SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free ताओ उपनिषाद (भाग-1) प्रवचन-12 वह परम शून्य, परम उदगम, परम आधार-ताओ-(प्रवचन-बाहरवां) अध्याय 4: सूत्र 1 ताओ का स्वरूप ताओ घड़े की रिक्तता की भांति है। इसके उपयोग में सभी प्रकार की पूर्णताओं से सावधान रहना अपेक्षित है। यह कितना गंभीर है, कितना अथाह, मानो यह सभी पदार्थों का उदगम या उनका सम्मानित पूर्वज हो! ताओ है शून्य, रिक्तता; घड़े की रिक्तता की भांति। कुछ भी भरा हुआ न हो, तो ही ताओ उपलब्ध होता है। शून्य हो चित्त, तो ही धर्म की प्रतीति होती है। व्यक्ति मिट जाए इतना, कि कह पाए कि मैं नहीं हूं, तो ही जान पाता है परमात्मा को। ऐसा समझें। व्यक्ति होगा जितना पूर्ण, परमात्मा होगा उतना शून्य; व्यक्ति होगा जितना शून्य, परमात्मा अपनी पूर्णता में प्रकट होता है। ऐसा समझें। वर्षा होती है, तो पर्वत-शिखर रिक्त ही रह जाते हैं; क्योंकि वे पहले से ही भरे हुए हैं। गड्ढे और झीलें भर जाती हैं, क्योंकि वे खाली हैं। वर्षा तो पर्वत-शिखरों पर भी होती है। वर्षा कोई भेद नहीं करती। वर्षा कोई जान कर झील के ऊपर नहीं होती। वर्षा तो पर्वत-शिखर पर भी होती है। लेकिन पर्वत-शिखर स्वयं से ही इतना भरा है कि अब उसमें और भरने के लिए कोई अवकाश नहीं है, कोई जगह नहीं है, कोई स्पेस नहीं है। सब जल झीलों की तरफ दौड़ कर पहुंच जाता है। उलटी घटना मालूम पड़ती है। जो भरा है, वह खाली रह जाता है; और जो खाली है, वह भर दिया जाता है। झील का गुण एक ही है कि वह खाली है, रिक्त है। और शिखर का दुर्गुण एक ही है कि वह बहुत भरा हुआ है। टू मच। लाओत्से कहता है, धर्म है रिक्त घड़े की भांति। ताओ यानी धर्म। धर्म है रिक्त घड़े की भांति। और जिसे धर्म को पाना हो, उसे सभी तरह की पूर्णताओं से सावधान रहना पड़ेगा। यह बहुत अदभुत बात है-सभी तरह की पूर्णताओं से। नहीं कि घड़े में धन भर जाएगा, तो बाधा पड़ेगी। घड़े में ज्ञान भर जाएगा, तो भी बाधा पड़ेगी। घड़े में त्याग भर जाएगा, तो भी बाधा पड़ेगी। घड़े में कुछ भी होगा, तो बाधा पड़ेगी। घड़ा बस खाली ही होना चाहिए। लेकिन हम सब तो जीवन में न मालूम किन-किन द्वारों से पूर्ण होने की कोशिश में लगे होते हैं। हमें लगता ही ऐसा है कि जीवन इसलिए है कि हम पूर्ण हो जाएं। किसी न किसी माध्यम से, किसी न किसी मार्ग से पूर्णता हमारी हो, मैं पूरा हो जाऊं। उपदेशक समझाते हैं, माता-पिता अपने बच्चों को कहते हैं, शिक्षक अपने विद्यार्थियों को कहता है, गुरु अपने शिष्यों को कहते हैं कि क्या जीवन ऐसे ही गंवा दोगे? अधूरे आए, अधूरे ही चले जाओगे? पूरा नहीं होना है? पूर्ण नहीं बनना है? अकारथ है जीवन, अगर पूरे न बने। कुछ तो पा लो। खाली मत रह जाओ। और लाओत्से कहता है कि जिसे धर्म को पाना है, उसे सभी तरह की पूर्णताओं से सावधान रहना पड़ेगा। नहीं, उसे पूर्ण होना ही नहीं है। उसे अपूर्ण भी नहीं रह जाना है। उसे शून्य हो जाना है। इसे इस तरह हम देखेंगे तो आसान हो जाएगा। हम जहां भी होते हैं, अपूर्ण होते हैं। रिक्त हम कभी होते नहीं, पूर्ण हम कभी होते नहीं। हमारा होना अधूरे में है। बीच में, मध्य में है। हम जहां भी होते हैं, बीच में होते हैं, अपूर्ण होते हैं। न तो एम्पटी और न परफेक्ट, इन दोनों के बीच में-सदा, सभी। यह किसी एक व्यक्ति के लिए बात नहीं है। अस्तित्व में जो भी हैं, वे सभी मध्य में होते हैं। एक तरफ शून्यता और एक तरफ पूर्णता, और बीच में हमारा होना है। हमारी सारी व्यवस्था इस बीच से पूर्ण की तरफ बढ़ने की है। और लाओत्से का कहना है, इस बीच से शून्य की तरफ जाना है। हम सबकी कोशिश यह है कि अधूरे तो हम हैं, अब हम पूरे कैसे हो जाएं? भर कैसे जाएं? हमारे जीवन की पीड़ा यही है कि फुलफिलमेंट नहीं है, कुछ भराव नहीं है। प्रेम है, वह अधूरा है। ज्ञान है, वह अधूरा है। यश है, वह अधूरा है। कुछ भी पूरा नहीं है। कुछ तो पूरा मिल जाए! प्रेम ही पूरा मिल जाए, इतना भर जाऊं कि और मांग न रह जाए। कहीं से भी हम पूरे हो जाएं, तो फुलफिलमेंट हो जाए। लगे कि हम भी हैं भरे हुए! इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy