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नहीं है, रहस्य तो अंधकार में है। प्रकाश एक अर्थ में छिछला है। अंधेरे में बड़ी गहराई है, बड़ी डेप्थ है, एबिसिमल डेप्थ है, ओर-छोर नहीं है। पूरी पृथ्वी प्रकाश से भरी हो, तो भी प्रकाश का दायरा छोटा है; और एक छोटा सा कमरा भी अंधकार से भरा हो, तो अनंत है।
इसको थोड़ा खयाल में ले लें। यह पूरी पृथ्वी प्रकाश से भरी हो, तो भी सीमित है। सीमा बनाता है प्रकाश। यह छोटा सा कमरा अंधकार से भरा हो, तो कमरे की कोई सीमा नहीं है; असीम है। छोटा सा अंधकार भी असीम है; बड़े से बड़ा प्रकाश भी असीम नहीं है।
लाओत्से कहता है, यह सब हो जाएगा, फिर भी यह अथाह जल की तरह तमोवृत्त सा रहता है।
यह जो अस्तित्व है, यह अथाह जल जैसे अंधकार में डूबा हो, असीम, रहस्य से आवृत, कहीं ओर-छोर का कोई पता न चलता हो।
ईसाई फकीर हुए हैं। और सिर्फ दुनिया में ईसाई फकीरों ने ही परमात्मा को डार्कनेस, अंधकार का प्रतीक दिया है, एक खास ईसाइयों के फिरके ने। ईसा से भी पुराना वह फिरका है। ईसा से भी पहले इजिप्त में इसेन फकीरों का एक समूह था, जिसके बीच ईसा ने शिक्षा
ली।
इसेन फकीर कहते हैं, हे परमात्मा, तू परम अंधकार है! दि एब्सोल्यूट डार्कनेस! दुनिया में बहुत लोगों ने परमात्मा के लिए प्रतीक खोजे हैं। और प्रकाश के प्रतीक तो आम हैं। वेद कहते हैं, उपनिषद कहते हैं, कुरान कहती है, परमात्मा प्रकाश है। लेकिन बड़े अदभुत लोग रहे होंगे इसेन फकीर! कहते हैं, परमात्मा, तू परम अंधकार है। और प्रयोजन केवल इतना है कि अंधकार असीम है। प्रकाश की कितनी ही कल्पना करो, सीमा आ जाती है।
और एक मजा है कि प्रकाश को जलाओ, बुझाओ, प्रकाश क्षणभंगुर है। अंधेरा शाश्वत है। न जलाओ, न बुझाओ। आपके करने का कोई प्रयोजन नहीं है। आप आओ, जाओ, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दीया जले, बुझे; सूरज निकले, डूबे; अंधकार अपनी जगह है-अछूता, अस्पर्शित, कंवारा। प्रकाश को गंदा किया जा सकता है; अंधेरे को गंदा नहीं किया जा सकता। उसको छुआ ही नहीं जा सकता।
लाओत्से कहता है, अथाह जल, अंधकार में डूबा हो, रहस्य में डूबा हो!
रहस्य का अर्थ है, जिसे हम जानते भी हों और जानते हों कि नहीं जानते हैं। रहस्य का अर्थ है-खयाल ले लें-रहस्य का इतना ही अर्थ नहीं है कि जिसे हम न जानते हों। जिसे हम न जानते हों, वह अज्ञान है, रहस्य नहीं। जिसे हम जानते हों, वह ज्ञान है। ज्ञान में भी कोई रहस्य नहीं है; अज्ञान में भी कोई रहस्य नहीं है। अज्ञानी कहता है, मैं नहीं जानता। रहस्य जैसा कुछ भी नहीं है, न जानना बिलकुल साफ है। ज्ञानी कहता है, मैं जानता हूं। रहस्य कुछ भी नहीं बचता, जानना बिलकुल साफ है।
रहस्य का अर्थ है, जानता है कि नहीं जानता। जानता भी हं किसी अर्थ में और किसी अर्थ में कह भी नहीं सकता कि जानता है। कोई अर्थ में लगता है मुझे, प्रतीत होता है, कि पहचाना, जाना, निकट आया। और तत्काल लगता है कि जितना निकट आता हूं, उतना दूर हुआ जाता हूं। जितना हाथ रखता हूं, लगता है, हाथ में आ गई बात, उतना ही पाता हूं कि हाथ ही उस बात में चला गया। सागर में कूद पड़ता हूं; लगता है, मिल गया सागर, पा लिया; लेकिन जब गौर करता हूं, तो पाता हूं, सागर के एक क्षुद्र से किनारे पर हूं। अनंत पड़ा है सागर, अनजाना, अछूता; उसे कभी पा न सकूँगा।
अज्ञानी स्पष्ट है, नहीं जानता है। ज्ञानी स्पष्ट है कि जानता है। इसलिए ज्ञानी और अज्ञानी में एक कॉमन एलीमेंट है-स्पष्टता का। रहस्यवादी अलग; न वह ज्ञानी से मेल खाता, न अज्ञानी से, या वह दोनों से एक साथ मेल खाता है। वह कहता है, किसी अर्थ में जानता भी हं और किसी अर्थ में नहीं भी जानता। मेरे ज्ञान ने मेरे अज्ञान को प्रकट किया है। जितना मैंने जाना, उतना मैंने पाया कि जानने को बाकी है।
लाओत्से कहता है, सब हल हो जाएगा, उसी दिन तुम पाओगे कि कुछ भी हल नहीं हुआ। सब तमोवृत्त, गहन अथाह जल है अंधकार में डूबा हुआ!
इस बात से, जो चिंतक तरह के लोग हैं, सोच-विचार वाले लोग हैं, उनको अड़चन होती है। उनको अड़चन होती है, इतना श्रम शून्य होने का, इतना श्रम ग्रंथियां काट डालने का, इतना श्रम सब! और अंत में, अंत में कुछ स्पष्ट बात हाथ न लगे, तो बेकार गई मेहनत। लेकिन उन्हें पता नहीं है कि जब भी स्पष्ट बात हाथ में लगती है, तभी यात्रा बेकार जाती है। क्योंकि जब भी आप निश्चित होकर कुछ पा लेते हैं, तभी वह बेकार हो जाता है। दैट व्हिच इज़ एचीव्ड कंप्लीटली एंड टोटली बिकम्स यूजलेस, मीनिंगलेस।
जब आप पाकर भी पाते हैं कि नहीं पाया जा सका, जब पहुंच कर भी पाते हैं कि मंजिल शेष है, जब डूब कर भी पाते हैं कि अभी ऊपर ही हैं, सतह पर ही हैं, जब तलहटी में भी बैठ कर पाते हैं कि अभी तो यात्रा शुरू हुई, तब किसी ऐसी जगह पहुंचे हैं, जहां से अर्थ कभी भी रिक्त न होगा, जहां से अर्थ कभी खोएगा न, जहां का काव्य कभी समाप्त न होगा, और जहां का रोमांस शाश्वत है।
तो रिलीजन जो है, धर्म जो है, वह शाश्वत रोमांस है, इटरनल रोमांस। हम जितने ही उस प्रेमी के पास पहुंचते हैं, उतने ही हम पाते हैं कि पर्दो पर पर्दे हैं, द्वार पर द्वार हैं। जितने पास जाते हैं, पाते हैं, और द्वार हैं। अंतहीन मालूम होते हैं द्वार। और इसलिए यह
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