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तक-उसकी आंख तो दूर ही देख सकती है, उसकी आंख पास नहीं देख सकती-जब तक वह हीरे के पास पहुंचता है, तब तक हीरा ओझल हो जाता है। क्योंकि उसकी आंख फारसाइटेड है, वह फिर दूर देखने लगता है। और इस आदमी को कभी खयाल भी नहीं आता कि हर हीरे के साथ यही किया मैंने अब तक। यह फिर दौड़ेगा, क्योंकि फिर कोई चमकदार चीज इसे दिखाई पड़ने लगी। और ऐसे यह जिंदगी भर दौड़ेगा। और कभी इसे खयाल न आएगा कि मेरे पास जो आंख है, वह फिक्स्ड है। वह पचास फीट के पार ही देखती है। पचास फीट के भीतर मैं अंधा हो जाता हं, ब्लाइंड स्पाट आ जाता है।
हम सब ऐसे ही ब्लाइंड स्पाट में जीते हैं। आज जो है, वह अंधेरे में हो जाता है; और कल पर हमारी रोशनी पड़ती रहती है। कल बड़ा चमकदार दिखता है, जो नहीं है। कुछ कर नहीं सकते आप, सिर्फ चमकदार होना उसका सोच सकते हैं-स्वप्न। कुछ कर नहीं सकते, कल में कुछ भी नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह है ही नहीं। आदमी की इम्पोटेंसी, आदमी की जो नपुंसकता है, उसके व्यक्तित्व का जो रिक्त रूप है, वह इस कारण है। कल में कुछ किया नहीं जा सकता, और आज कुछ कर नहीं सकते हैं। आज में कुछ किया जा सकता है, लेकिन आज में आप मौजूद नहीं हैं। और कल में कुछ किया नहीं जा सकता और आप सदा कल में मौजूद हैं। तो पूरी जिंदगी रिक्त हो जाती है।
यह जो आज हर आदमी को लगता है कि एक एम्पटीनेस है, एक खालीपन है। शून्य-शून्य सब, कहीं कुछ भराव नहीं, कोई फुलफिलमेंट नहीं। जो भी पाते हैं, वही बासा सिद्ध होता है; जो भी हाथ में आता है, वही फेंकने जैसा मालूम पड़ता है। जिसको भी खोज लेते हैं, उसकी ही सारी अर्थवत्ता खो जाती है।
लाओत्से कहता है, इच्छादि से मुक्त कर देते हैं।
ज्ञानी यह नहीं कहता कि इच्छाओं से मुक्त हो जाओ। यह भी ध्यान रखें। क्योंकि अगर ज्ञानी आपसे यह कहे कि इच्छाओं से मुक्त हो जाओ, तो आप फौरन पूछेगे, किसलिए? फार व्हाट? और तब ज्ञानी को बताना पड़ेगा कि मोक्ष के लिए, शाश्वत आनंद के लिए, परमात्मा के लिए, स्वर्ग के लिए। फिर तो इच्छा का जाल शुरू हो गया। जो भी आपको कहेगा, इच्छाओं से मुक्त हो जाओ, वह आपको नई इच्छा जनमाएगा। क्योंकि आप उससे पूढेंगे, क्यों?
नहीं, लाओत्से जैसा ज्ञानी पुरुष यह नहीं कहता, इच्छाओं से मुक्त हो जाओ। वह सिर्फ इच्छा क्या है, इसे जाहिर कर देता है। बता देता है, यह रही इच्छा। दिस इज़ दि फैक्ट, यह है तथ्य। वह बता देता है कि यह रही दीवार, इससे निकलोगे तो सिर टूट जाएगा। वह यह नहीं कहता कि सिर मत तोड़ो। क्योंकि आप पूछोगे, क्यों न तोड़ें? आप पूछेगे, क्यों न तोड़ें? वह यह नहीं कहता कि इस दीवार से मत निकलो। क्योंकि आप पूछेगे, क्यों न निकलें? कोई प्रलोभन है कहीं और से जाने का?
ध्यान रहे, वह आपको कोई पाजिटिव डिजायर नहीं देता कि इसलिए ऐसा मत करो; वह तो इतना ही बता देता है कि ऐसा करोगे तो ऐसा होता है।
बुद्ध के वचनों में बहुत बढ़िया एक तर्कसंगत प्रक्रिया है। बुद्ध निरंतर कहते थे, ऐसा करोगे तो ऐसा होता है। डू दिस एंड दिस फालोज। बुद्ध से कोई पूछता कि हम क्या करें? तो बुद्ध कहते हैं, यह तुम मुझसे मत पूछो। तुम मुझसे यह पूछो कि तुम क्या करना चाहते हो। मैं तुम्हें बता दूंगा कि तुम यह करोगे तो यह होगा, यह करोगे तो यह होगा; इससे ज्यादा मैं कुछ न कहूंगा। मैं तुमसे नहीं कहता कि यह करो। मैं इतना ही कहता हूं कि दीवार से निकलोगे, सिर टूट जाता है; दरवाजे से निकलोगे, बिना सिर टूटे निकल जाओगे। फिर तुम्हारी मौज! तुम दीवार से निकलो, तुम दरवाजे से निकलो! मैं तुमसे नहीं कहता कि तुम दीवार से मत निकलो।
फर्क समझ रहे हैं आप? एक तो यह है कि स्पष्ट आपसे कहा जाए, यह आप करो। लेकिन जब भी आपसे कोई पाजिटिवली कहेगा, डू दिस! आप पूछेगे, क्यों? इसलिए लाओत्से या बुद्ध या महावीर, इन सभी का चिंतन जो है, गहरे अर्थों में निगेटिव है। वे कहेंगे, ऐसा करोगे तो ऐसा होता है। इच्छाओं में पड़ोगे तो दुख फलित होता है। वे यह नहीं कहते कि इच्छाओं में नहीं पड़े तो सुख मिलेगा। क्योंकि अगर वे ऐसा आप से कहें, तो आप कहेंगे, अच्छा हमको सुख चाहिए; कैसे मिलेगा, बताओ। अब यह नई इच्छा निर्मित हो जाएगी।
यह बारीक है थोड़ा; लेकिन इसे समझ लेना चाहिए। अगर बुद्ध कहते हैं कि सुख...इसलिए बुद्ध ने तो ईश्वर, मोक्ष, इनकी बात ही नहीं उठाई। लाओत्से ने भी नहीं उठाई। लाओत्से ने भी नहीं उठाई। और लाओत्से का जब पहले दफे खयाल पश्चिम में पहुंचा, तो लोगों ने कहा, इसको धर्मग्रंथ कहने की जरूरत क्या है? न तो इसमें मोक्ष की बात है, न ईश्वर की बात है, न पाप-पुण्य से छुटकारे की बात है। यह आदमी बातें क्या कर रहा है!
बुद्ध से लोग पूछते थे, ईश्वर है? बुद्ध चुप रह जाते। बुद्ध कहते, इतना ही पूछो कि संसार क्या है? बुद्ध से लोग पूछते कि मोक्ष में क्या होगा? बुद्ध चुप रह जाते। फिर तो बाद में बुद्ध ने तेरह प्रश्न तैयार करवा लिए, और जिस गांव में जाते, वहां डुग्गी पिटवा देते कि ये तेरह प्रश्न कोई न पूछे, क्योंकि इनके जवाब मैं नहीं देता।
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