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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free यात्रा अनंत रूप से सार्थक है। और यात्रा के हर कदम पर रहस्य और विस्मय है। और यात्रा के हर कदम को मंजिल भी माना जा सकता है और यात्रा की हर मंजिल को नया यात्रा का कदम और पड़ाव भी माना जा सकता है। इसलिए लाओत्से कहता है, यह सब हो जाए, फिर भी यह फिर भी बहुत अर्थपूर्ण है-फिर भी ऐसा नहीं कि मंजिल आ ही जाती है और कोई कह देता है कि बस पहुंच गए। सिर्फ उथले लोग पहुंचते हैं। नहीं पहुंचते, वही पहुंचने की बात करते हुए मालूम पड़ते हैं। यह जीवन इतना गहन है कि कोई कह न पाएगा कि पहुंच गए। उपनिषदों में कथा है कि एक पिता ने अपने पांच बेटों को भेजा सत्य की खोज पर। वे गए। वर्षों बाद वे लौटे। पिता मरणासन्न है। वह पूछता है अपने बेटों से, सत्य मिल गया? ले आए? जान लिया? पहला बेटा जवाब देता है, वेद की ऋचाएं दोहराता है। दूसरा बेटा जवाब देता है, उपनिषद के सूत्र बोलता है। तीसरा बेटा जवाब देता है, वेदांत की गहन बातें कहता है। चौथा बेटा बोलता है, जो भी सारभूत धर्मों ने पाया है, सब कहता है। लेकिन जैसे-जैसे बेटे जवाब देते हैं, वैसे-वैसे बाप उदास होता चला जाता है। चौथे के जवाब देते-देते वह वापस बिस्तर पर लेट जाता है। लेकिन पांचवां चुप ही रह गया। बाप फिर उठ आया है। और उसने पूछा कि तूने जवाब नहीं दिया? शायद सोचा हो कि मैं लेट गया, थक गया। तेरा जवाब और दे दे; क्योंकि मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा में जी रहा हूं। वह बेटा फिर चुप है। बाप कहता है, तू बोल। वह बेटा फिर चुप है। उसने आंख बंद कर ली हैं। वह बाप कहता है, तो मैं फिर निश्चिंतता से मर सकता हूं। कम से कम एक जान कर लौटा है, जो चुप है। बोधिधर्म वापस लौटता है-चीन दस वर्ष काम करके। अपने शिष्यों को इकट्ठा करता है और पूछता है, मुझे बताओ, धर्म का राज क्या है? रहस्य क्या है? संदेश क्या है बुद्ध का? मैंने तुम्हें क्या दिया? वह जांच कर लेना चाहता है जाने के पहले। एक शिष्य उत्तर देता है कि संसार और निर्वाण एक हैं, सब अवैत है। बोधिधर्म उसकी तरफ देखता है और कहता है, तेरे पास मेरी चमड़ी है। वह युवक बहुत हैरान हो जाता है, चमड़ी? अद्वैत की बात, और कहता है चमड़ी! बात जब सिर्फ अद्वैत की होती है, बात ही जब अद्वैत की होती है, तो चमड़ी ही होती है, कुछ और नहीं होता। बात तो उसने बड़ी ऊंची कही थी, पूरे अद्वैत की, कि संसार और ब्रह्म एक, संसार और मोक्ष एक, द्वैत है ही नहीं। दूसरे से पूछता है। वह दूसरा कहता है, कठिन है कहना, अनिर्वचनीय है। बहुत मुश्किल है। बोधिधर्म कहता है, तेरे पास मेरी हड्डियां हैं। पूछता है युवक, सिर्फ हड्डियां? बोधिधर्म कहता है, हां! क्योंकि तू कहता तो है अनिर्वचनीय, लेकिन कहता जरूर है। तू कहता है अनिर्वचनीय, नहीं कहा जा सकता, फिर भी कहता है। हइडियां ही तेरे पास हैं। और तीसरा युवक कहता है, न तो कहा जा सकता अनिर्वचनीय उसे, न कहा जा सकता अद्वैत उसे, शब्द नहीं वहां काम करते, वहां तो मौन ही सार्थक है। बोधिधर्म कहता है, तेरे पास मेरी मज्जा है। मस्तिष्क में खोपड़ी को घेरे हए जो है, वह तेरे पास है। पर और इससे गहरी क्या बात होगी? वह चौथे युवक की तरफ देखता है। वह चौथा युवक उसके पैरों में गिर पड़ता है और सिर उसके पैरों में रख देता है। वह उसे उठाता है। उसकी आंखें शून्य हैं, उसकी आंखों में जैसे कोई प्रतिबिंब नहीं दौड़ता; जैसे आकाश में कभी कोई बादल न चलता हो, ऐसा खाली। वह उसे हिलाता है कि तूने मेरा प्रश्न सुना या नहीं? मैं तुझसे कुछ पूछता हूं, तुझ तक पहुंचा या नहीं? इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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