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संकल्प को हम जैसा आदर देते हैं, लाओत्से ठीक उससे विपरीत उसकी व्याख्या करता है। हम आदर देंगे, क्योंकि हमारा सारा जीवन का ढांचा अहंकार पर निर्मित है, महत्वाकांक्षा पर खड़ा है। दौड़ना है, कहीं पहुंचना है, कुछ पाना है। धन, यश, पद, मर्यादा, कुछ उपलब्ध करना है। किन्हीं से कुछ छीनना है; किन्हीं को, कुछ हमसे न छीन लें, इस से रोकना है। जीवन हमारा एक संघर्ष है। हमारे देखने का ढंग संघर्ष का ढंग है, झुकना नहीं है। झुके, तो भारी ग्लानि होगी।
लाओत्से कहता है, यह जीवन के सोचने का ढंग बीमारी में ले जाता है, रुग्णता में ले जाता है। तुम ऐसे हो जाओ, जैसे हो ही नहीं।
यह जो न होने जैसा होना है, वहां संकल्प न होगा। जापान में जूडो या जुजुत्सु की पूरी कला लाओत्से के इसी सूत्र पर खड़ी है। उसे थोड़ा समझ लेना उपयोगी है। उससे समझ में आ जाएगा कि लाओत्से क्या कहता है।
अगर मैं आपको घूसा मारूं, तो जो स्वाभाविक प्रतिक्रिया मालूम होती है, वह यह है कि आप मेरे चूंसे का विरोध करें। विरोध दो तरह का होगा। अगर आपको मौका मिला, तो आप मेरे चूंसे को रोकेंगे या घूसे के जवाब में घुसा उठाएंगे। अगर मौका न मिला, फिर भी घुसा जब आपके शरीर पर पड़ेगा, तो आपके शरीर के रग-रेशे से प्रतिरोध उठेगा। आपकी मांस-पेशियां, आपके स्नायु, सब सख्त होकर चूंसे को रोकेंगे कि भीतर तक चोट न पहुंच जाए। आपकी हड्डियां कड़ी हो जाएंगी। आपका शरीर भिंच जाएगा, खिंच जाएगा, ताकि सख्ती से आप दीवार बना लें और घंसे की चोट भीतर न पहंच पाए।
जूडो की कला इससे बिलकुल उलटी है। और जूडो की कला से बड़ी कोई कला नहीं है युद्ध के मामले में। और जूडो का थोड़ा सा जानकार भी आपके बड़े से बड़े पहलवान को क्षण भर में चित कर देगा। और चित्त कर देगा इस तरकीब से कि लड़ेगा नहीं। जूडो की कला यह कहती है कि जब तुम्हें कोई घूसा मारे, तो तुम घूसे को पी जाओ। कोआपरेट विद इट। तुम उससे लड? मत। जब तुम पर कोई घूसा मारे, तो तुम ऐसे हो जाओ, जैसे कि तुम एक तकिए जैसे हो। चूंसा तुम पर लग गया और तुम पी गए।
फर्क समझ लें, चूंसे के विरोध में प्रतिरोध और चूंसे को पी जाने का। चूंसा आपके ऊपर मारा गया है, आप सहयोग करो और चूंसे को पी जाओ। उससे कहीं भी लड़ो मत, किसी तल पर भी।
और जूडो कहता है, चूंसे मारने वाले का हाथ टूट जाएगा। चूंसे मारने वाले का हाथ टूट जाएगा। क्योंकि चूंसा मारने वाला बहुत शक्ति और बहुत संकल्प से मार रहा है। और अगर आपने बिलकुल जगह दे दी, तो उसकी हालत ठीक वैसी हो जाएगी, जैसे एक रस्सी को पकड़ कर आप खींच रहे हैं और मैं खींच रहा हूं, और मैंने रस्सी छोड़ दी; मैंने खींचा ही नहीं, मैंने प्रतिरोध न किया; मैंने कहा, आप खींचते हो, ले जाओ। तो आप गिर पड़ोगे।
