SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free हो पाता; थोड़ी चेतना भीतर जगती रहती है, वह उपद्रव करती रहती है। फिर सारा जीवन उस चेतना को दबाने और उस पदार्थ को लादने की चेष्टा बनती है। और जिस व्यक्ति को भी मैंने दबा कर वस्तु बना दिया, या किसी ने दबा कर मुझे वस्तु बना दिया, तो एक दूसरी दुर्घटना घटती है, कि अगर सच में ही कोई बिलकुल वस्तु बन जाए, तो उससे प्रेम करने का अर्थ ही खो जाता है। कुर्सी से प्रेम करने का कोई अर्थ तो नहीं है। आनंद तो यही था कि वहां चैतन्य था। अब यह मनुष्य का डाइलेमा है, यह मनुष्य का द्वंद्व है, कि वह चाहता है व्यक्ति से ऐसा प्रेम, जैसा वस्तुओं से ही मिल सकता है। और वस्तुओं से प्रेम नहीं चाहता, क्योंकि वस्तुओं के प्रेम का क्या मतलब है? एक ऐसी ही असंभव संभावना हमारे मन में दौड़ती रहती है कि व्यक्ति से ऐसा प्रेम मिले, जैसा वस्तु से मिलता है। यह असंभव है। अगर वह व्यक्ति व्यक्ति रहे, तो प्रेम असंभव हो जाएगा; और अगर वह व्यक्ति वस्तु बन जाए, तो हमारा रस खो जाएगा। दोनों ही स्थितियों में सिवा फ्रस्ट्रेशन और विषाद के कुछ हाथ न लगेगा। और हम सब एक-दूसरे को वस्तु बनाने में लगे रहते हैं। हम जिसको परिवार कहते हैं, समाज कहते हैं, वह व्यक्तियों का समूह कम, वस्तुओं का संग्रह ज्यादा है। यह जो हमारी स्थिति है, इसके पीछे अगर हम खोजने जाएं, तो लाओत्से जो कहता है, वही घटना मिलेगी। असल में, जहां है नाम, वहां व्यक्ति विलीन हो जाएगा, चेतना खो जाएगी और वस्तु रह जाएगी। अगर मैंने किसी से इतना भी कहा कि मैं तुम्हारा प्रेमी हूं, तो मैं वस्तु बन गया। मैंने नाम दे दिया एक जीवंत घटना को, जो अभी बढ़ती और बड़ी होती, फैलती और नई होती। और पता नहीं, कैसी होती! कल क्या होता, नहीं कहा जा सकता था। मैंने दिया नाम, अब मैंने सीमा बांधी। अब मैं कल रोकूगा, उससे अन्यथा न होने दूंगा जो मैंने नाम दिया है। कल सुबह जब मेरे ऊपर क्रोध आएगा, तो मैं कहूंगा, मैं प्रेमी हूं, मुझे क्रोध नहीं करना चाहिए। तो मैं क्रोध को दबाऊंगा। और जब क्रोध आया हो और क्रोध दबाया गया हो, तो जो प्रेम किया जाएगा, वह झूठा और थोथा हो जाएगा। और जो प्रेमी क्रोध करने में समर्थ नहीं है, वह प्रेम करने में असमर्थ हो जाएगा। क्योंकि जिसको मैं इतना अपना नहीं मान सकता कि उस पर क्रोध कर सकू, उसको इतना भी कभी अपना न मान पाऊंगा कि उसे प्रेम कर सकू। लेकिन मैंने कहा, मैं प्रेमी हूं! तो कल जो सुबह क्रोध आएगा, उसका क्या होगा अब? उस वक्त मुझे धोखा देना पड़ेगा। या तो मैं क्रोध को पी जाऊं, दबा जाऊं, छिपा जाऊं, और ऊपर प्रेम को दिखलाए चला जाऊं। वह प्रेम झूठा होगा, क्रोध असली होगा। असली भीतर दबेगा, नकली ऊपर इकट्ठा होता चला जाएगा। तब फिर मैं एक झूठी वस्तु हो जाऊंगा, एक व्यक्ति नहीं। और यह जो भीतर दबा हुआ क्रोध है, यह बदला लेगा। यह रोज-रोज धक्के