SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free योग्य समझा कि यह किताब तुझे दे दूं, क्योंकि जो पढ़ने वाले हैं, उनके यह किसी काम की नहीं है। कथा है कि उस शिष्य ने किताब जिंदगी भर नहीं खोली। बड़ी कठिन बात है। किताब आपके हाथ में हो और जिंदगी भर न खोली हो, बड़ी कठिन बात है। मरते वक्त अपने जिस शिष्य को उसने सौंपा, उसे उसने कहा कि ध्यान रख, मैंने इसे कभी पढ़ा नहीं। और मेरे गुरु ने मुझे यह इसीलिए दी थी कि वे जानते थे कि पढ़ने में मेरी उत्सुकता नहीं, जानने में मेरी उत्सुकता है। मैं तुझे सौंपता हूं, इसी आशा में कि तू भी जानने की चेष्टा में लगेगा, पढ़ने की चेष्टा में नहीं। पढ़ने से जो ज्ञान मिल जाएगा, वह सिर्फ ज्ञान जैसा प्रतीत होता है। धोखा होता है। सूडो नालेज होती है। दिखाई पड़ता है कि ज्ञान है; वह ज्ञान होता नहीं। लाओत्से जो कह रहा है, यह कह रहा है कि जो जानते हैं-अब बड़ी मजेदार बात है-जो जानते हैं, वे लोगों को जानने से रोकते हैं। क्योंकि वे यह जानते हैं कि लोगों के भटकने का जो सुगमतम मार्ग है, वह जानकारी है। हमारे ही मुल्क में यह घटना घटी है। और पृथ्वी पर इतने सघन रूप से कहीं भी नहीं घटी है। हमारे मुल्क में जितना हम जानते हैं सत्य के संबंध में, पृथ्वी पर कोई भी नहीं जानता; और जितने असत्य में हम जीते हैं, उतना भी कोई नहीं जीता। धर्म के संबंध में हमारी जितनी जानकारी है, इतनी जानकारी सारी दुनिया की भी इकट्ठी मिला दें, तो हमारा पलड़ा भारी रहेगा। लेकिन अधर्म जैसा हमें सरल है, ऐसा पृथ्वी पर किसी को भी नहीं है। बात क्या है? भूल कहां हो गई होगी? हमें तो दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक लोग होना चाहिए था। और हमारे जीवन से तो सत्य का प्रकाश ही निकलता। और परमात्मा की छबि ही हमारे चारों तरफ हमें दिखाई पड़ती। वह तो हमें दिखाई नहीं पड़ती। हां, बात हम सर्वाधिक करते हैं। ईश्वर के संबंध में जितनी बात हम करते हैं, उसका हिसाब लगाना मुश्किल है। लेकिन ईश्वर से हमारी कोई पहचान नहीं होती। वह वही भूल हो गई है, जो लाओत्से कह रहा है, जानकारी जानने से रोक देती है। लाओत्से के शिष्य च्वांगत्से ने कहा है कि इफ यू वांट टु नो, बिवेयर ऑफ नालेज। अगर जानना चाहो, तो ज्ञान से सावधान! ये वाक्य कंट्राडिक्टरी मालूम पड़ते हैं, स्वविरोधी मालूम पड़ते हैं। क्योंकि च्वांगत्से कहता है, जानना चाहो, तो जानने से सावधान! क्यों? जानना चाहो और जानने से सावधान! हां, कोई कहता, न जानना चाहो और जानने से सावधान, तो संगत, तर्कयुक्त बात मालूम होती। च्वांगत्से कहता है, जानना चाहो, तो जानकारी से सावधान। क्योंकि जिसे जानकारी मिल जाती है, वह जानने से वंचित रह जाता है। क्यों? क्योंकि जानकारी होती है उधार, किसी और ने जाना। कोई रामकृष्ण कहते हैं कि परमात्मा है, कोई रमण कहता है कि परमात्मा है। हमने सुना, माना और हमने भी कहना शुरू किया कि परमात्मा है। यह जानकारी है। हमने जाना नहीं है। किसी और ने जाना है। उधार है। और ध्यान रहे, ज्ञान उधार नहीं हो सकता। इस जगत में सब चीजें उधार मिल सकती हैं। एक चीज उधार नहीं मिलती, वह ज्ञान है। इस जगत में सभी चीजें दूसरों से पाई जा सकती हैं, एक चीज दूसरों से नहीं पाई जा सकती, वह ज्ञान है। जानने में और जानकारी में यही फर्क है। जानना होता है स्वयं का और जानकारी होती है किसी और से। कोई और कह देता है। कबीर को सुन लेता है कोई। नानक को सुन लेता है कोई। और जो सुना, वह जानकारी बन जाती है। लेकिन जानकारी से ज्ञान का भ्रम पैदा होता है। अगर हम पुनरुक्त करते जाएं, जानकारी को बार-बार दोहराते जाएं, दोहराते जाएं, तो हम यह भूल ही जाते हैं कि यह हमारा जाना हुआ नहीं है। बार-बार दोहराने से लगता है कि मैं जानता हूं। सुना है मैंने कि नसरुद्दीन पर एक मुकदमा चला। चोरी का मुकदमा है। और अदालत में मजिस्ट्रेट ने कहा... बड़ी मुश्किल से, मजिस्ट्रेट सख्त था बहुत, बहुत मुश्किल से ही नसरुद्दीन का वकील नसरुद्दीन को बचा पाया। जब अदालत के बाहर निकलते थे, तो वकील ने पूछा कि नसरुद्दीन, सच तो बताओ, चोरी तुमने की भी थी या नहीं? नसरुद्दीन ने कहा कि तुम्हें सुन-सुन कर महीनों तक, मुझे भी शक आने लगा है कि मैंने चोरी की थी? मुझे भी शक होने लगा है। यू हैव कनविंस्ड मी सो मच! नसरुद्दीन ने कहा, इतना तुमने मुझे भरोसा दिलवा दिया, मजिस्ट्रेट ही राजी नहीं हुआ, मैं भी राजी हो गया हूं। अब तो मुझे भी शक आता है कि सच में मैंने चोरी की थी या नहीं की थी। एक बात बार-बार सुन कर कठिनाई हो जाती है। और दूसरे से सुन कर नहीं, जब आप खुद ही दोहराते रहते हैं। बचपन से दोहराते रहते हैं, ईश्वर है, ईश्वर है, ईश्वर है। खून के साथ मिल जाती है बात। हड्डियों में समा जाती है। मांस-पेशियों में घुस जाती है। रोएंरोएं से बोलने लगती है। होश नहीं था, तभी से पता चलता है कि ईश्वर है। फिर दोहराते-दोहराते-दोहराते-दोहराते याद ही नहीं रह जाता कि कोई क्षण था जब मैंने सवाल उठाया हो कि ईश्वर है? लगता है, सदा से मुझे मालूम है कि ईश्वर है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy