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वाहिंगर ने एक किताब लिखी है: दि फिलासफी ऑफ एज इफ। अदभूत किताब है। पश्चिम ने पिछले सौ वर्षों में जो दस-पांच कीमती किताबें पैदा कीं, उसमें वाहिंगर की किताब है, दि फिलासफी ऑफ एज इफ। वह कहता है कि जगत में जिन्होंने भी कहा, सत्य ऐसा है, उन्होंने गलत कहा। क्योंकि आदमी इतना ही कह सकता है, एज इफ। इससे ज्यादा आदमी कहे, तो सीमाओं के पार जाता है। वह आदमी की अस्मिता है और अहंकार है।
तो वाहिंगर नहीं कहता कि गॉड क्रिएटेड दि वर्ल्ड; वह कहता है, एज इफ गॉड क्रिएटेड दि वर्ल्ड। यानी दुनिया इतनी खूबसूरत है कि मानो ईश्वर ने बनाई हो। क्योंकि कौन और बनाएगा? वाहिंगर यह नहीं कहता कि ईश्वर ने बनाई यह दुनिया, मैं सिद्ध कर दूंगा। क्योंकि वाहिंगर कहता है कि यह मैं सिद्ध करूंगा, जो इस दुनिया का एक हिस्सा हूं! तो फिर कोई असिद्ध भी कर देगा। और अगर मैं हकदार हूं सिद्ध करने का, तो कोई हकदार है असिद्ध करने का। अगर इस जगत का एक हिस्सा कह सकता है ईश्वर है और प्रमाण जुटा सकता है, तो दूसरा हिस्सा कह सकता है कि नहीं है और प्रमाण जुटा सकता है। और जब कोई कहता है नहीं है, तो हमें यह नहीं कहना चाहिए कि वह सीमा के बाहर जा रहा है क्योंकि है वाले ने यात्रा शुरू करवा दी, वह सीमा के बाहर चला गया।
इस जगत में पहले सीमा के बाहर आस्तिक चले गए। उन्होंने जो वक्तव्य दिए, वे मनुष्य की सीमा के बाहर हैं। नास्तिकों ने तो सिर्फ उनका अनुगमन किया। एक आदमी कहता है, मैं सिद्ध करता हूं कि ईश्वर है। यह बाहर हो गई बात। ईश्वर को भी तुम्हारे सिदध करने की जरूरत पड़ती है?
वाहिंगर कहता है कि नहीं, इतना ही कह सकता हूं मैं, जितना सोचता हूं, जितना खोजता हूं, तो पाता हूं, एज इफ गॉड क्रिएटेड दि वर्ल्ड। मानो कि...। कोई गणित का सत्य नहीं है यह; वह कहता है, यह मेरे हृदय का भाव है, ऐसा मुझे लगता है कि मानो। एक छोटे से फूल को भी देखता हूं, तो वह कहता है, मुझे ऐसा लगता है कि मानो किसी ईश्वर ने इसे निर्मित किया होगा। मेरा मन नहीं होता मानने का कि यह यों ही पत्थर के बीच जमीन से फूट आया है। इसलिए मैं कहता हूं, एज इफ।
लाओत्से कहता है, मानो वह जो अथाह, गंभीर, कितना अथाह, कितना गंभीर वह जो शून्य है, वह जो घड़ा है रिक्त, उससे ही सब पदार्थों का जन्म हुआ हो।
यह एज इफ, यह मानो जोड़ देना बड़ा मूल्यवान है। यह लाओत्से की बहुत सेंसिटिविटी का, बहुत संवेदनशील चित्त का लक्षण है। यानी वक्तव्य इतना संवेदनशील है, यों ही नहीं बोल दिया गया है। किसी विवाद की गर्मी में नहीं कहा गया है, कुछ सिद्ध करने की चेष्टा में नहीं कहा गया है, किसी को कनविंस करने के लिए नहीं कहा गया है। उदगार है, ऐसा लगा है। ऐसा अनुभव हुआ है, ऐसी प्रतीति बनी है, ऐसा अहसास है।
