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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free बुद्ध के जो विरोधी थे, उन्होंने तो खबरें उड़ा दीं, कि यह जवाब नहीं देता, क्योंकि इसको मालूम नहीं है। मालूम हो, तो जवाब दो; अगर मालूम है, तो जवाब दो। अगर मालूम नहीं है, तो कह दो कि मालूम नहीं है। अब बुद्ध की तकलीफ आप समझ सकते हैं। इस जगत में ज्ञानी की तकलीफ सदा से यही रही है। बुद्ध को मालूम है और जवाब नहीं देना है। बुद्ध यह भी नहीं कहते कि मुझे मालूम है। क्योंकि बुद्ध अगर यह कहें कि मुझे मालूम है, तो लोग पूछते, फिर बताएं! बुद्ध कहते हैं, मैं बस चुप रह जाता हूं। मैं इस संबंध में कुछ नहीं कहता; यह भी नहीं कहता कि मुझे मालूम है। क्योंकि मेरा इतना कहना भी तुम्हारे भीतर वासना को जनमाएगा कि अगर आपको मालूम है, तो हमको कैसे मालूम हो। बुद्ध कहते हैं, मैं यह नहीं बताता कि खुला आकाश कहां है, मैं तो इतना ही बताता हूं कि तुम्हारे हाथ में जो जंजीरें हैं, वे क्यों हैं! तुम्हारे हाथ में जंजीरें पड़ी हैं और मैं तुम्हें आकाश के, खुले आकाश के, मुक्त आकाश के विवरण दूं-तुम जंजीरों में ही पड़े मुक्त आकाश के सपने देखने शुरू कर दोगे। वे सपने जंजीरें तोड़ने में सहयोगी नहीं, बाधा बनेंगे। और इस बात का भी डर है कि कारागृह में ही कोई आदमी इतना गहरा सपना देखने लगे कि भूल जाए कि कारागृह में है। और इस बात का भी डर है कि वह आकाश को पाने के लिए इतना उत्तेजित और परेशान और चिंतित हो जाए कि जंजीरों को तोड़ने के लिए जितनी शांति चाहिए वह उसके पास न बचे। बुद्ध कहते थे, आकाश का मुझसे मत पूछो। मैं तुम्हें बताता हूं कि तुम्हारे हाथ में जंजीरें क्यों हैं, और क्या करो तो जंजीरें टूट जाएं। मैं तुमसे यह भी नहीं कहता कि तुम क्यों तोड़ो। तुम्हें तोड़ना हो, तो यह रहा मार्ग, यह रही व्यवस्था, यह है विधि। ऐसे तुम तोड़ ले सकते हो। लाओत्से कहता है, इच्छादि से मुक्त करते हैं। ऐसा कहते नहीं फिरते कि इच्छाओं से मुक्त हो जाओ! इच्छाओं से मुक्त करने के लिए कुछ करते हैं। वह करना दो तरह का है। एक तो इच्छाओं के स्वरूप को उघाड़ कर रख देते हैं, यह रहा। और दूसरा, स्वयं इच्छारहित जीवन जीते हैं। मैंने कहा कि कनफ्यूशियस मिलने गया। बड़ा उदास लौटा। लाओत्से उसे झोपड़े के द्वार तक छोड़ने आया था। बहुत उदास देख करक्योंकि वह मीलों पैदल चल कर आया था-लाओत्से ने कहा, तुम्हें उदास देख कर अच्छा नहीं लगता है। कनफ्यूशियस ने कहा, उदास तो जाऊंगा ही, क्योंकि मैं उपदेश लेने आया था। तो लाओत्से ने कहा, लौट कर एक बार मुझे और गौर से देख लो। अगर मुझे देखना उपदेश बन जाए, तो तुम खाली हाथ नहीं लौटोगे। बुद्ध या लाओत्से जैसे व्यक्ति जीवंत उपदेश हैं। लेकिन कनफ्यूशियस ने लौट कर देखा, लेकिन ऐसा नहीं मालूम पड़ता है कि उसे उपदेश मिला। क्योंकि उसने लौट कर अपने शिष्यों को कहा कि सिर पर से निकल गईं बातें, समझ नहीं आया। आदमी तो अदभुत मालूम होता है, सिंह की तरह। डर लगता है पास खड़े होने में उसके। लेकिन बातें सब सिर पर से निकल गईं, कुछ समझ में नहीं आया। और बहुत जोर मैंने दिया, तो उस आदमी ने इतना ही कहा कि मुझे देख लो। तो ऐसा लगता नहीं कि कनफ्यूशियस समझ पाया। क्योंकि देखने के लिए भी आंख चाहिए। और कनफ्यूशियस ज्ञान लेने आया थाइच्छा से भरा हुआ। और लाओत्से मौजूद था-अभी, यहीं। कनफ्यूशियस था भविष्य में कुछ मिल जाए, कुछ जिससे आगे रास्ता खुले; कोई मोक्ष मिले, कोई आनंद, कोई खजाना अनुभूति का। यह जो आदमी मौजूद था सामने निपट, इस पर उसकी नजर न थी। इस आदमी से कुछ लेना था जो भविष्य में काम पड़ जाए। इसलिए शायद ही वह लाओत्से को देख पाया हो। हम भी चूक जाते हैं। ऐसा नहीं है कि कनफ्यूशियस चूक जाता है, हम भी चूक जाते हैं। आप भी बुद्ध या लाओत्से या महावीर के पास से निकलेंगे, तो सौ में एक मौका है इस बात का कि आपको पता चले। बहाउद्दीन एक सूफी फकीर हुआ। जिस महानगरी में वह था, उसका सबसे बड़ा धनी व्यक्ति बहाउद्दीन के पास आता था और कहता था कि तुम सूर्य हो पृथ्वी पर! अंधेरा तुम्हें देख कर दूर हट जाता है! बहाउद्दीन हंसता था। जब भी वह आता, वह इसी तरह की बातें कहता कि तुम चांद की तरह शीतल हो, तुम अमृत की भांति हो। बहाउद्दीन हंसता। एक दिन जब वह आदमी चला गया, तो बहाउद्दीन के एक शिष्य ने कहा कि हमें बड़ी अजीब सी लगती है यह बात। वह आदमी कितने आदर के वचन बोलता है और आप ऐसा हंस देते हैं, मैनरलेस; यह शिष्टता नहीं मालूम पड़ती। वह आदमी इतने शिष्टाचार से सिर रखता है पैर पर, कहता है सूर्य हो आप, और आप एकदम हंस देते हैं, जैसे कोई गलती बात कह रहा हो। बहाउद्दीन ने उस आदमी का हाथ पकड़ा और कहा, मेरे साथ चल। वे उस धनपति की दूकान पर गए। बहाउद्दीन ने सिर्फ अपनी टोपी बदल ली थी, और कुछ न बदला था। उसकी दूकान पर गए सामान खरीदने। सामान खरीद कर लौट आए। रास्ते में बहाउद्दीन ने अपने शिष्य से कहा, देखा! उसको खयाल भी नहीं आया है कि मैं सूरज हूं। उसी से सामान खरीद कर लौट रहे हैं। पंद्रह मिनट इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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