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और लाओत्से कह रहा है कि वे उनको, जानकारी पर चले न जाएं वे कहीं, इससे बचाने की कोशिश करते हैं। लाओत्से यह कह रहा है कि कोई आदमी अपनी जानकारी के अनुसार चलने न लगे। क्योंकि जानकारी है उधार। दूसरों के पंखों को लेकर जैसे कोई पक्षी उड़ने की कोशिश करे तो जो गति हो, वही गति उस आदमी की हो जाती है जो जानकारी को आचरण बनाने की कोशिश करता है।
यह बड़ा मजा है, जानकारी को आचरण बनाना पड़ता है और ज्ञान आचरण बन जाता है। यही फर्क है। ज्ञान को आचरण नहीं बनाना पड़ता। जिस क्षण आपको ज्ञान होता है, उसी क्षण आचरण शुरू हो जाता है। यू आर नॉट टु प्रैक्टिस इट। ज्ञान का भी आचरण करना पड़े, तो ज्ञान तो दो कौड़ी का हो गया।
अब मुझे पता है कि आग में हाथ डालने से हाथ जलता है। यह जानकारी हो सकती है। तो मुझे हाथ को रोकना पड़ेगा कि आग में कहीं डाल न दूं। और अगर यह ज्ञान है कि आग में डालने से हाथ जलता है, तो क्या मुझे कोई चेष्टा करनी पड़ेगी कि आग में मैं हाथ डाल न दूं? नहीं, फिर कोई चेष्टा न करनी पड़ेगी। आग में हाथ जाएगा नहीं। इसके बाबत सोचना ही नहीं पड़ेगा। यह बात समाप्त हो गई। आग और अपना मिलन अब न होगा।
मुझे पता है कि जहर पी लेने से मैं मर जाता है। तो क्या मंदिर में जाकर प्रतिज्ञा करनी पड़ेगी कि अब मैं कसम खाता है कि जहर कभी न पीऊंगा? और अगर कोई आदमी किसी मंदिर में कसम खा रहा हो कि मैं प्रतिज्ञा लेता हूं आजीवन, जहर का कभी भी अब पान नहीं करूंगा! तो आप क्या कहेंगे उस आदमी को सुन कर? कि इस आदमी का डर है, यह कभी न कभी जहर पी लेगा। इसको पता कुछ भी नहीं है। क्योंकि पता हो, तो प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है!
जितने लोग प्रतिज्ञाएं लेते हैं, व्रत लेते हैं, कसमें खाते हैं, ऐसा करेंगे और ऐसा नहीं करेंगे, वे वे ही लोग हैं, जो जानकारी पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। किसी ने कहा कि क्रोध बुरा है; अब आप कोशिश कर रहे हैं कि क्रोध न करें। और किसी ने कहा कि वासना बुरी है; और आप कोशिश कर रहे हैं कि वासना न करें।
लाओत्से कहता है, ज्ञानी लोगों को उनकी जानकारी पर चलने से यथाशक्य...।
यथाशक्य ही कर सकते हैं, क्योंकि जबरदस्ती रोकने का तो कोई उपाय नहीं है। कह ही सकते हैं कि गड्ढा है, गिर जाओगे। लेकिन जिस आदमी ने कसम खाई है कि वह जानकारी पर आचरण करके रहेगा, वह आदमी धीरे-धीरे फाल्स, झूठा आदमी होता चला जाता है। और ऐसी घड़ी आ सकती है कि वह अपने ही आचरण में इतना घिर जाए कि उसे कभी पता ही न चले कि उसका सारा आचरण झूठा है, नकली सिक्के हैं।
अगर एक आदमी ने तय कर लिया कि क्रोध बुरा है-पढ़ कर, सुन कर, समझ कर-दूसरों से! जान कर नहीं, क्योंकि जान कर तय नहीं करना पड़ता कि क्रोध बुरा है। जिसने जाना कि क्रोध बुरा है, वह क्रोध के बाहर हो गया। जिस चीज को आपने जान लिया कि विषाक्त है, उससे आप बाहर हो गए। तो ज्ञानी क्या करेगा? ज्ञानी आपसे कहेगा, क्रोध करो और जानो कि क्या है। तय मत करो शास्त्र को पढ़ कर कि क्रोध बुरा है। वह यह नहीं कह रहा कि शास्त्र में जो लिखा है, वह गलत है। वह जिसने जाना होगा, उसने ठीक ही लिखा होगा। लेकिन वह जानने वाले ने लिखा है; और न जानने वाला उसको जानकारी बना कर जब चलेगा, तो सब उलटा हो जाने वाला है।
ज्ञानी कहेगा कि जो-जो है, उसे जानो, जीयो, पहचानो। और जो-जो बुरा है, वह गिर जाएगा; और जो-जो भला है, वह बच जाएगा। अज्ञानी शिक्षक लोगों को समझाते हैं, बुरे को छोड़ो, भले को पकड़ो। ज्ञानी शिक्षक लोगों से कहते हैं, जानो क्या बुरा है और क्या भला। भले को जानना, बुरे को जानना। जो बच जाए जानने पर, उसको भला समझ लेना; और जो गिर जाए जानने पर, उसको बुरा समझ लेना। बुरा वह है, जो जानकारी में बचता है, जानने में गिर जाता है; भला वह है, जानकारी में लाने की कोशिश करनी पड़ती है, ज्ञान में आ जाता है-ज्ञान के पीछे छाया की तरह।
आपने कभी भी अगर कोई चीज जानी हो, तो आप मेरी बात समझ जाएंगे। लेकिन कठिनाई यही है कि हमने कभी कोई चीज नहीं जानी है। हमने सुना है।
अब यह कितने आश्चर्य की घटना है! एक आदमी अगर पचास साल जीया है, तो हजारों बार क्रोध कर चुका है। लेकिन अभी भी उसने क्रोध को जाना नहीं है। अभी भी वह किताब पढ़ता है, जिसमें लिखा है, क्रोध बुरा है। और किताब पढ़ कर तय करता है कि अब कसम खा लेते हैं कि अब क्रोध न करेंगे। हजार दफे जो आदमी क्रोध करके नहीं जान पाया, वह कागज पर लिखे गए दो शब्दों से, कि क्रोध बुरा है, जान लेगा? तब तो चमत्कार है।
हजार बार मैं इस मकान में आकर गया और नहीं जान पाया कि इस मकान में जाना बुरा है। एक किताब में पढ़ कर मैं जान लूंगा कि इस मकान में जाना बुरा है? और कसम खा लूंगा कि अब कभी न जाऊंगा, कसम खाता हूं! लेकिन कसम यह बताती है कि जाने का मन बाकी है। क्योंकि कसम खानी किसके खिलाफ पड़ती है? कोई तुमसे कह रहा है कि क्रोध करो? जब हम कसम लेते हैं, तो किसके खिलाफ? अपने खिलाफ। कोई तो नहीं कह रहा है कि क्रोध करो। सारी दुनिया तो कह रही है, क्रोध छोड़ो। कहीं कोई स्कूल
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