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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free ताओ उपनिषाद-(भाग-1) प्रवचन-14 प्रतिबिंब उसका, जो कि परमात्मा के भी पहले था-(प्रवचन-चौहदवां) अध्याय 4: सूत्र 3 नहीं जानता मैं कि किसका पुत्र है यह, शायद यह प्रतिबिंब है उसका, जो कि परमात्मा के भी पहले था। शून्य हो जाने पर, घड़े की भांति रिक्त हो जाने पर-चित्त की सारी नोकें झड़ जाएं, सारी ग्रंथियां सुलझ जाएं, व्यक्ति स्वयं को पूरा उघाड़ ले और जान ले-फिर भी, जो आधारभूत है, आत्यंतिक है, अल्टिमेट है, वह अनजाना ही रह जाता है। वह रहस्य में ही छिपा रह जाता है। इस अंतिम सूत्र में लाओत्से उसकी तरफ इशारा करता है और कहता है, “नहीं जानता मैं, किसका पुत्र है यह।' यह जो सब जान लेने पर भी अनजाना ही रह जाता है, यह जो सब उघड़ जाने पर भी अनउघड़ा ही रह जाता है, यह जो सब आवरण हट जाने पर भी आवृत ही रह जाता है, ढंका हुआ ही रह जाता है, ज्ञान भी जिसके रहस्य को नष्ट नहीं कर पाता, यह कौन है? "नहीं जानता मैं, किसका पुत्र है यह।' यह किससे जन्मा? और कहां से आया? कौन से मूल स्रोत से इसका उदगम है? “शायद यह बिंब है उसका, जो कि परमात्मा के भी पहले था।' यह जो शून्य उदघाटित होता है, यह जो रहस्य साक्षात होता है, यह शायद बिंब है उसका, जो कि परमात्मा के भी पहले था। बहुत सी बातें इस सूत्र में समझने जैसी हैं। पहली तो बात लाओत्से कहता है, “नहीं जानता मैं।' कल मैंने कहा, अस्मिता और अहंकार। अहंकार जब तक है, तब तक ज्ञान का उदय नहीं होता; अहंकार जब तक है, तक तक अज्ञान ही होता है। रहस्यवादियों ने अज्ञान को और अहंकार को पर्यायवाची कहा है। टु बी ईगो-सेंटरिक एंड टु बी इग्नोरेंट आर दि सेम। ये दो बातें नहीं हैं। अहंकार-केंद्रित होना और अज्ञानी होना एक ही बात है। अज्ञान और अहंकार एक ही स्थिति के दो नाम हैं। अहंकार जब गिर जाता है, अज्ञान जब गिर जाता है, तब अस्मिता का बोध शुरू होता है। अस्मिता और ज्ञान एक ही बात है। जैसा मैंने कहा, अहंकार और अज्ञान एक ही बात है, ऐसा अस्मिता और ज्ञान एक ही बात है। अहंकार के साथ होता है बाहर अज्ञान, अस्मिता के साथ होता है बाहर ज्ञान। अस्मि का अर्थ होता है, जस्ट टू बी। अस्मिता का अर्थ होगा, जस्ट टु बी नेस! बस होना मात्र! विशेषणरहित, आकाररहित, मात्र होना, शुद्ध अस्तित्व! यह जो अस्मिता रह जाएगी, इसके साथ होगा ज्ञान। यहां जब लाओत्से कहता है, नहीं जानता मैं, तो यह मैं अस्मिता का सूचक है। अहंकार तो मिट गया; अब कोई ऐसा भाव नहीं रहा कि मैं जगत का केंद्र हूं। अब ऐसा कोई भाव नहीं रहा कि जगत मेरे लिए है। अब ऐसा भी कोई भाव नहीं रहा कि मैं बचूं ही। ये सब भाव चले गए; फिर भी मैं हं। इस मैं में सारे के सारे रहस्य खुल गए। लेकिन इस मैं को भी कोई पता नहीं कि यह जो शून्य है, यह कहां से जन्मता है। अज्ञान को तो कोई पता ही नहीं है कि जगत कहां से जन्मता है; ज्ञान को भी कोई पता नहीं है कि जगत कहां से जन्मता है। अज्ञान तो बता ही न सकेगा कि जीवन का रहस्य कहां से उदभूत होता है, कहां है वह गंगोत्री जहां से अस्तित्व की गंगा निकलती है: अज्ञान तो बता ही न सकेगा, ज्ञान भी नहीं बता सकता है। लाओत्से यहां जो कह रहा है, नहीं जानता हूं मैं, वह यह कह रहा है कि सब जान कर भी, स्वयं को सब भांति पहचान कर भी-अब कोई ग्रंथियां न रहीं, अब कोई अंधकार न रहा, प्रकाश पूरा है-फिर भी मैं नहीं जानता कि यह जो शून्य है, यह जो उदघाटित हुआ मेरे आंखों के सामने, यह कौन है? यह शून्य कहां से आता है? इसका क्या यात्रा-पथ है? यह क्यों है? इस ज्ञान से भरी अस्मिता को भी कोई पता नहीं है। लाओत्से का मैं ज्ञानी का मैं है; उसे भी पता नहीं है। अज्ञानी के मैं को तो कुछ भी पता नहीं, ज्ञानी के मैं को भी कुछ पता नहीं है। यह फासला खयाल में ले लेने की जरूरत है। और इसके पार नहीं जाया जा सकता। अस्मिता तक जाया जा सकता है। जहां अस्मिता भी खो जाती है, उसके पार तो आप शून्य के साथ एक हो जाते हैं। फिर तो शून्य को अलग से खड़े होकर जानने का कोई उपाय नहीं रह जाता। सागर के तट पर खड़ा है; वह अज्ञानी है। सागर में कूद पड़ा, सागर में डूब गया; वह ज्ञानी है। लेकिन अभी भी सागर से पृथक है। सागर ही हो गया; वह फिर ज्ञान के भी पार चला गया। लेकिन अज्ञानी नहीं जान पाता, क्योंकि वह तट पर खड़ा है, सागर से दूर है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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