देगा, यह रोज-रोज टूट कर बाहर आना चाहेगा। और तब स्वभावतः, जिसे प्रेम किया है, उससे ही घृणा निर्मित होगी। और जिसे चाहा है, उससे ही बचने की चेष्टा चलने लगेगी। पर नाम देकर भूल हुई है। लाओत्से कहता है, नाम देकर भूल हो गई है। जब मैंने किसी से कहा कि मैं तुम्हारा प्रेमी हूं, तब मैंने ठीक से समझ लिया था कि प्रेमी होने का क्या अर्थ होता है? मैंने एक क्षण की अनुभूति को स्थिर नाम दे दिया। अगर मैंने भीतर झांक कर देखा होता, तो शायद मैं ऐसा नाम न देता। शायद चुप रह जाना उचित होता। शायद बोल कर भूल हो गई। अमरीका का एक प्रेसिडेंट, कुलीज, कम बोलता था, अत्यधिक कम। दुनिया में कोई राजनीतिज्ञ इतना कम बोलने वाला नहीं हुआ है। कोई मरने के वर्ष भर पहले किसी मित्र ने उससे पूछा कि कुलीज, इतना कम बोलते हो, इतना कम बोले हो जिंदगी भर, कारण क्या है? तो कुलीज ने कहा, जो नहीं बोला है, उसके लिए दंड कभी नहीं मिलता; जो नहीं बोला है, उसके लिए कभी पछताना नहीं पड़ता है। जो बोला है, उसके लिए बहुत पछताना पड़ा है। यह तो मुझे ज्यादा अनुभव न था, कुलीज ने कहा, अगर दुबारा मुझे मौका मिले तो मैं बिलकुल चुप रह जाने वाला हूं। यह तो अनुभव न था ज्यादा, अनुभव से धीरे-धीरे सीखा। लेकिन अब मैं कह सकता हूं कि जो बोला, उसके लिए दंड पाया सदा; जो नहीं बोला, उसके लिए कोई पीड़ा मुझे नहीं झेलनी पड़ी। शायद आप सोचते होंगे, किसी को गाली दे दी होगी, उससे दंड पाया। नहीं, गाली से तो दंड मिल ही जाता है; टू ऑबियस, साफ ही है। नहीं, जब किसी से कहा कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूं, उसके भी दंड भोगने पड़ते हैं। असल में, शब्द दिया, नाम दिया कि दंड होगा। क्योंकि हमने वस्तु बनाई, जहां कि वस्तु नहीं थी, जहां कि तरल व्यक्तित्व था। जहां कि तरल प्रवाह था, वहां हमने ठोक कर नदी की बीच धार में दीवार खड़ी करने की कोशिश की। अब तकलीफ होगी, अब पीड़ा होगी। जीवन प्रवाह की तरह बहना चाहेगा; और हमारे ठोके गए नाम के तख्ते अड़चन डालेंगे। और जीवन बड़ा है; कोई तख्ता नाम का ठोका हुआ टिकेगा नहीं, बहा कर ले जाएगा। लेकिन तब पीछे पीड़ा का दंश और पश्चात्ताप और विषाद छुट जाता है। लाओत्से कहता है, नाम ही मत देना। नाम दिया कि वस्तुएं पैदा हो जाती हैं। एक क्षण को सोचें कि अगर अचानक ऐसी घटना घट जाए कि हम यहां इतने लोग बैठे हैं और हम सब भाषा भूल जाएं-एक घंटे भर के लिए! तो जमीन-आसमान में कोई फर्क होगा? तो अंधेरे और प्रकाश में कोई फर्क होगा? तो आप में और पड़ोसी में कोई फर्क होगा? तो हिंदू और मुसलमान भिन्न होंगे? तो स्त्री और पुरुष में फासला होगा? अगर एक घंटे को हम सारी भाषा भूल जाएं, तो सारे फासले भी तत्काल, घंटे भर के लिए, गिर जाएंगे। एक अनूठा ही जगत होगा-विस्तार से भरा हुआ। जहां कोई सीमा न होगी। जहां चीजें इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy