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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free कहा कि पहले तो लोगों को, जिनको आप समझा रहे हैं, ठीक से भाषा समझाइए, व्याकरण समझाइए। प्रारंभ से ही प्रारंभ करिए। यह आप क्या कर रहे हैं? आप इतनी ऊंची बातें कर रहे हैं! लेकिन न भाषा का ठिकाना, न व्याकरण का। तो उस सूफी फकीर ने कहा कि तू रुक जा यहां। उस फकीर के चमत्कारों की बड़ी कथाएं थीं। वह पंडित रुक गया। सूफी ने उससे कहा कि बाहर झोपड़े के जो कुत्ते और बिल्लियां सांझ को इकट्ठे होते हैं, तू उनको व्याकरण सिखाना शुरू कर दे। उसे लगा तो कि यह पागलपन की बात है; लेकिन यह फकीर कह रहा है। और यह चमत्कारी है, शायद कोई राज होगा। शायद ये कुत्ते और बिल्लियां साधारण न हों, कुछ खूबी के हों। या फिर इसका कोई मतलब होगा। शायद इन्हें सिखाते-सिखाते मुझे कुछ सीखने को मिल जाए। बात तो कुछ होगी ही, रहस्य इसमें कुछ होगा ही। उसने बेचारे ने सिखाना शुरू कर दिया। सरल से सरल पाठ सिखाता था, लेकिन कुत्ते-बिल्ली थे कि नहीं सीखते थे। छह महीने बीत गए, वह भी थक गया। फकीर कई बार पूछा कि कोई प्रगति? कोई प्रगति तो नहीं हो रही है। फकीर ने कहा, बिलकुल प्रारंभ से ही प्रारंभ किया है न? बिलकुल प्रारंभ से ही प्रारंभ किया है! इससे और आगे प्रारंभ भी नहीं होता कुछ। कुछ भी सिखा पाए? उसने कहा कि एक कदम ही नहीं उठ रहा आगे। उस फकीर ने कहा, क्या, कठिनाई क्या है? उस पंडित ने कहा, वे भाषा ही नहीं जानते हैं, बोलना ही नहीं जानते। बोलना जानते हों, तो मैं व्याकरण भी सिखा दें। वह फकीर कहने लगा कि मैं जिस दुनिया की बातें कर रहा हूं, तुझे उस दुनिया की न भाषा का पता है और न व्याकरण का पता है। तुझे उसका पता हो, तो मैं भी शुरू कर सकता हूं। तेरे साथ भी शुरू कर सकता हूं। पुराने युगों में यह नियमित व्यवस्था थी कि गुरु अगर देखता कि कोई तर्क करने आ गया, तो उसे उस जगह भेज देता, जहां तर्क ही चलता था। ताकि वह तर्क से थक जाए, परेशान हो जाए। और इतना ऊब जाए कि एक दिन आकर वह कहे कि तर्क बहुत कर लिया, कुछ मिला नहीं; अब कोई ऐसी बात कहें, जिससे कुछ हो जाए। तब लाओत्से जैसे आदमी बोलते हैं। एक सूफी फकीर के बाबत...। दो फकीर सामने रहते हैं। एक फकीर का शिष्य है, वह अपने गुरु को आकर कहता है कि सामने वाला जो सूफी है, यह आपके बाबत बहुत गलत-सलत बातें प्रचारित करता है। यह कुछ गंदी-गंदी बातें भी आपके संबंध में गढ़ता है, अफवाहें उड़ाता है। आप इसे ठीक क्यों नहीं कर देते? कुछ बोलते क्यों नहीं? तो उस फकीर ने कहा, तू ऐसा कर, तू उसी से जाकर पूछ कि राज क्या है! पर ऐसे जल्दी मत पूछना, क्योंकि कीमती बातें अजनबियों को नहीं बताई जाती हैं। और राहगीर चलते आकर कुछ पूछ लें, तो उनको उत्तर जो दिए जाते हैं, वे रास्ते की ही कीमत के होते हैं। तो उसने कहा, मैं क्या करूं? कहा कि साल भर उसकी सेवा कर; निकट पहुंच। और जब आंतरिकता बन जाए, तब किसी दिन क्षण का खयाल रख कर, समय का बोध रख कर, अवसर खोज कर उससे पूछना। तो साल भर उसने सेवा की। बहुत निकटस्थ हो गया, आत्मीय हो गया। एक दिन पैर दाब रहा था रात, तब उसने अपने गुरु को पूछा कि आप गालियां देते हैं, सामने वाले गुरु के खिलाफ सब कुछ कहते हैं, इसका राज क्या है? तो उसने कहा, तू पूछता है, किसी को बताना मत। मैं उसका शिष्य हूं। और राज बताने की मनाही है, तू जाकर उसी से पूछ ले। पर ये बातें अजनबियों को नहीं बताई जाती हैं, राह चलतों को नहीं बताई जाती हैं। जरा निकट हो जाना। उसने कहा, अच्छी मुसीबत में पड़े! हम तुम्हें दुश्मन समझ कर साल भर मेहनत किए, तुम शिष्य निकले! उसके ही शिष्य हो! वहीं वापस जाना पड़ेगा। दो साल गुरु की पुनः सेवा की लौट कर। एक क्षण सुबह स्नान कराते वक्त-कोई नहीं था, गुरु को वह स्नान करा रहा था-पूछा कि आज मुझे बता दें, यह राज क्या है? तो उसके गुरु ने कहा कि वह मेरा ही शिष्य है। और उसे वहां इसलिए रख छोड़ा है कि वह मेरे संबंध में गलत बातें उड़ाता रहे। जिनको उन गलत बातों पर भरोसा आ जाए, वे ताकि मेरे पास न आ सकें, वे गलत लोग हैं। उनके साथ मेरा समय नष्ट न हो। मेरा समय कीमती है। मैं उन्हीं पर खर्च करना चाहता है, जो सत्य की तलाश में आए हैं। और जो अफवाहों से लौट सकते हैं, उनकी कोई तलाश नहीं है। वह आदमी अपना है। और उसने इतनी सेवा की है मेरी इन बीस वर्षों में, जिसका हिसाब नहीं है। सैकड़ों फिजूल के लोगों से उसने मुझे बचाया है। यह नियमित व्यवस्था थी। और जब कोई श्रद्धा से भर जाए श्रद्धा से भरने का अर्थ है, जब कोई हृदय को सीधा खोलने को तैयार इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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