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शून्य आंखें शून्य ही बनी रहती हैं, बंद ओंठ बंद ही बने रहते हैं, वह दुबारा झुक कर सिर चरणों पर बोधिधर्म के रख देता है। वह उसे फिर उठाता है; वह कहता है, मुझे तू बोल!
नहीं बोलता, वह चुप है।
और बोधिधर्म कहता है, तेरे पास मैं हूं; अब मैं जाता हूं। वह वापस लौट आता है। तेरे पास मैं हूँ!
रहस्य का अर्थ है, उसे कभी पाया हुआ नहीं कहा जा सकता, जाना हुआ नहीं कहा जा सकता; न जाना हुआ भी नहीं कहा जा सकता। ज्ञात नहीं, अज्ञात नहीं। इतना बड़ा है सब कि हमारा कुछ भी कहना सार्थक नहीं होता।
इसलिए लाओत्से कहता है, फिर भी, स्टिल, तुम सब हल कर लोगे, तुम सब राज खोल लोगे, तुम सब ग्रंथियां सुलझा लोगे, तुम्हारी सब बीमारियां गिर जाएंगी, फिर भी जगत का रहस्य नहीं खुल जाएगा। रहस्य और सघन हो जाएगा, जैसे अथाह जल तमोवृत्त सा!
अगला सूत्र कल बात करेंगे।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज