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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free वह किसी को कहना चाहे लौट कर, तो कहने का उपाय नहीं, क्योंकि वह बची नहीं। जब तक जानना है, तब तक हम ज्यादा से ज्यादा जो श्रेष्ठतम जान सकते हैं, वह प्रतिबिंब होगा। और निश्चित ही, प्रतिबिंब के साथ परहेप्स, शायद लगा रहना चाहिए। यहां महावीर से थोड़ी सी कल्पना लाओत्से को समझने में आसान होगी। महावीर ने परहेप्स का जितना उपयोग किया है इस पृथ्वी पर, दूसरे आदमी ने नहीं किया है। महावीर कुछ भी बोलते थे, तो उसमें स्यात लगा कर ही बोलते थे। वे कहते थे, शायद! वे कभी नहीं कहते थे, ऐसा ही। इसलिए महावीर के चिंतन का नाम है: स्यातवाद, परहेप्स-इज्म। महावीर से कुछ भी पूछिएगा, तो वे कहेंगे परहेप्स, शायद। जो बिलकुल सुनिश्चित तथ्य है, महावीर जिसे बहुत निश्चित रूप से जानते हैं, उसको भी वे कहेंगे स्यात। क्यों? अगर महावीर को ठीक-ठीक पता है, अगर बिलकुल सही पता है, तो उन्हें साफ कहना चाहिए, ऐसा ही है। लेकिन महावीर कहते हैं, जब भी कोई ऐसा दावा करता है, ऐसा ही है, तभी असत्य हो जाता है। महावीर कहते हैं, मन इतना ही कर सकता है, ऐसा भी है। ऐसा ही है, ऐसा नहीं; ऐसा भी हो सकता है। जब हम कहते हैं, ऐसा ही है, तो हम और सारे सत्य की संभावनाओं को नष्ट कर देते हैं। दावा हमारा पूर्ण हो जाता है और अंधा हो जाता है। जब हम कहते हैं कि ऐसा भी हो सकता है, तो इसके विपरीत भी होने की हम संभावनाओं को कायम रखते हैं। और अगर चित्त में बनने वाली सारी स्थितियां प्रतिबिंब हैं...। इसे और एक तरह से समझ लें तो और आसानी पड़ जाएगी; तो फिर स्यात बहुत स्पष्ट हो जाएगा। मैं आपको दिखाई पड़ रहा हूं। आपको कभी खयाल न आया होगा कि आप ने मुझे कभी भी नहीं देखा है, और न देखने का कोई उपाय है। आप सिर्फ मेरे प्रतिबिंब को देखते हैं। आपकी आंख पर बनती है मेरी तस्वीर, और उस तस्वीर की खबर पहुंचती है आपके मस्तिष्क को। आप जो देखते हैं, वह आपकी आंख पर बनी हुई तस्वीर है; मुझे आप नहीं देखते। मुझे देखने का कोई उपाय नहीं है; क्योंकि बिना आंख के आप मुझे नहीं देख सकते हैं। और आंख का मतलब यह है कि प्रतिबिंब बनाने वाली व्यवस्था। वह बाहर जो है, उसका रिफ्लेक्शन बना देती है, उसका प्रतिबिंब बना देती है। और पीछे जो मन है, उस प्रतिबिंब को देखता है। जब आप मुझे सुनते हैं, तो जो मैं बोल रहा हूं, वह आप नहीं सुनते; उस बोलने की जो भनक आपके कानों में पड़ती है, उस भनक को आप सुनते हैं। आपके और मेरे बीच में आपका कान रिफ्लेक्शन का काम करता है। जब मैं आपका हाथ छूता हूं, तब भी मेरा हाथ आपको छू रहा है, ऐसा आप कभी नहीं जानते। जब मैं आपका हाथ छूता हूं, तो आपकी चमड़ी पर स्पर्श बनता है और उस स्पर्श को आप जानते हैं। आपके और मेरे बीच में एक पर्दा सदा ही खड़ा रहता है। इसलिए इमेनुअल कांट, जर्मनी के एक बहुत अदभुत विचारक ने, इस आधार पर यह कहा कि वस्तु जैसी स्वयं में है, थिंग इन इटसेल्फ, वह अननोएबल है, वह जानी नहीं जा सकती। कोई वस्तु जैसी अपने में है, नहीं जानी जा सकती। हम सिर्फ उसके प्रतिबिंब ही जानते हैं। और अगर हम प्रतिबिंब ही जानते हैं, तो ध्यान रहे, जो हम जानते हैं, उसमें हमारी प्रतिबिंब बनाने की क्षमता सम्मिलित हो जाती है। इसलिए पीलिया का एक मरीज वहां पीला रंग देख सकता है, जहां पीला रंग नहीं है। कलर ब्लाइंड आदमी होते हैं, उन्हें कोई रंग नहीं दिखाई पड़ता तो नहीं दिखाई पड़ता। थोड़े नहीं, काफी लोग होते हैं। दस में करीब-करीब एक आदमी किसी न किसी कलर के मामले में थोड़ा ब्लाइंड होता है-दस में एक! हम यहां अगर सौ आदमी हैं, तो इनमें कम से कम दस आदमी, ठीक से जांच-पड़ताल की जाए, तो किसी न किसी छोटे-मोटे रंग के प्रति अंधे होंगे। बर्नार्ड शॉ साठ साल की उम्र तक उसे पता ही नहीं था कि उसे पीला रंग दिखाई नहीं पड़ता। उसे हरे और पीले में कोई फर्क नहीं मालूम होता था। साठ वर्ष तक पता नहीं चला। पता चले भी कैसे? साठवीं वर्षगांठ पर किसी ने उसे एक वस्त्र उपहार में भेजे हैं; वे हरे रंग के हैं। तो टाई लेने बाजार गया। टाई उसने नहीं भेजी है। तो वह पीले रंग की टाई खरीद लाया। उसकी जो सेक्रेटरी थी, उसने कहा कि आप यह क्या कर रहे हैं! यह बहुत बेहूदी लगेगी। अगर मेल ही मिलाना है, तो हरे रंग की ही खरीद लें। पर बर्नार्ड शॉ ने कहा कि कौन कहता है यह हरा रंग नहीं है! यह हरा रंग है। तब पहली दफे पता चला कि वह कलर ब्लाइंड है! उसे पीले रंग और हरे रंग में कोई फर्क नहीं दिखाई पड़ता। वे दोनों उसे एक से दिखाई पड़ते हैं। लेकिन साठ साल तक उसे कोई पता नहीं चला। तो जो हमें दिखाई पड़ता है, उसमें हमारे देखने की क्षमता सम्मिलित हो जाती है। अब एक मछली पानी में तैर रही है। और अगर पानी नीले रंग का है, तो जो चांद उसको प्रतिबिंब पानी में बना हुआ दिखाई पड़ेगा, वह नीले रंग का दिखाई पड़ेगा। और कोई उसके पास जानने का उपाय नहीं है कि जिस चांद का यह प्रतिबिंब है, वह नीला नहीं होगा। महावीर कहते हैं कि जो भी हम जानते हैं, हमें निरंतर ही उसमें स्यात लगा कर बोलना चाहिए। उससे इस बात की खबर मिलती है कि हम सत्य के पूर्ण होने का दावा नहीं करते, सिर्फ प्रतिबिंब होने का दावा करते हैं। हम कहते हैं कि ऐसा मुझे दिखाई पड़ता है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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