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होने को ही अपना धन मान लो और अगर तुम्हें ऐसी प्रतिष्ठा चाहिए जिसके विपरीत कोई उपाय नहीं है, तो तुम अपने ही हाथ से अप्रतिष्ठित हो जाओ।
जापान में एक फकीर हुआ है, लिंची। जब वह मरा, तब वर्षों बाद लोगों को पता चला कि उसने अपने ही बाबत बहुत सी गलत खबरें जाहिर कर रखी थीं। लोगों को उसने राजी कर रखा था कि उसके संबंध में गलत खबरें उड़ाते रहें। लिंची बिलकुल अप्रतिष्ठित मरा। मरते वक्त जो मित्र उसके पास थे, उनसे उसने कहा कि तुम्हारी कृपा कि तुमने मेरे संबंध में बहुत सी खबरें उड़ा दीं; मैं भीड़-भाड़ के पागलपन से बच गया। मैं निश्चिंत मर रहा हूं। मैं इतना अप्रतिष्ठित हो गया कि मेरी प्रतिष्ठा को हिलाने के लिए भी कोई नहीं
आता।
अप्रतिष्ठित को कौन हिलाने आता है? लेकिन प्रतिष्ठित को लोग हिलाने पहुंच जाते हैं। उसकी प्रतिष्ठा ही आकर्षण बन जाती है कि • हिलाने को आओ।
लाओत्से कहता है, इस अस्तित्व में विरोधी श्वास चल रही है, जैसे धौंकनी चलती हो लुहार की। इसमें वह एक बात पर जोर देता है कि जब धौंकनी खाली हो इसे रिक्त कर दो, फिर भी इसकी शक्ति अखंडित रहती है- जब धौंकनी बिलकुल रिक्त होती है, तब यह मत समझना कि उसकी शक्ति टूट गई; उसकी शक्ति अखंडित होती है, पूर्ण होती है। शून्य के पास पूर्ण की शक्ति होती है।
शून्य के पास पूर्ण की शक्ति?
फिजिक्स कहती है कि हम जब एटम को तोड़ते हैं, तब कुछ भी नहीं बचता, शून्य रह जाता है। लेकिन इस जगत में शक्ति का सब से बड़ा स्रोत अणु के विस्फोट से होता है। हिमालय उतना बड़ा शक्तिशाली नहीं है, जितना एक छोटा सा इतना छोटा कि आंख से दिखाई न पड़े ! अगर हम एक लाख अणुओं को एक के ऊपर एक रखें, तो आदमी के बाल की मोटाई के बराबर होते हैं। एक लाख अणुओं को एक के ऊपर एक राशि लगा दें, तब एक बाल की मोटाई होती है। बाल का लाखवां हिस्सा अगर हम कर सकें, बारीक, तो अणु होगा। बाल की खाल निकालने की बात हमने सुनी है; लेकिन इसको तो बाल की खाल की खाल की ऐसा कई बार कहना पड़े, तब खाल आएगी।
मुझे एक घटना याद आती है। नसरुद्दीन का एक मित्र गांव से आया है, देहात से और एक बतख भेंट कर गया है। बतख आई घर में, तो नसरुद्दीन ने उसका शोरबा बनाया, मित्र को खिलाया। फिर पंद्रह दिन बाद एक आदमी आया, नसरुद्दीन ने उसे बिठाया और उसने कहा कि मैं उस मित्र का मित्र हूं जो बतख लाया था। नसरुद्दीन ने उसे भी शोरबा पिलाया।
मगर मेहमान आते ही चले गए। फिर मित्र का मित्र का मित्र आया, फिर मित्र का मित्र का मित्र का मित्र आया; ऐसी कतार बढ़ती चली गई। छह महीने में नसरुद्दीन घबड़ा गया। और जो भी आया, उसने कहा कि मैं उस आदमी के मित्र का मित्र का मित्र का मित्र का मित्र हूं जो बतख लाया था। नसरुद्दीन के भी सामर्थ्य की सीमा आ गई। वह गरम पानी भीतर से लाया और उसने कहा, शोरबा पीएं। उस आदमी ने कहा कि यह शोरबा है? गरम पानी है!
नसरुद्दीन ने कहा कि वह जो बतख लाया था, उस बतख के शोरबे के शोरबे का शोरबा का शोरबा है। छह महीने हो गए बतख आए हुए; अब तुम अगर बतख का शोरबा चाहते हो, तो बड़ी गलती बात है। जितनी यात्रा मित्र से तुम्हारी हो गई, उतनी ही बतख से इस शोरबे की हो गई है। अगली बार आओगे, ठंडा पानी मिलेगा, गरम भी नहीं रह जाएगा; क्योंकि यात्रा लंबी होती जा रही है।
अगर हम अणु को सोचें, तो वह बाल की खाल भी नहीं है। बहुत लंबी यात्रा है। एक लाख बार हम बाल को छीलते चले जाएं, तब जो बचेगा! बचेगा कुछ? अब तक अणु को देखा नहीं जा सका है। नहीं, खाली आंख से ही नहीं, यंत्र की आंख से भी अणु को देखा नहीं जा सका है। और वैज्ञानिक कहते हैं कि अणु के संबंध में हम जो कुछ कहते हैं, वह ठीक वैसा ही है, जैसा पुराने धार्मिक लोग ईश्वर के संबंध में कहते थे। हमने देखा नहीं है, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं, जो कि अणु को मानने से हल हो जाती हैं। इसलिए हम मानते हैं।
ऐसा ही धार्मिक लोग कहते थे। ईश्वर को देखा नहीं है, लेकिन उसके बिना बहुत सी बातों के सवाल मिलने मुश्किल हो जाते हैं। उसको मान लेते हैं, तो सवाल मिल जाते हैं। एजम्शन है। या ऐसा कह सकते हैं कि ईश्वर तो दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन उसके परिणाम दिखाई पड़ते हैं।
ऐसा ही वैज्ञानिक कहते हैं कि अणु तो हमने नहीं देखा, लेकिन विस्फोट दिखाई पड़ता है। हिरोशिमा राख हो जाता है; एक लाख आदमी राख हो जाते हैं। यह परिणाम है। इस परिणाम को झुठलाया नहीं जा सकता, यह सत्य है। यह दिखाई पड़ता है। लेकिन जिसके भीतर से यह परिणाम होता है, वह बिलकुल दिखाई नहीं पड़ता। हम सिर्फ कल्पना करते हैं कि कोई चीज टूट गई है, जिसके परिणाम में इतनी ऊर्जा का जन्म हुआ है। उस कल्पित चीज का नाम अणु है। लेकिन अणु जैसी कल्पित और छोटी चीज, अति सूक्ष्म, अति विराट की जन्मदात्री है !
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