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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free ताओ उपनिषाद (भाग-1) प्रवचन-11 कोरे ज्ञान से इच्छा-मुक्ति व अक्रिय व्यवस्था की और-(ग्यहरवां-प्रवचन) अध्याय 3 : सूत्र 3 वे उन्हें कोरे ज्ञान और इच्छादि से मुक्त रखने का प्रयास करते हैं। और जहां ऐसे लोग हैं, जो निपट जानकारी से भरे हैं, उन्हें ऐसी जानकारी के उपयोग से बचाने की यथाशक्य चेष्टा करते हैं। जब अक्रियता की ऐसी अवस्था उपलब्ध हो जाए, तब जो सुव्यवस्था बनती है, वह सार्वभौम होती है। जोजानते हैं, वे लोगों को कोरे ज्ञान से मुक्त रखने का प्रयास करते हैं। साधारणतः हम सोचते हैं कि अज्ञान बुरा है, अशुभ है; और ज्ञान अपने आप में शुभ है। लाओत्से ऐसा नहीं सोचता। न ही उपनिषद के ऋषि ऐसा सोचते हैं। और न ही पृथ्वी पर जिन लोगों ने भी परम ज्ञान को पाया है, उनकी ऐसी धारणा है। उपनिषदों में एक सूत्र है कि अज्ञानी तो अंधकार में भटक ही जाते हैं, ज्ञानी महा अंधकार में भटक जाते हैं। अकेला जान लेना न जानने से भी खतरनाक है। अज्ञानी विनम्र होता है। उसे कुछ पता नहीं है। और जिसे कुछ पता नहीं है, उसे अहंकार को निर्मित करने का आधार नहीं होता। उसे यह भ्रम भी नहीं होता कि मैं जानता हैं। इसलिए मैं को मजबूत करने की सुविधा भी नहीं होती। समझ लेना जरूरी है कि धन भी अहंकार को उतना मजबूत नहीं करता, पद भी नहीं करता, जितना ज्ञान करता है। यह खयाल कि मैं जानता हूं, जितने दंभ से, जितनी ईगो से आदमी को भर जाता है, उतनी कोई और चीज नहीं भरती है। इसलिए पंडितों से ज्यादा अहंकारी व्यक्ति खोजना कठिन है। और इसलिए यह भी घटना घटी है कि ज्ञान के दंभ से जो भरा है, वह सड़क पर भीख मांगने को राजी हो सकता है, नंगा रहने को राजी हो सकता है, भूखा मरने को राजी हो सकता है। उसे महल नहीं । चाहिए। उसे बड़े राज-सिंहासन नहीं चाहिए। लेकिन वह जो जानता है, अगर उसे प्रतिष्ठा मिलती हो, तो वह सब त्याग करने को तैयार हो सकता है। धन को छोड़ देना आसान है, पद को छोड़ देना आसान है। जानकारी को, ज्ञान को, नालेज को छोड़ देना अति कठिन है। हम सब छोड़ कर जा सकते हैं-परिवार को, प्रियजनों को-लेकिन जो हमने जाना है, उसे हम छोड़ कर नहीं हट सकते। क्योंकि वह हमारा प्राण है। जो हम जानते हैं, अगर वही हमसे हटा लिया जाए, तो हम शून्य हो जाते हैं। जानकारी ही हमारी सब कुछ संपदा है। वही है हमारा मन, हमारा माइंड, जो हम जानते हैं, उसका जोड़ है, एक्यूमुलेशन है। अगर जानते नहीं हैं कुछ, हटा दिया जाए, तो हम खाली और रिक्त और कोरे हो जाते हैं। अभी मैं एक सूफी किताब देख रहा हूं। पहली दफा प्रकाशित हुई है। किताब तो एक हजार साल पुरानी है। एक हजार साल में बहुत दफे सोचा गया कि उसे प्रकाशित किया जाए। लेकिन फिर प्रकाशित नहीं किया जा सका। क्योंकि कोई प्रकाशक, कोई पब्लिशर उसे छापने को राजी न हुआ। बात क्या थी कि कोई पब्लिशर उसे छापने को राजी न हुआ? बात यह है कि उस किताब में कुछ लिखा हुआ नहीं है। दो सौ पृष्ठ की किताब है कोरी! उस किताब की कहानी जरूर लंबी है। और सूफियों के हाथ में वह किताब पीढ़ी दर पीढ़ी दी जाती रही है। और कब किसने उस किताब को पढ़ कर क्या कहा, उसका भी इतिहास निर्मित हो गया है। पढ़ने को उसमें कुछ है नहीं। लेकिन जब एक सूफी गुरु ने दूसरे को उसे दिया, तो उसने पढ़ कर जो वक्तव्य दिया, वह संगृहीत हो गया है। अभी वह किताब प्रकाशित हुई है। पर वह पब्लिशर भी सीधी किताब छापने को राजी नहीं हुआ। उसने कहा कि पहले वे जो-जो बातें किताब के बाबत कही गई हैं, वे भी लिखी जाएं, तो कुछ छापने जैसा हो। ये दो सौ पेज खाली! तो दो सौ पेज खाली छापे हैं और नौ पन्ने आगे लिखित छापे हैं। वे किताब के हिस्से नहीं हैं। वह किताब के संबंध में लोगों ने जो कहा है वह है। जिस व्यक्ति ने यह किताब पहली दफा दी अपने शिष्य को, उसने कहा कि ठीक से पढ़ लेना, क्योंकि जो भी जानने योग्य है, वह सब मैंने इसमें लिख दिया है। आल दैट इज़ वर्थ नोइंग! शिष्य ने किताब खोली, और उसमें तो कुछ भी नहीं था। उसने अपने गुरु को कहा, लेकिन इसमें तो कुछ भी नहीं है। तो उसके गुरु ने कहा कि दैट मीन्स नथिंग इज़ वर्थ नोइंग। इसका अर्थ है कि कुछ जानने योग्य नहीं है। इसमें मैंने वह सब लिख दिया है जो जानने योग्य है। और जिस दिन तू इस किताब को पढ़ने में समर्थ हो जाएगा, उस दिन तू सब किताबों से मुक्त हो जाएगा। इसलिए इस किताब का नाम है: दि बुक ऑफ दि बुक्स, शास्त्रों का शास्त्र। इसमें कुछ है नहीं। फिर जब दूसरे शिष्य को वह किताब दी गई, तो उसने किताब खोली ही नहीं। उसके गुरु ने कहा, खोल कर पढ़ भी! पर उसने कहा कि पढ़ने से कभी कुछ नहीं मिलेगा, यह मैं जानता हूं। इसे भी पढ़ने से कुछ न मिलेगा। तो उसके गुरु ने कहा कि इसीलिए तुझे मैंने इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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