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में अप्सराएं हैं, उन्हें पाओ! उनका सौंदर्य कभी स्खलित नहीं होता। यहां सुख पा रहे हो? क्षणभंगुर है सुख; पानी के बबूले जैसा है; हाथ छुओगे, लगाओगे कि टूट जाएगा। हम तुम्हें उस सुख का रास्ता बताते हैं, जो शाश्वत है। यह जो मन बोल रहा है, वासनाग्रस्त है। और इस बात को समझ कर जो चल पड़ेगा, वह वासना से ही चल पड़ा है।
लाओत्से बिना किसी शर्त के कहता है, इच्छादि से मुक्त। कौन सी इच्छा नहीं, इच्छा से मुक्त। कल की मांग नहीं, आज का जीवन! कल का भरोसा नहीं, आज के साथ जीवन! भविष्य में कोई सपनों का फैलाव नहीं, इसी क्षण जो है, उसी में मौजूदगी!
इच्छारहितता का अर्थ है, टु बी प्रेजेंट इन दि प्रेजेंट। वासनारहितता का अर्थ है, अभी जो है, वहीं होना। वासनारहितता का अर्थ है, यह क्षण पर्याप्त है; मैं इस क्षण के बाहर न जाऊंगा। जो है, उसके साथ ही जीऊंगा। दुख है तो दुख के साथ; सुख है तो सुख के साथ; अंधेरा है तो अंधेरा और रोशनी है तो रोशनी; और दिन है तो दिन और रात है तो रात। जो है अभी, उसके साथ मैं जीऊंगा। इसके पार मैं अपनी इच्छाओं के सपनों में नहीं खोऊंगा। इसका अर्थ है, सत्य के साथ जीना, तथ्य के साथ जीना; जो है, उसके साथ जीना।
लाओत्से कहता है, इच्छादि से मुक्त करते हैं वे, जो जानते हैं। वे नई-नई इच्छाओं का प्रलोभन नहीं देते। वे कहते हैं, यह इच्छा छोड़ो और दूसरी पकड़ लो, ऐसा नहीं। क्योंकि उससे क्या फर्क पड़ेगा?
लेकिन हमें बहुत कठिनाई होगी। हमें आसानी रहती है; कोई कहता है, धन छोड़ो, धर्म पकड़ लो। तकलीफ होती है थोड़ी, लेकिन फिर भी पकड़ने को हमें वह कुछ देता है। सामान बदलता है, लेकिन मुट्ठी नहीं खुलती। मुट्ठी के भीतर हमने धन पकड़ा था। वह कहता है, धन छोड़ो, इसमें कोई सार नहीं है। और उसकी बात कोई ऐसी कठिन नहीं है बहुत समझ लेनी। हम को भी समझ में आ ही जाएगी किसी न किसी दिन कि कोई सार नहीं है। धन में कोई सार नहीं है, यह मूढ़ से मूढ़ आदमी को भी एक दिन समझ में आ जाता है, बहुत बुद्धिमान होने की जरूरत नहीं है। या है? धन में सार नहीं है, यह बुद्धिहीन से बुद्धिहीन को समझ में आ जाता है।
अगर नहीं आता, तो उसका कुल कारण इतना ही होता है कि उसके पास धन नहीं होगा। और कोई कारण नहीं होता। बुद्धिहीनता बाधा नहीं डालती। धन न हो, तो समझ में आना मुश्किल होता है। क्योंकि जो है ही नहीं, वह बेकार है, यह कैसे समझ में आएगा? लेकिन धन हो, तो बुद्धू को भी समझ में आ जाता है कि बेकार है; कुछ पाया नहीं। तब खुद ही मन होने लगता है कि कुछ और पाऊं, यह तो बेकार गया।
तभी कोई नई वासनाओं को जगाने वाला अगर आपसे कहता है, धन को छोड़ो, धर्म को पकड़ो, तो तत्काल आप धन छोड़ कर धन पकड़ लेते हैं। मुट्ठी फिर कायम हो जाती है।
