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लिया। वर्षों पर वर्ष बीतने लगे, उसकी बस्ती बसने लगी। अकेला था। पत्थरों पर पत्थर जमा कर, लकड़ियां काट कर, वृक्षों को काट कर रास्ते बनाए। करीब-करीब बिलकुल गैर-जरूरी, लेकिन जो-जो उसकी जरूरत की चीजें थीं, सब उसने बनाई - गैर-जरूरी |
उसने वह दूकान बनाई जो उसके गांव में थी, जिससे वह सामान खरीदा करता था। उसने वह होटल बनाई, जिसमें वह भोजन किया करता था। उसने वह स्टेशन बनाया, जहां से वह ट्रेन पकड़ा करता था। हालांकि यहां कोई ट्रेन न थी; और यहां कोई, इस होटल में कोई चलाने वाला न था; और इस दूकान पर कोई दुकानदार न था और न कोई चीजें बिकने को थीं। लेकिन सुबह वह निकलता और दूकानदार को नमस्कार करता, कभी-कभी जाकर होटल में विश्राम करता। वह अकेला ही था। उसने मंदिर बनाया। उसने सारा इंतजाम किया।
कोई बीस वर्ष बाद एक जहाज आकर लगा। और जहाज के लोगों ने उससे उतर कर कहा कि हम तो सोचते थे तुम समाप्त हो गए, लेकिन तुम हो तो चलो। पर उसने कहा, इसके पहले कि मैं चलूं, मैं तुम्हें अपनी बस्ती बता दूं। यह जो बस्ती मैंने इन बीस सालों में बना ली। उसने बताया कि देखो यह दूकान है, जहां से मैं सामान वगैरह खरीदता था । यह होटल है, जहां कभी-कभी थक जाता, तो विश्राम के लिए जाता था। वह जो दूर तुम्हें दिखाई पड़ता है शिखर, वह मेरे चर्च का है, जिसमें मैं जाता था ।
पर उन लोगों ने कहा कि लेकिन चर्च दो दिखाई पड़ते हैं; एक उसके सामने भी है।
उसने कहा, हां, वह वह चर्च है, जिसमें मैं नहीं जाता था। गांव में दो चर्च थे; एक में मैं जाता था और एक में नहीं जाता था। यानी एक मेरा चर्च था और एक दुश्मन का चर्च था। यह मेरा चर्च है, जिसमें मैं जाता हूं; और वह वह चर्च है, जिसमें मैं नहीं जाता हूं।
यह तो कुछ समझ में नहीं आया कि तुमने वह चर्च किसलिए बनाया? जिसमें तुम्हें जाना ही नहीं है, जिस चर्च में तुम जाते ही नहीं हो, वह तुमने किसलिए बनाया?
उसने कहा कि उसके बिना अपने चर्च का कोई मजा ही न था। यानी उसको होना चाहिए। वह उसके कंट्रास्ट में ही तो...। और देखते हो अपने चर्च की शान और उसकी हालत ! देखते हो अपने चर्च की शान ! और उसकी हालत देखते हो, वर्षों से रंग-रोगन भी नहीं हुआ है! और मैंने तो कभी नहीं देखा कि कोई वहां जाता हो। अक्सर लोग इसी में जाते हैं।
वह अकेला ही है। अहंकार अकेला भी होगा, तो अपने पास एक दुनिया निर्मित करेगा। वह उस चर्च को भी बना लेगा, जिसमें नहीं जाता। अहंकार अकेला नहीं हो सकता; उसके लिए दूसरे की जरूरत है। वह अदर ओरिएंटेड है। दूसरे के बिना उसका कोई मतलब नहीं है। अस्मिता अकेली ही है; उसे दूसरे का कोई लेना-देना नहीं है। वह मेरा होना है, माई बीइंग । अहंकार आपके खिलाफ मेरी लड़ाई है। और जब अहंकार मजबूत होता है, तो अस्मिता भीतर दब जाती है। और जब अहंकार में जलन है, क्योंकि वह दूसरे को जलाने की ही उत्सुकता में पैदा
अस्मिता मेरा अस्तित्व है; आपसे कुछ लेना-देना नहीं है। अहंकार विदा हो जाता है, तो अस्मिता प्रकट हो जाती है। होता है। अस्मिता मृदु है।
तो लाओत्से कहता है, जगमगाहट को मृदु हो जाए ऐसा कुछ करो; कि यह तुम्हारे जो मैं की जगमगाहट है, यह तुम्हारे होने का जो तीव्र और कटु और विषाक्त रूप है, यह हलका हो जाए, मृदु हो जाए, शांत हो जाए। आभा रह जाए, प्रकाश मात्र रह जाए; कहीं कोई आग न बचे।
ध्यान रहे, आग और प्रकाश एक ही चीज हैं; लेकिन आग जलाती है, प्रकाश जलाता नहीं। एक ही चीज हैं; आग जलाती है, प्रकाश जलाता नहीं। आग मौत को ला सकती है; प्रकाश जीवन को लाता है। और एक ही चीज हैं। आग में एक जलन है, एक त्वरा है, और प्रकाश में एक मृदुता है। हौले-हौले, पगध्वनि भी नहीं सुनाई पड़ती है प्रकाश की।
“इसकी उद्वेलित तरंगें जलमग्न हो जाएं।'
यह जो विक्षिप्त अहंकार है, यह जो पूर्ण होने की विक्षिप्त आकांक्षा है, इसकी उद्वेलित तरंगें, इसकी विक्षिप्त तरंगें, इसकी पागल हो गई लहरें जलमग्न हो जाएं! झील में सो जाएं!
“और फिर भी यह अथाह जल की तरह तमोवृत्त सा रहता है।'
और जब यह सब हो जाएगा, तब भी सब एक रहस्य है। तब भी सब हल हो जाएगा, यह मत समझना । तब भी सब उत्तर मिल जाएंगे... यह बहुत कीमती है, अंतिम जो पंक्ति है।
“फिर भी यह अथाह जल की तरह तमोवृत्त सा रहता है।'
जैसे अथाह हो जल! जल जितना कम हो, उतना शुभ्र मालूम होता है; जितना ज्यादा हो जाए, उतना नीलवर्ण का हो जाता है। और अथाह हो जाए, तो काला हो जाता है। अगर ठीक से समझें, तो डार्कनेस जो है, वह रहस्य का सिंबल है। ध्यान रहे, प्रकाश में रहस्य
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