इसलिए लाओत्से ने कहीं कहा है...। उसके शिष्यों ने बहुत से वक्तव्य लाओत्से के इकट्ठे किए हैं। च्वांगत्से कहता है, लाओत्से ने कहीं कहा है कि जितना बड़ा ज्ञानी, उतना ही ज्यादा झिझकता है। अज्ञानी बिना झिझके वक्तव्य दे देते हैं-बड़े वक्तव्य, जो हमारे ओंठों पर शोभा भी न दें-कि जगत को परमात्मा ने बनाया। यह वक्तव्य परमात्मा से बड़ा कर देता है वक्तव्य देने वाले को। कि यह कृत्य पाप है। कौन सा कृत्य पाप है, कौन सा कृत्य पुण्य है, बड़ा अनिर्णीत है। और जो जानता है, वह हेजिटेट करेगा, वह झिझकेगा, वह वक्तव्य देने से बचेगा।
जीसस ने कहा है, जज यी नॉट, तुम तो निर्णय ही मत करो। जज यी नॉट दैट यी शुड नॉट बी जज्ड, तुम निर्णय ही मत लो, नहीं तुम्हारा निर्णय होगा फिर। किसी दिन तुम झंझट में पड़ोगे।
तुम निर्णय ही मत लो। क्योंकि चीजें बहुत जटिल हैं और बहुत रहस्यपूर्ण हैं। क्या है पाप? क्या है पुण्य? यहां पुण्य पाप बन जाता है; यहां पाप पुण्य बन जाते हैं। यहां जो पाप की तरह शुरू होता है, उसमें पुण्य के फूल खिल जाते हैं। यहां जो पुण्य की तरह यात्रा शुरू करता है, पाप की मंजिल पर पहुंच जाता है। यहां जो अभी उजाला है, थोड़ी देर में अंधेरा हो जाता है। अभी जो अंधेरा था, वह थोड़ी देर में उजाला हो जाता है। अभी सुबह थी, सांझ हो गई। अभी जो सुंदर था, वह कुरूप हो गया है। क्या है सुंदर?
नसरुद्दीन से उसकी पत्नी पूछ रही है एक दिन कि इधर कुछ दिनों से मुझे शक होता है कि तुमने मुझ पर प्रेम कम कर दिया है। क्या मैं तुमसे पूछ सकती हूं कि जब मैं बूढी हो जाऊंगी, तब भी तुम मुझे प्रेम करोगे? नसरुद्दीन ने कहा कि पूजूंगा, तेरे चरणों की धूल सिर पर लगाऊंगा। लेकिन ठहर, तू अपनी मां जैसी तो न हो जाएगी? अगर तेरी मां जैसी हो जाए, तो हाथ जोड़ लूं। तू ऐसी ही तो रहेगी न!
किसको सौंदर्य कहेंगे हम? किसको जवानी? जवानी का हर कदम बुढ़ापे में पड़ता चला जाता है। किसको सौंदर्य कहते हैं? हर सौंदर्य की लहर थोड़ी ही देर में कुरूप हो जाती है। यहां चीजें रहस्यपूर्ण हैं, संयुक्त हैं, विभाजित नहीं हैं। जगत ऐसा नहीं है कि हम कह सकें, यह अंधेरा है और यह उजाला है; जगत ऐसा है कि सब धुंधलका है, सांझ है। न कह सकते उजाला है; न कह सकते अंधेरा है।
लाओत्से कहता है, झिझकते हैं वे, जो ज्ञानी हैं। और लाओत्से के सभी वक्तव्य झिझक से भरे हुए हैं, बहुत हेजिटेटिंग हैं। अज्ञानी पढ़ेगा, तो उसको लगेगा, शायद पता नहीं होगा लाओत्से को। नहीं तो ऐसा क्यों कहना कि मानो कि। अगर मालूम है, तो कहो; नहीं
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