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________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free मैंने कभी कुछ न किया था, उसके न होने से मैं परेशान क्यों हूं? क्योंकि कुछ भी तो खतम नहीं हो रहा, कुछ भी तो बंद नहीं हो रहा, कुछ तो छिन नहीं रहा है। लेकिन हमारे मन का ढंग यह है: जो नहीं है, वह हमें दिखाई पड़ता है बहुत भारी होकर; और जो है, वह हमें दिखाई नहीं पड़ता। लाओत्से कहता है, स्पृहा से मुक्त अगर हम चित्त निर्मित करें; यदि उसकी ओर, जो स्पृहणीय है, उनका ध्यान आकृष्ट न किया जाए, तो उनके हृदय अनुद्विग्न रहें। हम आकृष्ट कर रहे हैं। पुराने जमाने में सारी दुनिया में जिनके पास धन होता, समाज का आग्रह होता था, धन का प्रदर्शन न करें। धन होना काफी है। कृपा करके उसका प्रदर्शन न करें, उसे दिखाते न फिरें, उसे उछालते न फिरें। क्योंकि उसका उछालना, उसका दिखाना न मालूम कितने लोगों के उद्विग्न होने का कारण हो जाए। इसलिए धनी आदमी का एक ही सबूत था, वह जो आदमी धन को उछालता नहीं फिरता था, वह सबूत था कि वह आदमी धनी है। गरीब ही धन को उछालते थे। जिनके पास कुछ नहीं था, वे कुछ दिखाना चाहते थे कि उनके पास कुछ है। जिनके पास सब था, वे ऐसे चुप होते थे, जैसे नहीं है। एक सूफी कहानी मैंने सुनी है। सम्राटों की एक परंपरा में एक बेटा भिखारी है। कई पीढ़ियों से भीख मांगी जा रही है। लेकिन परंपरा सम्राटों की है। घर में कथा है कि कभी बाप-दादे किसी पीढ़ी में बड़े सम्राट थे, बड़े खजाने थे उनके पास। पर यह कुछ पता नहीं चलता कि वे खजाने कहां खो गए। कभी वे हारे, इसका पता नहीं चलता। कभी लूटे गए, इसका पता नहीं चलता। फिर यह भिखमंगापन कैसे आया? हुआ क्या? कुछ पता नहीं चलता। पीढ़ियों तक पता नहीं चला। फिर एक पीढ़ी में एक दिन अचानक एक फकीर घर पर आया और उसने उस घर के जवान लड़के को कहा कि अब तुम वह आदमी हो, जिसको खजानों की खबर दी जा सकती है। वी आर दि गार्जियंस! उस युवक ने कहा, तुम कौन से गार्जियंस हो, हमें कुछ पता नहीं। हमारे पास तुम्हारे बाप-दादे छोड़ गए हैं। हमारे पास, मतलब हमारे गुरु के पास, उनके गुरु के पास, फकीरों के पास छोड़ गए हैं कि जब हमारे घर में ऐसा आदमी पैदा हो, जो धन को प्रदर्शन करने में उत्सुक न हो, तब यह खजाना वापस सौंप देना। तो तुम वह आदमी हो। मैं तुम्हें खजाना सौंपने आया हूं। उस युवक ने कहा, लेकिन मुझे कुछ सोचने का मौका दें। उस फकीर ने कहा कि बिलकुल ठीक, तुम्हीं वह आदमी हो, जिसकी तलाश थी। धन के खजाने की कोई खबर देता, तो आप बैठे रहते? आप खड़े हो गए होते-कहां है? भीख मांग रहा था परिवार। उस युवक ने कहा, सोचने का मौका दें। जिम्मेवारी भारी है। और गरीबी में जीना उतना जटिल नहीं, धन पास हो और बिना प्रदर्शन किए रह जाना बहुत मुश्किल है। थोड़ा सोचने का मौका दें। ऐसी जल्दी भी क्या है? इतने दिन से आप सम्हाल ही रहे हैं, और थोड़े दिन सम्हालें। उस फकीर ने कहा, उठो! क्योंकि हम भी कब तक सम्हालते रहें? और तुम्हीं वह आदमी हो, क्योंकि लक्षण पूरे हो गए। क्योंकि हमारे पास जो दस्तावेज है उसमें कहा गया है कि जब भी कोई परिवार का हमारा आदमी कहे, सोचने का मौका दो, उसे तुम दे आना। हम हर पीढ़ी में आते रहे। लेकिन जिससे भी हमने पूछा, वह उठ कर खड़ा हो गया। वह धन उसे सौंप दिया गया। सारे गांव में, आस-पास, दूर-दूर तक खबर पहुंच गई कि धन वापस मिल गया है। लेकिन भीख मांगनी तो जारी रही। सम्राट ने बुलाया उस युवक को और कहा कि पागल तो नहीं हो? या तो अफवाह है यह! हमने सुना है कि तुम्हें पुश्तैनी धन वापस मिल गया है। खजाना सौंप दिया गया है। फिर यह भीख क्यों मांग रहे हो? उस युवक ने कहा कि पहले तो भीख मांगना एक मजबूरी थी, अब एक कर्तव्य है। नाउ इट इज़ ए डयूटी। क्योंकि इसी शर्त पर वह धन मुझे सौंपा गया है कि उसका प्रदर्शन न हो। और आज मैं घर बैठ जाऊं और भीख मांगने न जाऊं, तो इससे बड़ा प्रदर्शन और क्या होगा? उसने कहा कि यानी मामला ही खतम हो गया, और प्रदर्शन और ज्यादा क्या हो सकता है? लोग अगर मुझे घर में बैठा देख लें कि आज भीख मांगने नहीं गयाक्योंकि रोज जो मिलता है, उसी से तो काम चलता है तो प्रदर्शन तो हो जाएगा। धन जब प्रदर्शन बनता है, तो स्पृहा पैदा होती है। लेकिन धन तो हम कमाते ही इसलिए हैं कि प्रदर्शन कर सकें। अगर प्रदर्शन ही न करना हो, तो कमाने की जरूरत क्या है? जो वस्त्र पहनने ही न हों, उनको बनवाने की क्या जरूरत है? और जिन मकानों में रहना ही न हो, उनको खड़ा क्या करना है? जिसका कभी प्रदर्शन ही न करना हो, उसको रखने का भी क्या उपयोग है? हम कहेंगे ऐसा। लेकिन लाओत्से कहता है कि अगर हम लोगों के ध्यान आकर्षित न करें, तो लोग परम शांति में जी सकते हैं। और ये जो एक्झिबीशनिस्ट, प्रदर्शनकारी हैं, रुग्ण हैं। क्योंकि जो तुम्हारे पास है, उसे भोगना तो स्वस्थ है, उसे दिखाना रुग्ण है। इसे थोड़ा समझ लें। जो मेरे पास है, उसे अनुग्रहपूर्वक भोगना तो स्वस्थ है; लेकिन उसे दिखाए फिरना रुग्ण है, बीमार है। असल में, दिखाता वही फिरता है, जो भोग नहीं पाता। जो भोग लेता है, उसे दिखाने की जरूरत नहीं रह जाती। जिस चीज को आप भोग सकते हैं, उसे आप दिखाते नहीं फिरते। जिसको आप भोग नहीं सकते, उसे आप दिखाते फिरते हैं। सभी तलों पर एक्झिबीशन जो है...। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज
SR No.002371
Book TitleTao Upnishad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, K000, & K999
File Size4 MB
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