________________
Download More Osho Books in Hindi
Download Hindi PDF Books For Free
ग्रंथियां उलझेंगी। एकदम दिखाई नहीं पड़ता ऊपर से सतह पर से खोजने पर कि कैसे ग्रंथियां उलझेंगी! जो आदमी सच बोलने के लिए पक्का किए हुए है, उसमें क्या ग्रंथि उलझेगी?
बहुत ग्रंथियां उलझेंगी। जिस आदमी ने तय किया कि सच बोलूंगा, उलझन शुरू हुई। एक तो उसे प्रतिपल झूठ का स्मरण करना पड़ेगा; झूठ क्या है, इसका प्रतिपल खयाल रखना पड़ेगा। अगर झूठ का उसे खयाल मिट जाए, तो सच को बांध कर रखना मुश्किल हो जाएगा। बच्चे इसीलिए झूठ बोल देते हैं, क्योंकि अभी उन्हें झूठ का खयाल नहीं है। इतने सरल हैं कि अभी उन्हें डिस्टिंकशन नहीं है, क्या सच है और क्या झूठ है।
सुना है मैंने, एक छोटा बच्चा अपने घर लौटा है। और अपनी मां से कह रहा है कि गजब हो गया, रास्ते पर इतना बड़ा कुत्ता देखा, जैसे हाथी हो! उसकी मां ने कहा, बबलू, करोड़ बार तुम से कह चुकी हूं कि अतिशयोक्ति मत किया करो; डोंट इग्जैजरेट। करोड़ बार! मां कहती है, करोड़ बार तुम से कह चुकी हूं कि अतिशयोक्ति मत किया करो। लेकिन तुम सुनते ही नहीं।
अब इसमें जो बच्चा कह रहा है, वह झूठ नहीं है। क्यों? क्योंकि हमें कभी खयाल ही नहीं होता कि बच्चे के प्रपोरशन अलग होते हैं। बच्चे के प्रपोरशन आपके प्रपोरशन नहीं हैं। बच्चे को एक छोटा कुत्ता, जो आपको छोटा लगता है, हाथी की तरह लग सकता है। अभी उसके गणित दूसरे हैं। जो बच्चे को दिखाई पड़ता है, वह आपको दिखाई नहीं पड़ता। जो आपको दिखाई पड़ता है, वह बच्चे को नहीं दिखाई पड़ता।
किसी भी बच्चे से आदमी की तस्वीर बनवाएं, तो पेट छोड़ देगा। दो टांगें लगा देगा, दो हाथ लगा देगा, सिर लगा देगा, बीच का हिस्सा बिलकुल छोड़ देगा। सारी दुनिया में! तो यह एक-आध बच्चे की भूल नहीं हो सकती। मनोवैज्ञानिक पीछे इसमें उत्सुक हुए कि एकआध बच्चा यह भूल करे, लेकिन सारी दुनिया में, चाहे वह चीन में पैदा हो, और चाहे अफ्रीका में पैदा हो, और चाहे अमरीका में पैदा हो, बच्चा क्या गड़बड़ करता है? यह बीच का हिस्सा क्यों छोड़ जाता है? कुछ तो बनाए। बीच का हिस्सा छोड़ ही देता है। दो टांगें लगा देता है, दो हाथ लगा देता है, सिर बना देता है, इसमें भूल-चूक नहीं करता है।
तब अध्ययन किए गए और पता चला कि बच्चे को बीच के हिस्से का बोध ही नहीं है। उसके लिए आदमी का मतलब दो हाथ, दो पैर, सिर; बाकी बीच का हिस्सा उसके बोध में नहीं है, उसकी अवेयरनेस में नहीं है। उसमें उसका कोई ध्यान नहीं गया। उस पर उसका ध्यान ही नहीं है।
तो एक बच्चे को कुत्ता हाथी जैसा दिख सकता है। लेकिन एक मां कह रही है कि एक करोड़ बार तुझसे कह चुकी! अब यह एक करोड़ बार अतिशयोक्ति है स्पष्ट। और यह जो अतिशयोक्ति है, यह है अतिशयोक्ति। वह बच्चा जो कह रहा है, वह नहीं है।
उसकी मां ने उसे बहुत डांटा और उससे कहा, जाओ, भगवान से प्रार्थना करके माफी मांगो कि ऐसा झूठ अब कभी नहीं बोलोगे। वह बच्चा गया, उसने भगवान से प्रार्थना की। वह थोड़ी देर बाद बाहर आया। उसकी मां ने कहा कि माफ कर दिया? उस बच्चे ने कहा, माफ क्या, भगवान ने कहा जब पहली दफे मैंने उस कुत्ते को देखा था, तो मुझे भी हाथी जैसा मालूम पड़ा था; इसमें बबलू, तेरी कोई गलती नहीं है। लुक सेकेंड टाइम, दुबारा देख जाकर, फिर वह तुझे कुते जैसा दिखाई पड़ेगा।
अब यह जो बच्चा है, यह कोई झूठ नहीं गढ़ रहा है। हमें लगेगा कि यह तो बिलकुल सरासर झूठ है। कौन भगवान इससे कहेगा? लेकिन हमें बच्चे के माइंड का कुछ पता नहीं है। क्योंकि बच्चा खुद सवाल उठा सकता है और दूसरी तरफ से जवाब भी दे सकता है। इसका हमें पता नहीं है, इसका हमें पता नहीं है कि बच्चा सवाल भी उठा सकता है और दूसरी तरफ से जवाब भी दे सकता है। उसने कहा होगा कि यह क्या मामला है, मुझे दिखाई पड़ा! और भगवान की तरफ से उसने ही जवाब दिया है कि मुझे भी ऐसा ही दिखाई पड़ा था। पहली दफे ऐसा ही होता है। मैं खुद ही भूल में पड़ गया था कि यह कुत्ता है या हाथी!
यह झूठ जरा भी नहीं बोल रहा है, क्योंकि इसे झूठ का अभी बोध ही नहीं है। यह सच भी नहीं बोल रहा है, इसे सच का भी बोध नहीं है। इसे जो हो रहा है, यह बोल रहा है। अगर ठीक से समझें, तो जो हो रहा है, वही बोलना सच है। लेकिन आपका सत्य नहीं, जिसमें कि झूठ का बोध है। इसे जो हो रहा है, वही बोल रहा है। इसे कुत्ता हाथी की तरह दिखाई पड़ा, यह वही बोल रहा है। यह कोई बना कर नहीं आ गया है कहानी बीच में से; इसको दिखाई पड़ा है। यह वही बोल रहा है, जो दिखाई पड़ा है। इसे सुनाई पड़ा कि परमात्मा ने कहा कि मुझे भी पहली बार ऐसा ही हुआ था। यह वही बोल रहा है।
सत्य का एक और आयाम है, जहां न सच रहता है, न झूठ; जहां जो है, है। लेकिन वहां असत्य का बोध भी नहीं है। और इसलिए कई बार सच और झूठ में रहने वाले लोगों को उसमें कई बातें असत्य मालूम पड़ेंगी। कई बातें! जैसे हमको मालूम पड़ेगी कि सरासर झूठ है कि हाथी के बराबर दिखाई पड़े कुत्ता। कैसे दिखाई पड़ सकता है? झूठ है! यह झूठ की हमारी व्याख्या है और हमारे बाबत खबर है; यह बच्चे के मन के बाबत कोई सूचना नहीं है इसमें। और सच पूछा जाए तो जब हम बच्चे से यह कह रहे हैं कि यह झूठ है, तब हम उसे पहली दफे झूठ सिखा रहे हैं।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज