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उसने कहा, वह मैं भूल गया। वह जो कल समझाया था, मैं फिर समझने आया हूं।
तो उसने कहा, तू भाग जा, अब तू भीतर मत जा। क्योंकि एक पागल तू है, और दूसरा पागल हमारे पास लाओत्से है। तू अगर जिंदगी भर भी आता रहा, तो वह समझाता रहेगा। पांच दिन से, चार दिन से मैं भी देख रहा हूं कि तू वही का वही सवाल ले आता है और वह वही का वही सवाल समझाने बैठ जाता है।
जब यह बात ही चल रही थी मातसु के साथ, तभी लाओत्से बाहर आ गया। और उसने कहा, आ गया भाई! अंदर आ जा। भूल गया, फिर से सुन ले!
वह इक्कीस दिन रोज आ रहा है। बाईसवें दिन नहीं आया। तो कहानी कहती है कि लाओत्से उसके घर पहुंच गया। कहा, क्या तबीयत खराब है? क्या हुआ? उस आदमी ने कहा, समझ में आ गया। और कुछ? उसने कहा कि कुछ नहीं; मैं दूसरा आदमी हो गया।
लेकिन फर्क आप समझ रहे हैं? अगर हम इक्कीस दफा जाते लाओत्से के घर पर, तो हम समझने न जाते। हम कहते, समझ में तो पहले दिन ही आ गया, जिंदगी नहीं बदली। वह आदमी यह कहता ही नहीं है कि जिंदगी नहीं बदली। क्योंकि वह आदमी यह कहता है कि आप कहते हो, समझ में आ जाएगा तो जिंदगी बदल ही जाएगी, वह बात खतम हो गई। अब समझ में ही आ जाए।
बुद्ध जब भी बोलते थे-तो अभी जब बुद्ध के ग्रंथों को संपादित किया गया है, तो बड़ी हैरानी हुई, क्योंकि बुद्ध एक-एक पंक्ति को तीन बार से कम दोहराते नहीं थे। तीन बार कहेंगे। अब तीन बार छापो, तो नाहक तीन गुनी किताब हो जाती है। और पढ़ने वाले को भी कठिनाई होती है। तो राहुल सांकृत्यायन ने जब पहली दफा हिंदी में विनय पिटक का पूरा संग्रह किया, तो हर पंक्ति के बाद निशान लगाए उन्होंने। और निशान बाहर सूची बना दी, फिर से वही, उसका निशान है; फिर से वही, उसका निशान है; फिर से वही, डिट्टो। पूरी किताब निशान से भरी हुई है। क्या, बात क्या थी? बुद्ध क्यों इतना दोहरा रहे हैं?
अगर समझाना हो, तो तर्क देना पड़ता है। और अगर भीतर तक पहुंचाना हो, तो उस पुराने जमाने में लोग इतने सरल थे कि उसे केवल बार-बार दोहराने से वह मंत्र बन जाता, वह सजेस्टेबल हो जाता, और भीतर प्रवेश कर जाता था। सिर्फ बार-बार दोहराना काफी था। जितनी बार दोहराया जाए, उतना भीतर प्रवेश करने लगता है।
लेकिन बुद्धि तो एक ही दफे में समझ जाती है, इसलिए दुबारा दोहराने की जरूरत नहीं रह जाती। अगर दुबारा दुहराओ, तो वह आदमी कहेगा, आप क्यों हमारा समय जाया कर रहे हैं! समझ गए, अब दूसरी बात करिए।
आज भी जो लोग अनकांशस माइंड के साथ काम करते हैं, वे सिवाय दोहराने के और कुछ नहीं करते। जैसे कि अभी पेरिस में कुछ वर्षों पहले एमाइल कुए नाम का एक बहुत बड़ा मनोवैज्ञानिक था, जिसने लाखों लोगों को ठीक किया। पर वह एक ही बात दोहराता था कि तुम बीमार नहीं हो! अब वह घंटे भर लिटाए है उस आदमी को और दोहरा रहा है कि तुम बीमार नहीं हो! तुम बीमार नहीं हो!
वह आदमी कह सकता है कि समझ गए एक दफा, अब इसको बार-बार कहने का क्या प्रयोजन है? पर एमाइल कए कहता है कि तुमसे मुझे मतलब नहीं है। तुम तो समझ गए, तुम तो पहले ही समझ रहे हो। तुम्हारे जो भीतर, गहरे और गहरे में, वहां तक! वह दोहराए चला जाएगा। थोड़ी देर में यह ऊपर की जो बुद्धि है-जो यह ऊपर की बुद्धि है, यह नए में रस लेती है, पुराने में रस नहीं लेती-यह थोड़ी देर में कहेगी कि ठीक है, सुन लिया, सुन लिया, सुन लिया। यह सो जाएगी। हिप्नोसिस का कुल इतना ही मतलब है; यह सो जाएगी। यह ऊपर की जो बुद्धि है, ऊब जाएगी। यह परेशान हो जाएगी कि क्या कहे चले जा रहे हो कि तुम बीमार नहीं हो! यह थोड़ी देर में सो जाएगी।
लेकिन कुए कहता चला जाएगा। और जब यह सो जाएगी, तो इसके पीछे की जो पर्त है, वह सुनने लगेगी। थोड़ी देर में वह भी ऊब जाएगी, वह भी सो जाएगी। तो उसके पीछे की जो पर्त है, वह सुनने लगेगी। और यह कुए दोहराए चला जाएगा। यह तब तक दोहराए चला जाएगा, जब तक आपके भीतरी केंद्र तक यह खबर न पहुंचा दे कि तुम बीमार नहीं हो। और अगर यह भीतरी केंद्र तक खबर पहुंच जाए, वह केंद्र अगर मान ले कि मैं बीमार नहीं है, तो बीमारी समाप्त हो गई।
अब इसके लिए मंत्रों का, ध्यान का, तंत्र का, न मालूम कितना-कितना आयोजन करना पड़ा! बाद में करना पड़ा, जब कि लोग ज्यादा सोफिस्टीकेटेड हो गए। लाओत्से के वक्त में कोई जरूरत न थी। लाओत्से के वक्त तक कोई जरूरत न थी। लोग सरल थे। और उनके अंतरस्थ मन का द्वार इतना खुला था और बुद्धि का कोई पहरेदार न था कि कोई भी बात लाओत्से जैसा आदमी कहता, तो वह भीतर प्रवेश कर जाती। इस सब का इंतजाम था। लाओत्से के पास जाता ही कोई तब था, जब वह श्रद्धा करने को राजी हो। लाओत्से के पास अगर कोई जाता और तर्क करने को उत्सुक होता, तो लाओत्से कहता कि अभी तू फलां गुरु के पास जा, थोड़े दिन वहां रह!
अभी मैं एक सूफी फकीर का जीवन पढ़ता था। अजनबी, एक सूफी फकीर था। गांव का एक बहुत बड़ा पंडित, एक बड़ा व्याकरण का ज्ञाता अजनबी को सुनने आया, तो उसने देखा कि वह व्याकरण वगैरह जानता नहीं, ठीक से भाषा उसे आती नहीं। तो उस पंडित ने
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