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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free तैमूरलंग ने कहा, क्या करूंगा? सारे लोग कहते हैं कि तुम ज्ञानी हो। हो ज्ञानी कि नहीं? अगर नहीं हो, तो अब तक तुमने खंडन क्यों नहीं किया? तो तुम्हारी गर्दन कटवा देंगे। अगर हो, तो हां बोलो। नसरुद्दीन ने कहा कि हां, हूं। उसने कहा कि गर्दन कटने का डर है। तो तुम्हारे ज्ञान का प्रतीक क्या है? क्या सबूत कि तुम ज्ञानी हो? नसरुद्दीन ने नीचे देखा और कहा कि मुझे नर्क तक दिखाई पड़ रहा है। ऊपर देखा और कहा, मुझे स्वर्ग, सात स्वर्ग दिखाई पड़ रहे तैमूरलंग ने पूछा, लेकिन इसके देखने का राज क्या है? नसरुद्दीन ने कहा, ओनली फियर। कोई दिखाई-विखाई नहीं पड़ रहे हैं। यह आप तलवार लिए बैठे हो, नाहक झंझट कौन करे? सिर्फ भय! इस मेरे ज्ञान का इतना ही आधार है। ये सात नर्क और सात स्वर्ग जो मैं देख रहा हूं। तुम तलवार नीचे रखो और आदमी की तरह आदमी से बातचीत हो। नहीं तो इसमें तो आप जो कहोगे, हम वही चमत्कार बताने को राजी हो जाएंगे कि भय है, क्या है। जान तो अपनी बचानी है। भय आपसे कुछ भी करवा लेता है। भय आपसे बहुत कुछ करवा रहा है। सारी जिंदगी भय से भरी है। नहीं, इससे जो व्यवस्था आती है, भय से, वह कोई व्यवस्था नहीं है। भीतर तो ज्वालामुखी उबलता रहता है। लाओत्से जैसे लोग कहते हैं कि एक और व्यवस्था है, ए डिफरेंट क्वालिटी ऑफ आर्डर। एक और ही गुण है; एक और ही नियमन है जीवन का; एक और ही अनुशासन है। और वह अनुशासन व्यवस्था से नहीं आता, थोपा नहीं जाता, आयोजित नहीं किया जाता। न किसी भय के कारण, न किसी इच्छा के कारण, न किसी प्रलोभन से; बल्कि ज्ञान की निष्क्रिय वह जो प्रकाश फैलता है, उससे अपने आप घटित हो जाता है। और जब वैसी व्यवस्था होती है, तो सार्वभौम, यूनिवर्सल होती है। सार्वभौम का अर्थ है कि उस नियम का, उस व्यवस्था का कहीं भी फिर खंडन नहीं है। नो एक्सेप्शन! फिर उसका कोई अपवाद नहीं है। फिर वह निरपवाद है। फिर वह हर स्थिति में है। जैसे सागर के पानी को हम कहीं से भी चखें और वह नमकीन है, ऐसा ही फिर ज्ञान से जिस व्यक्ति का जीवन निर्मित हुआ, उसको हम कहीं से भी चखें, उसका कहीं से भी स्वाद लें, उसे सोते से जगा कर पूर्छ, उसे किसी भी स्थिति में देखें और पहचानें, सार्वभौम है। उसकी जो व्यवस्था है वह सदा है। उसमें फिर कोई अपवाद नहीं है। उसमें नियम का कहीं कोई स्खलन नहीं है; क्योंकि नियम ही नहीं है। इसको ठीक से समझ लें। आप सोचते होंगे, इतना मजबूत नियम है कि स्खलन नहीं है। नहीं, कितना ही मजबूत नियम हो, स्खलन हो जाता है। लाओत्से कहता है कि उसका कहीं स्खलन नहीं होता, क्योंकि वहां कोई नियम ही नहीं है। टूटेगा कैसे? उस आदमी ने कोई नियम तो बनाया नहीं; ज्ञान से आचरण आया है। कोई मर्यादा तो बनाई नहीं; ज्ञान से मर्यादा फलित हुई है। किसी प्रलोभन और लोभ के कारण तो वह सच नहीं बोला; सच बोल ही सकता है, और अब कोई उपाय नहीं है। सच ही बोल सकता है, ऐसा कहना भी शायद ठीक नहीं। ऐसा कहना ठीक है कि जो भी बोलता है, वह सच ही है। बोलना और सच अब दो चीजें नहीं हैं। झूठ का कोई उपाय नहीं है। इसलिए नहीं कि सच बोलने की पक्की कसम है, कि सच बोलने का उसने दृढ़ निश्चय कर लिया है। ये शब्द बड़े गलत हैं। और हमेशा कमजोर आदमी इनका उपयोग करते हैं। कहते हैं, मैंने सच बोलने का दृढ़ निश्चय कर लिया है। सच बोलने का दृढ़ निश्चय? उसका मतलब है कि असत्य बोलने की बड़ी दृढ़ स्थिति भीतर होगी। नहीं, असत्य गिर गया; सत्य ही बचा है। जो बोला जाता है, वह सत्य है; जो जीया जाता है, वह शुभ है; जो होता है, वही सुंदर है। इसलिए सार्वभौम! आज इतना, कल आगे का सूत्र लेंगे। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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