जूडो की कला कहती है, मारो मत। जब कोई मारे, तो उसके सहयोगी हो जाओ, उसको दुश्मन मत मानो। मानो कि जैसे वह अपने ही शरीर का एक हिस्सा है। और तब थोड़ी ही देर में मारने वाला थक जाएगा और परेशान हो जाएगा। उसकी शक्ति क्षीण होगी। क्योंकि हर चूंसे में शक्ति बाहर फेंकी जा रही है। और आपकी शक्ति क्षीण नहीं होगी। बल्कि जूडो कहता है कि उसके चूंसे से जो शक्ति निकल रही है, वह भी आप पी जाओगे, वह भी आपको मिल जाएगी। पांच मिनट के भीतर जूडो का ठीक से जानने वाला आदमी किसी भी तरह के आदमी को परास्त कर देता है। परास्त करना नहीं पड़ता, वह परास्त हो जाता है।
एक बहुत प्रसिद्ध कथा है जूडो की। एक बहुत बड़ा तलवारबाज है, एक बड़ा सोईसमैन है। वह इतना बड़ा तलवारबाज है कि जापान में उसका कोई मुकाबला नहीं है। एक रात वह अपने घर लौटा है, दो बजे हैं। जब वह अपने बिस्तर पर लेटने लगा, तो उसने देखा, एक बड़ा चूहा निकला है दीवार से। उसे बड़ा क्रोध आया। उसने चूहे को डराने-धमकाने की कोशिश की अपने बिस्तर पर से ही, लेकिन चूहा अपनी जगह पर बैठा रहा। उसे बड़ी हैरानी हुई। वह बड़े-बड़े लोगों को धमका दे, तो भाग खड़े होते हैं! चूहा! उसको क्रोध इतना आ गया कि उसके पास में ही उसकी सीखने की लकड़ी की तलवार पड़ी थी, उसने उठा कर जोर से चूहे पर हमला किया। हमला उसने इतने क्रोध में किया, चूहा जरा इंच भर सरक गया और उसकी तलवार जमीन पर पड़ी और टुकड़े-टुकड़े हो गई, और चूहा अपनी जगह बैठा रहा। तब जरा उसे घबराहट पैदा हो गई। चूहा कोई साधारण नहीं मालूम होता। उसके वार को चूक जाना, उसका वार चूक जाए, इसकी कल्पना भी नहीं थी।
वह अपनी असली तलवार लेकर आ गया। लेकिन जब चूहे को मारने के लिए कोई असली तलवार लेकर आता है, तो उसकी हार निश्चित है। असली तलवार लेकर आ गया जब वह, तभी हार निश्चित हो गई। चूहे को मारने के लिए असली तलवार एक योद्धा को लानी पड़े! चूहे से डर तो गया वह बहुत। और चूहा असाधारण है। हाथ उसका कंपने लगा। और उसे लगा कि अगर असली तलवार टूट गई, तो फिर इस अपमान को सुधारने का कोई उपाय न रह जाएगा। उसने बहुत सम्हल कर मारा। और जो जानते हैं, वे कहते हैं, जितना सम्हल कर आप निशाना लगाएंगे, उतना ही चूक जाएगा। क्योंकि सम्हलने का मतलब है कि भीतर डर है, भीतर घबड़ाहट है, कंपन है। अगर भीतर कोई डर नहीं, घबड़ाहट नहीं, तो आदमी सम्हल कर काम नहीं करता। काम करता है और हो जाता है। उसने तलवार मारी उसे। जिंदगी में उसने बहुत बार तलवार उठाई और चलाई और वह कभी चूका नहीं था। एक क्षण उसका हाथ बीच में कंपा और जब तलवार नीचे पड़ी, तो टुकड़े-टुकड़े हो गई। चूहा जरा सा हट गया था।
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