और ध्यान रहे, धन बेकार है, यह समझने में बहुत बुद्धिमत्ता की जरूरत नहीं है, लेकिन धर्म बेकार है, इसे समझने में बड़ी बुद्धिमत्ता की जरूरत है। मैंने कहा कि बुधू से बुधु भी समझ लेगा एक दिन कि धन बेकार है, और बुद्धिमान से बुद्धिमान भी नहीं समझ पाता कि धर्म भी बेकार है। असल में, बेकार का मतलब यह है कि जिस चीज पर भी मुट्ठी बांधनी पड़ती है वह बेकार है। क्योंकि जिस चीज पर आप मुट्ठी बांधते हैं, उसी के आप गुलाम हो जाते हैं। क्लिंगिंग, वह जो मुट्ठी का बांधना है, गुलामी शुरू हो जाती है।
आप जब किसी चीज पर मुट्ठी बांधते हैं, तो आप सोचते होंगे, मालिक हो गए! क्योंकि मुट्ठी आपकी बंधी है, चीज तो अंदर है; मालिक आप हैं। लेकिन आपको पता नहीं कि वह जो चीज भीतर है, आप उसके गुलाम हो गए। वह चीज तो आपकी बिना मुट्ठी के भी रह सकती है, लेकिन अब आपकी मुट्ठी उस चीज के बिना नहीं रह सकती। अगर आप धन को छोड़ देंगे मुट्ठी से, तो वह धन यह नहीं कहेगा कि ऐसा क्यों कर रहे हो? मुझे बड़े दुख में डाल रहे हो! लेकिन आप से कोई धन छीन लेगा, छुड़ा लेगा, तो आपकी मुट्ठी रोएगी, आपके प्राण भटकेंगे और चिंतित होंगे। तो गुलाम कौन हो गया है वहां?
और हम जिस चीज पर भी मुट्ठी बांधते हैं, उसी के बंधन को स्वीकार कर लेते हैं। और जिस चीज को भी हम चाहते हैं कि वह हमें कल मिले, वह हमारे आज को नष्ट कर जाती है। और मजा यह है कि जब वह कल हमें मिलेगी, तब भी हम उसे भोगने को कल न होंगे। क्योंकि इस बीच हमारी जो निरंतर की आदत हो गई है कल की, वह कल भी साथ रहेगी। क्योंकि कल जब आएगा, तो वह आज हो जाएगा। और आज को जीने का आपने कभी कोई अनुभव नहीं किया; आज में आप कभी जीए नहीं। आपका चिरंतन अभ्यास है कल में जीने का। यह जो आज, जिसे हम आज कह रहे हैं, यह भी तो कल कल था। जैसे ही आज बनता है, आपके लिए बेकार हो गया। आपका मन कल पर चला गया।
यह तो बड़ी मजेदार बात है। जब भी कल आएगा, आज हो जाएगा। और जब भी वह आज हो जाएगा, तभी आप उसके लिए बेखबर हो जाएंगे। और हो सकता है, वर्षों उसकी प्रतीक्षा की हो। और हो सकता है, वर्षों तड़पे हों। वर्षों चाहा हो, मांगा हो, प्रार्थना की हो। और जब वह आएगा, तब आप वहां नहीं होंगे। क्योंकि वर्षों प्रार्थना करने वाला चित्त संस्कारित हो गया। यह तो कल में ही मांग करता रहेगा। यह फिर और आगे कल की मांग करने लगेगा।
हम रोज ही ऐसा करते हैं। ऐसा लगता है कि जैसे किसी आदमी की आंख में खराबी हो और वह पास न देख पाता हो; दूर का ही दिखाई पड़ता हो उसे। उसे दूर एक हीरा पड़ा हुआ दिखाई पड़ता है, वह भागता है। लेकिन जब तक वह हीरे के पास पहुंचता है, तब
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