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मालूम है, तो कहो। साफ बात करो। नहीं मालूम, तो कह दो कि हमें पता नहीं कि जगत कहां से पैदा हुआ; मालूम है, तो कहो कि इससे पैदा हुआ। ऐसा क्यों कहते हो, मानो कि! इससे तुम्हारे अज्ञान का पता चलता है।
असल में, अज्ञानी चीजों के रहस्य को कभी नहीं देख पाते। फिक्स्ड कंसेप्ट में आसानी पड़ती है। कह दिया कि यह आदमी पापी है, बात खतम हो गई। लेकिन पापी पुण्य कर सकते हैं। कह दिया, यह आदमी पुण्यात्मा है, बात खतम हो गई। लेकिन पुण्यात्मा पाप कर सकता है। तो क्या मतलब तुम्हारे कहने से हुआ? अगर पुण्यात्मा पाप कर सकता है और अगर पापी पुण्य कर सकता है, तो तुम्हारे लेबल लगाने खतरनाक हैं। क्यों लगाए? कोई मतलब न था उनका।
पर हमें सुविधा हो जाती है, हम निश्चिंत हो जाते हैं। कैटेगराइज कर लेते हैं; एक-एक खाने में रख दिया आदमियों को उठा कर, निश्चिंत हो गए! हालांकि हमारी वजह से कुछ रुकता नहीं; हमारी वजह से कुछ फर्क नहीं पड़ता; जिंदगी गतिमान रहती है।
लाओत्से बहुत हेजिटेटिंग है। और जगत में बहुत थोड़े से लोग हुए हैं, जो लाओत्से जैसे हेजिटेटिंग हैं। हिंदुस्तान में सिर्फ बुद्ध के पास इतना हेजिटेशन है। लेकिन वह भी इतना नहीं। क्यों? क्योंकि मैंने कल आपसे कहा कि बुद्ध ने कह दिया, इन सवालों के मैं जवाब न दूंगा। यह भी काफी सुनिश्चित बात हो गई। एक सुनिश्चित बात तो यह है कि ये जवाब हैं; एक सुनिश्चित बात यह हो गई कि इनके जवाब ही नहीं हैं। बट दि आंसर इज़ डेफिनिट, इनके जवाब नहीं हैं। कोई अनिश्चय नहीं है मामले में।
लाओत्से कहता है, मानो कि। हाइपोथेटिकल है, कल्पना करो कि, दौड़ाओ अपनी भावना को, शायद तुम्हें खयाल में आ जाए, जैसे इसी शून्य से सब पैदा हुआ है।
हुआ है, इसी शून्य से पैदा हुआ है; लेकिन इसे सुनिश्चित रूप से कह देना कि इसी शून्य से पैदा हुआ है, अतिक्रमण है, ट्रेसपासिंग है। क्योंकि तब शून्य इतना छोटा हो गया कि हमने उसको सामने रख कर देख लिया कि इसी से सब पैदा हुआ है। शून्य बहुत छोटा हो गया, विराट न रहा। अथाह न रहा, गहरा न रहा, असीम न रहा, बहुत छोटा हो गया। हमने अपने सामने रख लिया अपनी प्रयोगशाला की टेबल पर, और कहा कि इसी से सब पैदा हुआ है। यह रहा शून्य, इससे सब पैदा हुआ है। मिस्ट्री न रही, रहस्य न रहा बात में।
लाओत्से कहता है, मानो कि जैसे यही हो जननी!
लाओत्से से लोग अगर पूछे कि ईश्वर है? तो लाओत्से नहीं कोई हां-न में जवाब देता। लाओत्से जैसे लोग ईश्वर की इतनी सन्निधि में जीते हैं कि हां-न में जवाब नहीं दे सकते हैं।
नसरुद्दीन पर एक मुकदमा चला है एक अदालत में। और मजिस्ट्रेट ने कहा है कि नसरुद्दीन, तुम लफ्फाज हो, तुम शब्दों को ऐसे टर्न देते हो कि हमें बड़ी कठिनाई होती है। तुम हां और न में जवाब दो। नहीं तो यह मुकदमा कभी खतम न होगा। तुम ऐसी गोलमोल बातें कर देते हो कि हम उसमें घूमते हैं और कहीं पहंचते नहीं। तुम हां और न में जवाब दो, तो ही हल हो सकता है।
नसरुददीन ने कहा कि लेकिन जो भी बातें जवाब देने योग्य हैं, वे हां और न में नहीं दी जा सकती हैं। और जो बातें जवाब देने योग्य नहीं हैं, वे हां और न में दी जा सकती हैं। फिर तुमने मुझे कसम खिलाई सत्य बोलने की, वह वापस ले लो! फिर मैं हां और न में जवाब दे दूंगा। तुमने मुझे कसम दिलाई सत्य बोलने की, आई एम ऑन ओथ! और सत्य ऐसा नहीं है कि हां और न में जवाब दिया जा सके।
मजिस्ट्रेट ने कहा, अच्छा तो तुम कोई एक ऐसा उदाहरण दो, जिसका जवाब हां और न में न दिया जा सके।
नसरुद्दीन ने कहा कि मैं पूछता हूं महानुभाव, आपने अपनी पत्नी को पीटना बंद कर दिया? हैव यू स्टॉप्ड बीटिंग योर वाइफ? आप हां और न में जवाब दे दें।
मजिस्ट्रेट थोड़ी दिक्कत में पड़ा। अगर वह कहे हां, तो उसका मतलब वह पीटता था पहले; अगर वह कहे न, तो उसका मतलब वह अभी पीट रहा है।
नसरुददीन ने कहा, कहिए, क्या खयाल है? मेरी ओथ हटा लें, सच बोलने की झंझट मझ पर न हो, तो मैं हां और न में जवाब दे सकता हूं। लेकिन बहुत चीजें हैं, नसरुद्दीन ने कहा, जिनका हां और न में कोई जवाब नहीं हो सकता है।और ईश्वर जहां आता है, वहां तो हां और न बिलकुल बेकार हो जाते हैं। वहां नास्तिक भी मूढ़ और आस्तिक भी मूढ़ हो जाते हैं। वहां हां और न में जवाब देने वाले निपट मूढ़ हैं। वहां चीजें बहुत तरल हो जाती हैं, और एक-दूसरे में प्रवेश कर जाती हैं।इसलिए लाओत्से बहुत-बहुत झिझकता हुआ कहता है, मानो कि इसी शून्य से सब पैदा हुआ हो।
शेष कल। दो सूत्र बचे हैं, तो दो दिन में सूत्र हो जाएंगे; और तीसरा दिन एक और हमारे पास बचेगा, तो जो भी आपके सवाल इस बीच हुए हों, वे तीसरे दिन। तो अपने-अपने सब सवाल तैयार कर लें, जिसको भी पूछना हो।
इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज