक न हो, तो सिंहासन बेकार हो जाए।
सिंहासन का मूल्य यही है कि जब उस पर कोई चढ़ेगा, तो लाखों लोग उतारने को, धकाने को, उसकी जगह बैठने को आतुर हो जाएंगे। नहीं तो उसे कौन सिंहासन कहेगा? जिस पर बैठे हुए आदमी को कोई उतारने को उत्सुक नहीं है। आप बैठते ही इसलिए हैं कि वह जगह ऐसी है, जहां न मालूम कितने लोग बैठना चाहते हैं। आपके बैठने में जो रस है, वही रस दूसरों को आपको नीचे उतार लेने का रस है। वह साथ-साथ, संयुक्त है।
और लाओत्से कहता है, तुम हमें नीचे न उतार पाओगे, क्योंकि हम वहां बैठे हैं, जिसके नीचे और कोई जगह ही नहीं होती। हमारा सिंहासन सुरक्षित है।
यह लाओत्से उलटी बात को जानता है। और उलटी बात को जान लेना इस जगत में परम ज्ञान का सूत्र है। अगर हम प्रथम होना चाहते हैं, तो हम प्रथम ही होना चाहते हैं। यह उलटी बात का हमें कोई पता नहीं कि अंतिम ही प्रथम हो सकता है। और अगर हम भरना चाहते हैं, तो हम भरना ही चाहते हैं। हमें उलटी बात का कोई भी पता नहीं कि जो शून्य है, खाली है, वही केवल भरा जाता है। अगर हम सम्मान पाना चाहते हैं, तो हम सीधे ही सम्मान पाने चल पड़ते हैं। हमें पता ही नहीं है कि यह अपमान को पाने का इंतजाम है। लेकिन विपरीत को देख लेना तो बड़ी कुशलता की बात है, विपरीत हमें दिखाई नहीं पड़ता।
मुल्ला नसरुद्दीन से मिलने कोई आया है उसके घर। जैसे ही भीतर आया, नसरुद्दीन ने उससे कहा, बैठे! कुर्सी ले लें! लेकिन वह आदमी नाराज हो गया, क्योंकि वह कोई साधारण आदमी न था। वह बहुत बड़ा धनपति था। और ऐसे साधारण भाव से कहा जाना कि बैठे, कुर्सी ले लें, उसे पीड़ादायी हुआ। उसने कहा, नसरुद्दीन, तुम जानते हो, मैं कौन हूं? हम सभी बताने को उत्सुक हैं कि मैं कौन हूं! नसरुद्दीन ने कहा, बड़ी कृपा होगी, बताएं। उस आदमी ने कहा कि तुम्हें पता है कि इस नगर में मुझसे बड़ा धनशाली कोई भी । नहीं? नसरुद्दीन ने कहा, क्षमा करें, मुझे पता नहीं था; देन यू कैन टेक टू चेयर्स। तब आप दो कुर्सियों पर बैठ जाएं। और मैं क्या कर सकता हूं!
दो कुर्सियों पर तो बैठा भी नहीं जा सकता, चाहे आप कितने ही बड़े आदमी हों। लेकिन दो कुर्सी पर बैठने का मन होता है। तब एक तरकीब है। कुर्सी के ऊपर कुर्सी रख कर बैठा जा सकता है।
उस आदमी ने कहा, तुम पागल तो नहीं हो नसरुद्दीन! दो कुर्सी पर मैं कैसे बैलूंगा? नसरुद्दीन ने कहा, मैं तरकीब भी बताता हूं। आप एक कुर्सी के ऊपर दूसरी कुर्सी रख लें, उस पर चढ़ कर बैठ जाएं।
सिंहासन कई कुर्सियां हैं एक के ऊपर एक। बहुत कुर्सियों पर बैठना हो, इस हॉल में जितनी कुर्सियां हैं, सब पर बैठना हो, तो बहुत मुश्किल है। फिर एक के ऊपर एक कुर्सी रखी जा सकती हैं-वर्टिकल। सिंहासन का मतलब है, हजारों कुर्सियां जिसके नीचे हैं, लाखों कुर्सियां जिसके नीचे हैं।
लेकिन जितने लोग उन कुर्सियों पर दब जाएंगे, वे आपकी ऊपर की कुर्सी को फेंकने की कोशिश में लगे ही रहेंगे। खाली कुर्सियों पर बैठने में कोई भी मजा नहीं है। आदमी, असल में, आदमी के ऊपर बैठना चाहता है। खाली कुर्सी पर बैठने से क्या फायदा होगा! आदमी आदमी के ऊपर बैठना चाहता है।
लेकिन जितनी आपकी कुर्सी ऊपर होती जाती है, उतने आप खतरे में पड़ते जाते हैं। क्योंकि उतने ही लोग आपके नीचे दबते चले जाते हैं। वे आपको फेंक कर रहेंगे। इसलिए दुनिया में पहली कुर्सी सुरक्षित नहीं है, सबसे ज्यादा असुरक्षित जगह है।
लाओत्से कहता है, लेकिन हमारा सबका मन चीजों को सीधे पाने का होता है, क्योंकि हमें विपरीत का कोई भी पता नहीं है। अगर विपरीत का पता हो, तो हम उस महान कला को जान जाते हैं, जिसका नाम धर्म है।
धर्म कहता है, अगर तुम परम जीवन पाना चाहते हो, तो तुम परम मृत्यु के लिए राजी हो जाओ। डाई दिस वेरी मोमेंट, इसी क्षण मर जाओ, और परम जीवन तुम्हारा है! और धर्म कहता है, अगर तुम्हें ऐसा धन पाना है जिसे चोर न चुरा सकें, तो तुम बिलकुल निर्धन
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